‘सचिन वाझे वसूली कर रहा था और गृहमंत्री को जानकारी नहीं होगी?’,शिवसेना ने अनिल देशमुख पर फोड़ा ठीकरा

शरद पवार को देशमुख बचाना है, शिवसेना खुद को बचा रही!

शिवसेना

PC: Mid-Day

देश के मशहूर बिजनेसमैन मुकेश अंबानी के घर के बाहर खड़ी कार और सचिन वाझे से जुड़े केस में महाराष्ट्र सरकार की काफी फजीहत हो चुकी है। मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमवीर सिंह द्वारा गृहमंत्री अनिल देशमुख पर लगाए गए आरोपों को लेकर खड़े हो रहे सवालों से जुड़े कठघरे में शिवसेना भी आ गई है क्योंकि पार्टी गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रही है। वहीं, इस मुद्दे पर शिवसेना अपने बचाव में गृहमंत्री अनिल देशमुख को निशाने पर लेते हुए अपने मुखपत्र ‘सामना’ के जरिए उन पर हमला बोल रही है, कि गृहमंत्री होने के बावजूद उन्हें क्या इस वसूली कांड की कोई जानकारी नहीं थी? सामना में लिखे इस लेख को देखकर ऐसा लग रहा है जैसे शिवसेना अब अपने बचाव में उतर गयी है और ‘सेफ’ खेलने की कोशिश में हैं ताकि सरकार बच जाये और उसकी प्रासंगिकता भी बनी रहे।

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ऐसा अकसर कहा जाता है कि जो बात शिवसेना अपने गठबंधन के साथी से सीधे नहीं बोलती है, वो सारी बातें और आलोचना अपने मुखपत्र के जरिए जनता के सामने रख देती है, और अब सचिन वाझे के केस में भी कुछ ऐसा ही होता दिख रहा है। अपने मुखपत्र सामना के जरिए शिवसेना नेता संजय राउत ने अनिल देशमुख की कार्यशैली पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने सामना में लिखा, “सचिन वाझे वसूली कर रहा था और राज्य के गृहमंत्री अनिल देशमुख को इसकी जानकारी नहीं थी?”

सामना में संजय राउत ने इस पूरे घटनाक्रम पर  विश्लेषण के नाम पर वो सब कुछ कह दिया जो शायद शिवसेना और वो सीधे मुंह कहने से बच रहे थे। उन्होंने कहा, “अनिल देशमुख ने कुछ सीनियर अफसरों से बेवजह पंगा लिया है। गृहमंत्री को कम-से-कम बोलना चाहिए। बेवजह कैमरे के सामने जाना और जांच का आदेश जारी करना अच्छा नहीं है। ‘सौ सुनार की एक लोहार की’ ऐसा बर्ताव गृहमंत्री का होना चाहिए। पुलिस विभाग का नेतृत्व सिर्फ ‘सैल्यूट’ लेने के लिए नहीं होता है। वह प्रखर नेतृत्व देने के लिए होता है। प्रखरता ईमानदारी से तैयार होती है, ये भूलने से कैसे चलेगा?”

शिवसेना के मुखपत्र सामना में संजय राउत ने ये भी दावा किया है कि NCP कोटे से गृह मंत्री बने अनिल देशमुख को यह पद दुर्घटनावश मिला था। इससे शिवसेना खुद को बंधा हुआ बताने की कोशिश करती दिखाई दे रही है।

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सामना के इस कथन का मर्म साफ कहता है कि इस पूरे मामले में अनिल देशमुख एक बड़े गुनहगार हैं क्योंकि उन्होंने सभी को अंधेरे में रखा था, लेकिन असल में सामना के जरिए शिवसेना एक साथ दो चालें चल रही है क्योंकि पिछ्ले लगभग डेढ़ महीने से महाराष्ट्र की राजनीति में जो उठा-पटक चल रही है वो शिवसेना के लिए ख़तरनाक है। मुख्यमंत्री पद उद्धव ठाकरे के पास होने के चलते उनकी खूब किरकिरी हो रही है। ऐसे में अब शिवसेना अनिल देशमुख पर इस पूरे प्रकरण का ठीकरा फोड़ना चाहती है जिन्हें शरद पवार का संरक्षण प्राप्त है।

ऐसा लगता है कि सामना के जरिए अनिल देशमुख को कठघरे में खड़ा कर शिवसेना जनता के बीच भी ये संदेश देना चाहती है कि एनसीपी नेता और गृहमंत्री अनिल देशमुख ने जो कुछ भी किया है, उसमें शिवसेना का कोई हाथ नहीं है, और उद्धव को इस प्रकरण के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। इतना ही नहीं महाराष्ट्र की राजनीति में अब ये गठबंधन इतना कमजोर हो चुका है कि कभी भी टूट सकता है। ऐसे में अब शिवसेना जानती है कि उसे जनता के बीच फिर जाना होगा और हो सकता है शायद इसीलिए भी वो अनिल देशमुख को बली का बकरा बनाकर अपनी छवि साफ सुथरी दिखाने की कोशिश कर रही है।

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इस पूरे प्रकरण के बाद शिवसेना का दोहरा चरित्र सामने आया है, एक तरफ एनसीपी प्रमुख शरद पवार का नाम यूपीए अध्यक्ष के प्रस्तावित कर उनके प्रति चाटुकारिता दिखा रही है, वहीं दूसरी तरफ शिवसेना सचिन वाझे केस में फंसे अनिल देशमुख को केवल इसलिए बली का बकरा बना रही है, क्योंकि उसे अपनी छवि साफ दिखानी है, जबकि शरद पवार अनिल देशमुख के समर्थन में झूठ बोलकर अपने राजनीतिक जीवन पर धब्बा लगा चुके हैं। अब ये देखना दिलचस्प होगा कि सामना का जवाब एनसीपी कैसे देती है और इससे महाविकास अघाड़ी के गठबंधन पर क्या प्रभाव पड़ता है !

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