तियानमेन नरसंहार के बाद पहली बार EU ने लगाए चीन पर प्रतिबंध, EU की चीन नीति में बड़ा बदलाव

आखिर EU क्यों चीन के साथ टकराव की स्थिति पैदा कर रहा है?

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शिंजियांग में उइगर मुस्लिमों पर चीनी सरकार की प्रताड़ना का मुद्दा अब चीनी सरकार के लिए गले की फांस बनता जा रहा है। उइगर मुस्लिमों के मानवाधिकारों के मुद्दे पर अब अमेरिका, कनाडा, UK और यूरोपीय यूनियन ने चीन पर कड़े प्रतिबंधों का ऐलान किया है, जिसके बदले में चीन ने भी यूरोप के कुछ अधिकारियों और राजनेताओं पर प्रतिबंध लगाए हैं। EU अब तक प्रतिबंधों के माध्यम से बीजिंग के साथ सीधे टकराव की स्थिति को पैदा करने से बचता आ रहा था, लेकिन थियानमेन चौक नरसंहार के दौरान वर्ष 1989 में लगाए गए प्रतिबंधों के बाद पहली बार प्रतिबंध लगाकर EU ने स्पष्ट संदेश दिया है कि अब उसकी चीन नीति में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है।

इन अधिकारियों पर लगाए गए प्रतिबंध

EU द्वारा सोमवार को लगाए गए प्रतिबंधों के तहत शिंजियांग के Public Security Bureau के साथ ही CCP के Xinjiang Production and Construction Corps के अध्यक्ष Wang Junzheng पर प्रतिबंध लगाए गए हैं। कुल मिलाकर चार चीनी अधिकारियों की संपत्ति जब्त करने के साथ ही उनपर यात्रा करने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है। EU के ऐलान के बाद अमेरिका, UK और कनाडा जैसे देशों ने भी चीन पर प्रतिबंधों का ऐलान किया। हालांकि, EU के कदम पर चिढ़े चीन ने भी पलटवार करते हुए EU के 10 अधिकारियों समेत 4 संस्थाओं पर प्रतिबंध लगाने का फैसला लिया।

“EU के कदम झूठ पर आधारित”: चीन

चीन ने फ्रेंच MEP Raphaël Glucksmann, जर्मन MEP Adrian Zenz और स्वीडिश विश्लेषक Björn Jerdén पर प्रतिबंध लगाए हैं, जो समय-समय पर चीन-नीतियों की आलोचना करते रहे हैं। चीन ने यह कार्रवाई करते हुए यह भी कहा कि EU द्वारा उठाए गए कदम झूठ और गलत जानकारी पर आधारित हैं। इनकी वजह से चीन-EU के सम्बन्धों पर गहरा असर पड़ा है।

चीन को भुगतने पड़ सकते हैं गंभीर परिणाम

हालांकि, चीन के पलटवार के बाद EU की ओर से फिर चीन-विरोधी कड़ा बयान जारी किया गया। कई EU के सदस्यों द्वारा अब चीन को यह धमकी दी गयी है कि अगर चीन ने प्रतिबंधित EU राजनेताओं पर से प्रतिबंध नहीं हटाया तो इसकी वजह से हाल ही में फाइनल हुई EU-चीन निवेश संधि पर इसकी आंच पहुँच सकती है। यूरोपियन संसद के अध्यक्ष David Sassoli ने चीन को धमकी देते हुए कहा कि चीन द्वारा लगाए गए प्रतिबंध अस्वीकार्य हैं और चीन को इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।”

EU-चीन निवेश संधि को हो सकता है नुकसान

EU द्वारा उठाए गए कदमों से स्पष्ट है कि वह अपनी चीन नीति में तेजी से बदलाव कर रहा है। दिसंबर में चीन-EU के बीच हुई निवेश संधि ने EU को चीन के खिलाफ कार्रवाई करने का अवसर दे दिया है, जिसके बाद EU इस संधि को Leverage के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है। इस संधि को आने वाले दो सालों के दौरान EU के सदस्य देशों द्वारा Ratify किया जाना है, और अब यूरोप के देश किसी भी तनाव की स्थिति में इस संधि पर चोट कर सकते हैं, जैसा कि इस मामले में भी देखने को मिला।

क्या है सख्त तेवर की सबसे बड़ी वजह?

इसके साथ ही जर्मन चांसलर इस साल अपना पद छोड़ने वाली हैं और उससे ठीक पहले वे चीन के खिलाफ सख्त से सख्त कदम उठाकर अपनी छवि को मजबूत करना चाहती हैं। जर्मन चांसलर पर अपने कार्यकाल के दौरान चीन को लेकर नर्म रुख अपनाने के आरोप लगते रहे हैं। ऐसे में वे ऑफिस में अपने आखिरी दिनों में चीन के खिलाफ कड़े से कड़े कदम उठाकर चीन को लेकर नर्म रुख अपनाने वाले आरोपों को गलत साबित करना चाहते हैं।

भविष्य क्या?

दूसरी ओर फ्रेंच राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों भी EU का नेतृत्व करने हेतु ना सिर्फ उईगर के मुद्दे पर बल्कि Indo-Pacific में भी चीन के खिलाफ एक के बाद एक कदम उठा रहे हैं। यही कारण है कि अब उईगर के मुद्दे पर EU ने चीन के खिलाफ अप्रत्याशित कार्रवाई की है और भविष्य में भी हमें यही ट्रेंड देखने को मिल सकता है।

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