बीबी से मोदी तक, बाइडन उन सभी देशों के राष्ट्राध्यक्षों से संबंध खराब कर रहे हैं जो ट्रम्प के साझेदार थे

ट्रम्प के दोस्तों को सबक सिखाने की कोशिश में बाइडन

अमेरिका वैक्सीन सर्टिफिकेट

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन सत्ता में आने के बाद एक के बाद एक अमेरिका के साथी देशों के खिलाफ बड़े फैसले लेते जा रहे हैं। उनके निशाने पर खासकर ऐसे देश हैं जिनके राष्ट्राध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के काफी करीबी माने जाते थे। ऐसा लगता है मानो अब बाइडन अपनी विदेश नीति के माध्यम से ट्रम्प के दोस्त रहे राष्ट्राध्यक्षों को सबक सिखाने के रास्ते पर निकले हुए हैं। बाइडन ने सत्ता में आने के बाद जहां ईरान को गले लगाने का काम किया है, तो उसी दौरान ट्रम्प के दोस्त रहे यूएई के राष्ट्रपति खलीफ़ा बिन ज़ायद, इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहु, सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान, जापान के प्रधानमंत्री योशीहिदे सुगा और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ फैसले लिए हैं। ये सभी ऐसे राष्ट्राध्यक्ष हैं जिनके ट्रम्प के साथ अच्छे संबंध थे।

ट्रम्प अमेरिका में पहले ऐसे राष्ट्रपति थे, जो Deep State से नफ़रत करते थे। उनके कार्यकाल में अमेरिका ने एक भी नई लड़ाई शुरू नहीं की, जिसके कारण अमेरिका के Military-Industrial गठबंधन को काफी नुकसान उठाना पड़ा। ऐसे में यह Deep State ट्रम्प प्रशासन का एक और कार्यकाल किसी कीमत पर भी नहीं सह सकता है। ऐसे में ना सिर्फ घरेलू स्तर पर, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी ट्रम्प की नीतियों को किनारे किया जा रहा है।

ट्रम्प के दौरान पश्चिम एशिया में शांति स्थापना हेतु ऐतिहासिक Abraham Accords पर हस्ताक्षर किए गए थे। UAE के राष्ट्रपति खलीफ़ा बिन ज़ायद और इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतनयाहू ने राष्ट्रपति ट्रम्प को यह उपहार दिया था, जिसके कारण Democrats अब इन दोनों नेताओं के खिलाफ अभियान छेड़ चुके हैं। बाइडन प्रशासन आते ही अमेरिका-UAE सुरक्षा समझौते पर रोक लगा चुके हैं जिसके तहत UAE को F-35 फाइटर जेट्स मिलने थे। इतना ही नहीं, बाइडन प्रशासन ने UAE को सबक सिखाने के लिए यहाँ से export होने वाले Aluminium पर भी आयात दरों को बढ़ा दिया।

UAE की तरह ही सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान भी बाइडन के निशाने पर आ चुके हैं। अपने हालिया फैसले में बाइडन प्रशासन ने सऊदी मूल के अमेरिकी पत्रकार जमाल खशोगजी की हत्या से जुड़े अहम गोपनीय दस्तावेजों को सार्वजनिक किया, जिसके बाद अमेरिका ने सऊदी के कुछ अधिकारियों पर प्रतिबंधों का ऐलान भी किया है। दस्तावेजों के हिसाब से जमाल खशोगजी की हत्या के निर्देश मोहम्मद बिन सलमान की ओर से ही आए थे। इससे पहले बाइडन प्रशासन यह भी साफ़ कर चुका है कि वे सऊदी अरब के साथ कूटनीतिक वार्ता के लिए MBS से ज़्यादा सऊदी के आधिकारिक राजा किंग सलमान को तवज्जो देंगे, जिससे सऊदी-US के रिश्तों में और तनाव बढ़ सकता है। ऐसा करके बाइडन प्रशासन सीधे तौर पर सऊदी अरब की घरेलू राजनीति में हस्तक्षेप करके MBS का कद छोटा करना चाहते हैं, जो MBS को कतई पसंद नहीं आएगा।

बाइडन प्रशासन का यही रुख इज़रायल के प्रति भी देखने को मिल रहा है। 18 फरवरी को हमने अपने एक लेख में आपको बताया था कि कैसे बाइडन नेतनयाहु को इज़रायल के प्रधानमंत्री पद से हटाना चाहते हैं। कुछ विश्लेषक इस बात को स्वीकार करते हैं कि प्रधानमंत्री नेतनयाहु के ट्रम्प के साथ नजदीकी रिश्तों के चलते बाइडन उन्हें नापसंद करते हैं। बाइडन जिस प्रकार ईरान के साथ घुटने टेककर, उसपर से प्रतिबंध हटाकर तेहरान को JCPOA समझौते (ईरान न्यूक्लियर डील) में शामिल करना चाहते हैं, उसने भी इज़रायल के हितों को नुकसान पहुंचाया है, जिससे घरेलू राजनीति में नेतनयाहु कमज़ोर पड़ सकते हैं।

