मध्य पूर्व के OPEC देशों को भारत ने दिया कड़ा संदेश, भारत अब गयाना से तेल आयात करेगा

कच्चे तेल के लिए भारत की गल्फ देशों पर निर्भरता होगी खत्म

आज भारत में बढ़ते crude oil की कीमतों से सभी परेशान है और इस परेशानी से निजात पाने के लिए भारत सरकार अब गयाना से crude oil आयात करने की तैयारी में है। दरअसल, बात यह है कि, भारत अभी तक अपना 80 प्रतिशत तेल middle east देशों से आयात करता है, लेकिन निरंतर बढ़ते कीमतों से तंग आकार भारत ने सऊदी अरब से तेल उत्पादन की मात्रा बढ़ाने की बात की जिससे कीमतों पर अंकुश लगाया जा सके। सऊदी अरब ने भारत की नहीं सुनी जिसके चलते भारत ने दूसरा विकल्प ढूंढ़ निकाला है।

अगर हम विस्तार में बताए तो,OPEC देशों ने जान बूझकर तेल का उत्पादन कम कर दिया, ताकि तेल की कीमत बढ़ाकर वे अपना एकाधिकार बनाए रखे। भारत और गैर OPEC देश इस रवैया से काफी परेशान थे, इसके बाद मार्च की शुरुआत में भारत के पैट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने उत्पादन बढ़ाने की मांग की, लेकिन सऊदी अरब ने बात नहीं मानी जिसका नतीजा यह हुआ कि भारत ने दूसरा रास्ता अपना लिया और गयाना के साथ डील कर ली। अगर आप घटनाक्रम पर ध्यान दें तो देखेंगे सऊदी अरब को भारत को माना किए अभी एक महीना भी नहीं हुआ था और भारत ने दूसरा विकल्प ढूंढ़ निकाला है।

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बता दें कि, भारत ने गयाना के साथ केवल डील तय नहीं की है बल्कि इसी महीने गयाना से तेल की पहली खेप भी भारत आ रही है जो ट्रेडिंग फर्म Trafigura के मदद से आ रही है। नव भारत टाइम्स के एक सूत्र के मुताबिक, गयाना का यह तेल cargo भारत के HPCL-Mittal energy limited मंगा रहा है । यह बताया जा रहा है कि, HPCL-Mittal energy limited और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन और स्टील tycoon LV Mittal के बीच joint venture है।

इस डील से पहले भारत पैट्रोल के लिए गल्फ देशों पर ज्यादा निर्भर हुआ करता था, इतना कि देश में उपयोग होने वाला 80 प्रतिशत तेल वहीं से आता था। आज पूरी दुनिया OPEC देशों पर निर्भर है, जिससे वो मनमानी और एकाधिकार दिखा रहे थे। वर्ष 2020 और वर्ष 2021 के बीच भारत का आयात OPEC देशों के साथ कम होते जा रहा है साथ ही वर्ष 2020 में भारत की Indian Oil Corporation और रूस की Rosneft ने crudeoil के लिए contract साइन किया था।

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वर्ष 2020 के बाद 2021 में भारत ने गयाना के साथ तेल के लिए साझेदारी की थी। भारत की नज़र से यह तीनों घटनाक्रमों को देखे तो यह अनुमान लगा सकते है कि, भारत पिछले वर्ष से ही गल्फ देशों पर निर्भर नहीं होना चाहता था और उनके एकाधिकार को खत्म करने के प्रयास बीते कुछ समय से कर चल रहे है।

बीते घटनाकर्म को देखे तो यह भी संदेश मिलता है कि, मार्च के शुरुआत में धर्मेंद्र प्रधान का सऊदी अरब से तेल उत्पादन बढ़ाने का मांग करना, कोई गुहार नहीं थी बल्कि एक आखरी मौका था। जिसके पीछे की कहानी भारत बहुत दिनों से रच रहा था। सिर्फ इतना ही नहीं भारत में electronic गाड़ियो को बढ़वा देना और सौर्य ऊर्जा पर निर्भरता को बढ़वा देना संकेत देता है कि भारत गल्फ देशों की दादागिरी को जड़ से खत्म करने के तैयारी भी कर चुका है।

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