अफ़्रिका में चावल एक्सपोर्ट में भारत पहुंचा पहले स्थान पर, पहले यह ताज चीन के पास था

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भारत

लगभग एक साल पहले, चीन चावल की कीमत कम करके अफ्रीका में भारतीय चावल निर्यात को कम करने की कोशिश कर रहा था। पिछले साल जनवरी में वाणिज्य मंत्रालय के अधिकारी ने कहा था, “हम इस बात से अवगत हैं कि चीन, जो कि चावल का खरीदार है, बेहद ही प्रतिस्पर्धी मूल्य पर सफेद चावल के अपने निर्यात को बढ़ा रहा। लेकिन यह देखने वाली बात हैं कि यह निर्यात का मामला कैसे आगे बढ़ता है” । परन्तु केवल एक वर्ष में ही स्थिति पूरी तरह से परिवर्तित हो गई है क्योंकि न केवल भारत अफ्रीका में चावल का निर्यातक बन गया है, बल्कि चीन भी खुद भारतीय चावल खरीद रहा है। इस वित्त वर्ष में समान अवधि में जनवरी से अप्रैल 2019-20 के बीच खाद्यान्न की आपूर्ति 1.63 बिलियन डॉलर से दोगुनी हो कर 3.51 बिलियन डॉलर हो गई।

बासमती चावल के निर्यात में पिछले वित्त वर्ष की तुलना में गिरावट आई क्योंकि दुनिया भर में उपभोक्ता कोरोनवायरस वायरस की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव के कारण ख़राब आर्थिक स्थिति से जूझ रहे हैं। हालांकि, कोरोना जैसे संकट को देखते हुए ही दुनिया भर के देशों ने आपातकालीन स्थितियों के लिए खाद्य भंडार का निर्माण शुरू कर दिया (जैसे भारत दशकों से करता आया है), और इससे मांग में वृद्धि हुई।

इसके अलावा, दुनिया के कई देशों में ख़राब मौसम के कारण भी उत्पादन में गिरावट आई है, जबकि भारत में अच्छे मौसम के कारण उत्पादन एक सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया।

वैश्विक बाजार में खाद्य कीमतों के बढ़ने के साथ, निर्यात की निर्बाध आपूर्ति होने से भारतीय कृषि को लाभ होना निश्चित है।

APEDA के अध्यक्ष एम अंगामुथ ने कहा कि, “Covid-19 से उत्पन्न हुए स्वास्थ्य चुनौतियों के कारण हमने सुरक्षा और स्वच्छता को सुनिश्चित करने के संदर्भ में कई उपाय किए, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि चावल का निर्यात निर्बाध रूप से जारी रहे।”

2020 में, दुनिया भर के अधिकांश देशों में चावल की कमी हो गई थी। ऐसे में भारत उन्हें खिलाने के लिए आगे आया। वियतनाम और थाईलैंड जैसे देश जो परंपरागत रूप से चावल निर्यात के पावरहाउस रहे हैं, अब भारतीय चावल आयात करने के लिए बाध्य हैं।

इसके साथ ही भारत ने दुनिया भर में अपने चावल के लिए एक दीर्घकालिक बाजार बनाया है। अफ्रीकी बाजार, जिसे चीन भारतीय निर्यातकों से छीनना चाह रहा था, देश के लिए एक दीर्घकालिक बाजार बन गया है। अफ़्रीकी देशों को पता है कि उनके कठिन समय में भारत उन्हें खिलाने के लिए आगे आया जबकि चीन ने अचानक निर्यात रोक दिया था और पाकिस्तान के चावल को भी खुद ही खरीदने लगा था जिससे ये अफ़्रीकी देश चावल आयात करते थे।

इसके अलावा, भारतीय कृषि क्षेत्र, जो विश्व स्तर पर वस्तुओं की कम कीमतों से जूझता है, एक बार फिर से पुनर्जीवित होगा, और देश के किसानों को अपनी आय में तेजी से वृद्धि देखने को मिल सकती है।

भारतीय व्यापारियों ने वियतनाम को 70,000 टन चावल का निर्यात करने का कॉन्ट्रैक्ट हासिल किया है, जो पहली बार भारतीय चावल खरीद रहा है। वियतनाम में चावल की घरेलू कीमत में 500 डॉलर प्रति टन तक की वृद्धि हुई है जबकि भारत 310 डॉलर प्रति टन की दर से निर्यात कर रहा है।

महामारी के बाद, चीन ने अचानक अफ्रीकी और पश्चिम एशियाई देशों को निर्यात रोक कर अपने देश के भंडार को बढ़ाना शुरू कर दिया, लेकिन भारत के पास पहले से चावल इतना रिजर्व था कि उसने दुनिया भर में निर्यात करना जारी रखा था और आज लगभग हर प्रमुख चावल उत्पादक देश भारतीय चावल खा रहा है ।

भारत सहित दुनिया के दूसरे सबसे बड़े निर्यात थायलैंड में चावल की कीमत दुनिया भर में बढ़ी है। इसलिए, भारतीय चावल अब वियतनाम, चीन और बांग्लादेश जैसे देशों के लिए अधिक आकर्षक हो गए हैं, जहां उपभोक्ता कम कीमत में चावल खरीदना चाहते हैं।

भारत दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक और चावल का निर्यातक है। 2019 में, भारत ने 7.1 बिलियन डॉलर के चावल का निर्यात किया, जो वैश्विक चावल के निर्यात का 32 प्रतिशत था। इसके बाद थाईलैंड, संयुक्त राज्य अमेरिका, वियतनाम, पाकिस्तान, चीन और इटली का स्थान रहा। 2020 में, वियतनाम और चीन जैसे देशों में चावल की कीमतें इतनी अधिक हो गई हैं कि ये देश भारत से चावल आयात कर रहे हैं।

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