अक्सर आपने सुना होगा कि कैसे कुछ स्वघोषित थिंक टैंक अपने अपने फ़्रीडम इंडेक्स और डेमोक्रेसी इंडेक्स के नाम पर भारत की छवि को धूमिल करने के लिए दिन रात एक करते हैं। मजे की बात तो यह भी है कि इन्ही इंडेक्स में पाकिस्तान और चीन को भारत से बेहतर आँका करता है, जबकि सच्चाई इससे कोसों दूर है। लेकिन अब इन प्रोपगैंडावादियों का प्रपंच और नहीं चलेगा।
हाल ही में विदेश मंत्रालय ने एक योजना को अपनी स्वीकृति दी है। इस योजना के अंतर्गत भारत आधारित थिंक टैंक को बढ़ावा दिया जाएगा। किस देश में कितना लोकतंत्र है, अब भारत भी अपने थिंक टैंक के जरिए दुनिया को सच्चाई से अवगत कराएगा। इसके साथ ही उन रिपोर्टों का भी मुंहतोड़ जवाब देगा, जिनमें भारत को बिना किसी ठोस आधार के कमतर आंका जाता है।
हिंदुस्तान की रिपोर्ट के अनुसार, “विदेश मंत्रालय स्वतंत्र भारतीय थिंक टैंक के आधार पर वर्ल्ड डेमोक्रेसी रिपोर्ट और ग्लोबल प्रेस फ्रीडम इंडेक्स लाने की तैयारी कर रहा है। सरकारी दस्तावेजों से परिचित लोगों के अनुसार, विदेश मंत्रालय एक ‘वर्ल्ड डेमोक्रेसी रिपोर्ट’ के साथ-साथ एक स्वतंत्र भारतीय थिंक टैंक द्वारा लाया जाने वाला ‘ग्लोबल प्रेस फ्रीडम इंडेक्स’ पर भी विचार कर रहा है। बता दें कि हाल ही में फ्रीडम हाउस और वी-डेम इंस्टीट्यूट की हालिया रिपोर्टों में भारत की लोकतांत्रिक रैंकिंग में गिरावट आई थी”
विदेश मंत्रालय द्वारा तैयार आंतरिक नोट के अनुसार, “हम भारतीय स्वतंत्र थिंक टैंकों को प्रोत्साहित कर सकते हैं कि वे व्यापक मापदंडों के साथ-साथ प्रेस इंडेक्स की वार्षिक वैश्विक स्वतंत्रता के आधार पर अपनी वार्षिक वर्ल्ड डेमोक्रेसी रिपोर्ट यानी विश्व लोकतंत्र रिपोर्ट तैयार करें।” अभी ये स्पष्ट नहीं है कि विदेश मंत्रालय किस हद तक इन थिंक टैंक्स को बढ़ावा देंगी, लेकिन इतना तो तय है कि इस मामले पर विचार किया जा रहा है।
लेकिन विदेश मंत्रालय को इस दिशा में क्यों आगे बढ़ना पड़ा? दरअसल, पिछले सप्ताह स्वीडन के वी-डेम इंस्टीट्यूट की डेमोक्रेसी रिपोर्ट में कहा गया कि भारत दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र से चुनावी ‘तानाशाह’ वाले देश में बदल गया है। इसमें भारत को हंगरी और तुर्की के साथ रखा गया है और कहा गया है कि देश में लोकतंत्र के कई पहलुओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इससे पहले अमेरिकी सरकार के एक एनजीओ फ्रीडम हाउस ने भी अपनी ताजा रिपोर्ट में इसी तरह की बात कही थी। ‘2021 में विश्व में आज़ादी- लोकतंत्र की घेरेबंदी’ शीर्षक से जारी की गई इस रिपोर्ट में भारत को आजाद से कम आजाद की श्रेणी में रखा गया था।
लेकिन ये कोई नई बात नहीं है। ऐसे न जाने कितने स्वघोषित थिंक टैंक और एनजीओ हैं, जो जानबूझकर भारत को कमतर आँकते हैं, सिर्फ इसलिए क्योंकि यहाँ पर उनके पसंद की सरकार नहीं है। इस पक्षपात को लेकर कुछ दिनों पहले विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने भी इन संगठनों को आड़े हाथों लेते हुए कहा था, “इंडिया टुडे के न्यूज़ डाइरेक्टर राहुल कंवल ने पूछा की, कुछ विदेशी संस्थान भारत के खिलाफ जहर उगल रहे है और उनका यह भी कहना है की जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत का सत्ता संभाला है तबसे हिंदुस्तान के लोकतंत्र के ऊपर खतरा बढ़ रहा है। इसके जवाब मे विदेश मंत्री ने कहा, ”आप जिन रिपोर्ट की बात कर रहे हैं, ये लोकतंत्र और निरंकुश शासन की बात नहीं है बल्कि यह एक पाखंड है। दरअसल, ये वे लोग हैं जिनके हिसाब से चीजें नहीं होती हैं तो इनके पेट में दर्द होने लगता है। इन्होंने खुद को दुनिया का कस्टोडियन (रक्षक) बना लिया है और चंद लोगों की नियुक्तियां कर दी हैं। ये खुद ही मानडंद तय करते हैं और फैसले देने लगते हैं।”
जयशंकर ने आगे ये भी कहा, “जब ये बीजेपी की बात करते हैं तो हिन्दू राष्ट्रवादी कहते हैं। हम राष्ट्रवादी हैं और 70 देशों में वैक्सीन पहुंचाई। जो खुद को अंतरराष्ट्रीयवाद के पैरोकार मानते हैं, उन्होंने कितने देशों में वैक्सीन पहुंचाई है? भारत ने खुलकर कहा कि हम अपने लोगों के साथ उन देशों का भी ख्याल रखेंगे जो जरूरतमंद हैं। हां, हमारी भी आस्थाएं हैं, मूल्य हैं लेकिन हम अपने हाथ में धार्मिक पुस्तक लेकर पद की शपथ नहीं लेते हैं। हमें किसी के सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं हैं। हमें खुद को ही आश्वस्त करना है। वे एजेंडा के तहत ऐसा करते हैं।”
ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि भारत ने अब स्वघोषित थिंक टैंक एवं एनजीओ के दबाव में झुकना बंद कर दिया है। जिस प्रकार से विदेश मंत्रालय भारत आधारित थिंक टैंक को बढ़ावा देने पर विचार कर रहे हैं, वह न सिर्फ सराहनीय हैं, बल्कि वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार आवश्यक भी है।