नेतनयाहु वर्ष 2009 से इज़रायल के प्रधानमंत्री हैं और पिछले दो सालों से वे घरेलू राजनीति में जूझते दिखाई दे रहे हैं। पिछले दो सालों में इज़रायल में तीन बार आम चुनाव हो चुके हैं और तीनों बार कोई भी पार्टी बहुमत हासिल नहीं कर पाई है। मार्च में इज़रायल में दोबारा चुनाव होने हैं और ऐसे में बाइडन ईरान के समर्थन में और सऊदी-इज़रायल के खिलाफ़ कदम उठाकर नेतनयाहु को कमजोर करना चाहते हैं।

जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजों आबे के साथ और फिर जापान के मौजूदा प्रधानमंत्री योशीहिदे सुगा के साथ भी ट्रम्प के अच्छे संबंध थे और अब बाइडन अपनी विदेश नीति के तहत जापान को आड़े हाथों ले रहे हैं। अमेरिका ने जापान को एक बड़ा झटका देते हुए Indo-Pacific में अपनी सेना की तैनाती पर पुनर्विचार करने का फैसला लिया है, जो आखिर में जापान से अमेरिकी सैनिकों और अमेरिकी जंगी जहाजों को बाहर निकालने का सबसे बड़ा कारण बनके उभरेगा! अकेले जापान में ही अमेरिका की Indo-Pacific कमांड के 50 हज़ार सैनिक तैनात हैं, जिनमें से आधे तो जापान के ओकिनावा बेस पर तैनात हैं। इसके साथ ही अकेले Yokosuka बेस पर अमेरिका के 12 बड़े-बड़े जंगी जहाज़ तैनात हैं। अब अमेरिका की नई Indo-pacific नीति के तहत इन सभी संसाधनों को “ज़्यादा बेहतर सुरक्षा कवच” के लिए ज़्यादा क्षेत्र में तैनात किया जाएगा।

अमेरिका की नई Indo-Pacific पॉलिसी के तहत जापान की सुरक्षा के प्रति अमेरिका की प्रतिबद्धता के साथ समझौता किया जाएगा, जो इस वक्त जापान की पीठ में छुरा घोंपने के समान होगा। वर्ष 1960 में जापान-अमेरिका के बीच हुए सुरक्षा समझौते के तहत अगर कोई भी देश जापान पर आक्रमण करता है, तो अमेरिका को उसकी सहायता के लिए आगे आना ही पड़ेगा। हालांकि, पिछले दिनों ही अमेरिकी सुरक्षा विभाग के प्रवक्ता John Kirby ने जापान को एक बड़ा झटका देते हुए कहा था कि अमेरिका Senkaku Islands पर जापान के दावों का समर्थन नहीं करता है।

वह भी तब जब कुछ दिनों पहले ही चीन ने दक्षिण चीन सागर और पूर्वी सागर में आक्रामकता दिखाते हुए अपनी कोस्ट गार्ड को विदेशी घुसपैठियों पर ओपन फायर करने का फैसला सुनाया था। ऐसे में अमेरिकी सरकार का यह फैसला सुगा प्रशासन के लिए कई बड़ी चुनौती पैदा कर सकता है।

बाइडन प्रशासन का ठीक यही रवैया भारत को लेकर भी देखने को मिल चुका है। Howdy Modi से लेकर Namaste Trump कार्यक्रम तक, भारतीय प्रधानमंत्री ने डोनाल्ड ट्रम्प के साथ अपनी दोस्ती को प्रदर्शित करने में कभी आनाकानी नहीं दिखाई। शायद यही कारण है कि बाइडन ने राष्ट्रपति बनने के बाद पीएम मोदी को करीब 20 दिनों के बाद फॉन कॉल किया। इतना ही नहीं, अभी एक अमेरिकी थिंक टैंक ने अपने भारत विरोधी अभियान के तहत यह घोषणा की है कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व के दौरान भारत अब एक आज़ाद देश नहीं रह गया है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक, 210 देशों के Global Freedom Index में भारत पांच स्थान नीचे आया है और अब उसकी रैंक 83 से 88 हो गई है। इस सब के बाद भारत में मोदी सरकार लिबरलों के साथ-साथ वैश्विक भारत-विरोधी गैंग के निशाने पर आ गयी है, जिसका एकमात्र मकसद है भारत सरकार को कमज़ोर करना! यह सब बाइडन प्रशासन के अंतर्गत हो रहा है, ऐसे में इसको लेकर किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए!

बाइडन प्रशासन को अब भी यह लगता है कि अमेरिका अपने Deep State की बदौलत दुनिया की राजनीति पर एकतरफा प्रभाव ड़ाल सकता है, जो उनकी बहुत बड़ी भूल साबित होगी। खुलेआम राष्ट्राध्यक्षों के खिलाफ छेड़ी गयी इस मुहिम का नतीजा यह होगा कि अमेरिका के साथी देश उसे छोड़ने पर मजबूर हो जाएंगे, जो कि अमेरिका के सबसे बड़े दुश्मन चीन को फायदा पहुंचाएगा!

 

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