भारत में अवैध रूप से रह रहे घुसपैठिए किस प्रकार से देश की सुरक्षा और अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक है, इसके बारे में कोई विशेष शोध की आवश्यकता नहीं है। लेकिन इस बार केंद्र सरकार रहम के मूड में बिल्कुल नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष रोहिंग्या घुसपैठियों से संबंधित एक मामले में केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया कि वह देश को घुसपैठियों का डेरा नहीं बनने देंगे।
दरअसल जम्मू कश्मीर में हिरासत में लिए गए रोहिंग्या घुसपैठियों के लिए यूएन के एक प्रतिनिधि ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें कहा गया कि तत्काल प्रभाव से ‘शरणार्थियों’ को रिहा किया जाए और केंद्र सरकार से कहा जाए कि उन्हे सभी प्रकार की सुविधाएँ दी जाए, जो एक शरणार्थी को मिलती है ।
यह याचिका प्रशांत भूषण ने दायर करवाई, जो इस मामले में उक्त याचिककर्ता के अधिवक्ता भी हैं। लेकिन अपने रुख में केंद्र सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि वे किसी के दबाव में कोई निर्णय नहीं लेंगे। जब म्यांमार कहेगा, तो ही रोहिंग्या घुसपैठियों को डिपोर्ट किया जाएगा, अन्यथा कानून का उल्लंघन करने पर उन्हे हिरासत में लिया जाएगा। जब उनसे पूछा गया कि वे ऐसा क्यों मानते हैं, तो सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे महाधिवक्ता तुषार मेहता ने दो टूक जवाब दिया, “हम भारत को घुसपैठियों के डेरे में नहीं तब्दील नहीं कर सकते।”
बता दें कि 2017 में रोहिंग्या आतंकियों के कहर के चलते म्यांमार की सेना और जनता को इस समुदाय के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करने को बाध्य होना पड़ा। इनके गढ़ राखीन प्रांत में रोहिंग्या समुदाय के लोगों पर ताबड़तोड़ कार्रवाई हुई, जिसके चलते इन लोगों ने भागकर भारत में घुसपैठ की, और कई राज्यों में अपना डेरा भी जमा लिया।
परंतु केंद्र सरकार इस विषय पर किसी भी प्रकार की नरमी नहीं बरत रही है। केंद्र सरकार रोहिंग्या घुसपैठियों को लेकर बेहद सख्त है, जिसका उदाहरण हमें उत्तर प्रदेश में देखने को मिला है। इसके अलावा जम्मू कश्मीर में अभी हाल ही में कई रोहिंग्या घुसपैठियों को पकड़ने में सरकार ने कामयाबी पाई, और उन्हे जेल भेज दिया गया। यही नहीं, दिल्ली में उत्तर प्रदेश के सख्त रुख के कारण स्थानीय प्रशासन को यूपी सरकार को आवंटित जमीन पर किए गए रोहिंग्या समुदाय द्वारा कब्जे को भी हटाना पड़ा।
लेकिन कुछ प्रशांत भूषण जैसे लोग भी हैं, जो ‘मानवता’ और ‘सेक्युलरिज्म’ के नाम पर देश को हिंसा और अराजकता की आग में झोंकने से भी नहीं हिचकिचाते। अक्सर कई भारत विरोधी याचिकाओं को लेकर प्रशांत भूषण कई बार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा चुके हैं, और कई बार तो सुप्रीम कोर्ट का समय बर्बाद करने के लिए दुतकारे भी गए हैं।
लेकिन मजाल हैं कि प्रशांत भूषण अपनी हरकतों से बाज आ जाए, और इस बार भी जनाब ने फिर से अपनी भद्द पिटवाने के लिए रोहिंग्या समुदाय की पैरवी करने सुप्रीम कोर्ट पहुँच गए। लेकिन केंद्र सरकार ने भी अपने रुख से स्पष्ट कर दिया कि चाहे कुछ भी हो जाए, पर न तो रोहिंग्या समुदाय की दादागिरी चलेगी, और न ही उनके नाम पर सुप्रीम कोर्ट का समय बर्बाद करने वाले प्रशांत भूषण जैसे अधिवक्ता अपनी मनमानी कर पाएंगे। अपने रुख से केंद्र सरकार ने स्पष्ट संदेश दिया है – भारत अमेरिका नहीं है, जो चंद बुद्धिजीवियों को खुश करने के लिए पूरे देश को आग में झोंक देगा।