“जिनपिंग की हर बात मानो”, विरोधियों से डरी CCP अब पढ़ाएगी सैनिकों को वफ़ादारी का पाठ

जिनपिंग को सैन्य विद्रोह का डर!

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बंदूक जिसके पास होती है, सबसे ज़्यादा ताकतवर भी उसी को कहा जाता है। चीन में सत्ता पर राष्ट्रपति शी जिनपिंग की पकड़ चाहे कितनी भी मजबूत क्यों न हो, लेकिन चीनी राष्ट्रपति को हमेशा चीनी सेना में मौजूद कुछ जिनपिंग-विरोधी तत्वों से चुनौती मिलने का भय सताता रहता है। शायद यही कारण है कि अब जिनपिंग सरकार ने PLA के सैनिकों को वफ़ादारी का पाठ पढ़ाने का फैसला लिया है। राष्ट्रवाद की कमी और मानसिक असंतुलन से जूझ रहे PLA सैनिकों को बेहतर बनाने के लिए ही CCP ने यह नया दांव खेला है।

दरअसल, इस वर्ष कम्युनिस्ट पार्टी अपना 100वां जन्मदिन मना रही है, और इस मौके पर CCP सभी चीनी सैनिकों को दोबारा वफ़ादारी करना सिखाने जा रही है। बीते मंगलवार को PLA के मेजर जनरल Li Jun ने एक बयान में कहा “सेना को सुप्रीम कमांडर शी जिनपिंग के प्रत्येक आदेश का पालन करना होगा। हम सब की उन्हीं के प्रति जवाबदेही है। हर एक सैनिक को पार्टी के इतिहास के बारे में सिखाया जाएगा ताकि वे पार्टी के मूल सिद्धांतों के प्रति वफ़ादार रहें और उनका पालन करें।” CCP की पूरी कोशिश है कि PLA के सैनिकों को जिनपिंग के विचारों का अंधा पालन करने के लिए तैयार किया जाये।

जिनपिंग को सबसे बड़ी समस्या PLA की Western Theater Command से है, जिसे पिछले वर्ष गलवान में भारत के हाथों शिकस्त का सामना करना पड़ा था। पश्चिमी थियेटर कमांड के सैनिकों को पिछले कुछ वर्षों से प्रोमोशन नहीं मिला है। इसके साथ ही जिनपिंग ने अपने “भ्रष्टाचार विरोधी अभियान” के तहत Central Military Commission के उपाध्यक्ष Guo Boxiong और Xu Caihou को उनके पद से हटा दिया था। माना जाता है कि PLA की Western Theater Command इन्हीं दोनों के सबसे ज़्यादा करीब थी। दूसरी ओर चीनी सरकार की नज़रों में पिछले वर्ष गलवान झड़प में Western Theater Command के सैनिकों ने स्तरहीन प्रदर्शन किया था। ऐसे में चीनी सरकार की नज़रों में PLA की इस कमांड में वफ़ादारी की कमी होना एक बड़ा मुद्दा बन गया है।

इतना ही नहीं, पिछले वर्ष Wion की एक रिपोर्ट में यह सामने आया था कि PLA के विश्लेषक जिनपिंग की ताइवान नीति से भी बिलकुल खुश नहीं हैं। जिनपिंग जहां ताइवान को “बल के प्रयोग” से हथियाना चाहते हैं तो वहीं PLA इस विचार का विरोध करती है। पिछले वर्ष ही PLA के दो experts, रिटायर्ड जनरल Qiao Liang और जनरल Dai Xu ने शी जिनपिंग के नेतृत्व पर कई सवाल उठाए थे। उन्होंने कहा था कि शी जिनपिंग की विदेश नीति हमारे दोस्तों को ही हमारे खिलाफ कर रही है। जनरल Qiao Liang ने कहा था, “चीन का मकसद ताइवान को खुद में मिलाना नहीं है, बल्कि सभी 1.4 अरब चीनी नागरिकों को खुश रखना है। लेकिन क्या आज ताइवान को चीन में मिलाकर ऐसा किया जा सकता है? बिलकुल नहीं! अगर चीन को ताइवान पर कब्जा करना है, तो चीन को सारी सेना को ताइवान पर चढ़ाई करनी होगी। हमें इतना बड़ा रिस्क नहीं लेना चाहिए”।

अब अमेरिका में जो बाइडन की सत्ता में आने के बाद चीन ने ताइवान के खिलाफ अचानक बेहद आक्रामक रुख अपनाया है, जिसके कारण चीन द्वारा ताइवान के खिलाफ सैन्य अभियान छेड़े जाने का खतरा कई गुना बढ़ गया है। ऐसे में चीनी सरकार कतई नहीं चाहती कि ऐसी किसी भी सूरत में PLA के सैनिक CCP के निर्देशों का पालन करने में कोई आनाकानी दिखाएँ।

यह पहली बार नहीं था जब CCP और PLA में इस तरह के फूट की खबरें सामने आई हों। पिछले वर्ष ही जून महीने में CCP के विद्रोही नेता और कम्युनिस्ट पार्टी के पूर्व नेता के पुत्र जियानली यांग ने वाशिंगटन पोस्ट के लिए लिखे एक लेख में एक सनसनीखेज खुलासा करते हुए कहा था कि चीन द्वारा गलवान घाटी की सच्चाई न बताना वर्तमान प्रशासन के लिए बहुत घातक सिद्ध हो सकता है। जियानली यांग ने लिखा था- “सेवानिर्वृत्त और घायल पीएलए सैनिक चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के विरुद्ध विद्रोह पर उतर सकते हैं। सीसीपी नेतृत्व को इन पूर्व सैनिकों की क्षमता को नज़रअंदाज़ करने की भूल बिलकुल नहीं करना चाहिए क्योंकि यदि स्थिति नियंत्रण में नहीं रही,तो ये पूर्व सैनिक मिलकर सीसीपी के खिलाफ एक निर्णायक युद्ध छेड़ने में भी सक्षम हैं।”

स्पष्ट है कि जिनपिंग सरकार के खिलाफ PLA द्वारा किसी तख़्तापलट की संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता है। जिनपिंग अपने ““भ्रष्टाचार विरोधी अभियान” के तहत CCP से तो सभी विरोधियों को ठिकाने लगा चुके हैं, लेकिन PLA से उन्हें अब भी चुनौती मिलने का डर सता रहा है। यही कारण है कि जिनपिंग सरकार अब अपने सैनिकों के लिए वफ़ादारी का पाठ लेकर प्रस्तुत हुई है।

 

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