हेमंत सोरेन के निजी क्षेत्र की नौकरियों में 75% आरक्षण से झारखंड के अप्रवासी आधारित उद्योग बंद हो जायेंगे

रोजगार आज के दौर में देश की राजनीति का एक अहम मुद्दा है, लेकिन अब इस मुद्दे पर देश में स्थानीय बनाम बाहरी का एक नया ही ट्विस्ट आ गया है। हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर शासित एनडीए सरकार ने इस मसले पर अपने डिप्टी और गठबंधन के साथ दुष्यंत चौटाला के दबाव में निजी कंपनियों में भी 75 फीसदी स्थानीय लोगों को रोजगार के लिए आरक्षण देने की बात कही है। अब इस मुद्दे पर झारखंड सरकार भी हरियाणा की नकल करने की तैयारी कर चुकी है, लेकिन झारखंड सरकार का ये फैसला राज्य के लिए आर्थिक रूप से नई तबाही लाने वाला साबित होगा।

झारखंड एक ऐसा राज्य हैं जहां आदिवासियों और दलितों के लिए पहले ही नौकरी को लेकर कई तरह के सार्थक प्रावधान हैं, लेकिन अब राज्य की हेमंत सोरेन सरकार निजी कंपनियों पर भी स्थानीय लोगों को नौकरी देने के लिए दबाव बनाने की रणनीति लागू करने वाली है जो कि झारखंड की अर्थव्यवस्था के लिए बेहद ही खतरनाक होगी। रोजगार के मुद्दे पर झारखंड सरकार हरियाणा सरकार के ही एक विवादित कानून को राज्य में लागू करने  की रणनीति बना रही है, जिसको लेकर सोरेन की कैबिनेट ने एक बड़ा फैसला लिया है।

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दरअसल, हाल ही में झारखंड सरकार की सोरेन कैबिनेट ने एक बड़े नियम को लाने की तैयारी कर ली है जिसके तहत निजी कंपनियों को भी 75 फीसदी स्थानीय लोगों को रोजगार देना ही होगा। सरकार इस मामले में काफी सक्रिय दिखाई दे रही है और संभावनाएं हैं कि आने वाले अगले विधानसभा सत्र में सरकार इस मामले में एक विधेयक भी ले आए, जिसके पारित होते ही राज्य में  नौकरियों को लेकर एक बड़ा बदलाव होने वाला है। इसके अलावा कैबिनेट अपनी एक नई योजना शुरु करने की बात भी कह रही है जिसके जरिए प्रदेश के तकनीकी रूप से सक्षम बेरोजगारों को सरकार द्वारा प्रतिवर्ष  बेरोजगारी भत्ता देने की तैयारी कर रही है जो कि झारखंड सरकार के राजकोष पर बोझ बढ़ाने वाला है। 

पहली नजर में देखने पर तो कहा जा सकता है कि हरियाणा सरकार ने सच में एक बड़ा ही बोल्ड स्टेप लिया है लेकिन ये बोल्ड स्टेप राज्य के लिए आर्थिक रूप से मुसीबत बनने वाला है। हाल ही में हरियाणा सरकार इस मुद्दे पर एक कानून ला चुकी है जिसके अंतर्गत राज्य मे स्थापित सभी निजी कंपनियों को नौकरियों में भर्ती के लिए 75 फीसदी स्थानीय लोगों को आरक्षण देना होगा। खट्टर सरकार ने ये फैसला अपनी गठबंधन के साथी जेजेपी के नेता दुष्यंत सिंह चौटाला की जिद पर लिया है कि लेकिन इससे हरियाणा और खासकर गुरुग्राम पर आर्थिक रूप से काफी नाकारात्मक असर पड़ने वाला है। 

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हरियाणा सरकार के इस फैसले के बाद गुरुग्राम की कंपनियों ने अपना कारोबार समेट कर नोएडा समेत देश के अन्य क्षेत्रों मे जाने की तैयारी कर ली है। दूसरी ओर अगर हेमंत सोरेन सरकार के फैसले पर नजर डालें तो झारखंड में बड़ी संख्या में बिहार, बंगाल और छत्तीसगढ़ से प्रवासी मजदूर काम करने आते हैं, और खास बात ये भी है कि राज्य में कोई खास कंपनियां भी नहीं हैं। ऐसे में झारखंड सरकार के 75 फीसदी आरक्षण के फैसले के बाद बची हुई कंपनियां भी राज्य से अपना कारोबार समेट लेंगी। वहीं दूसरे राज्यों से काम करने आने वाले प्रवासी मजदूरों का वापस जाना झारखंड के लिए झटका होगा क्योंकि राज्य की एक बड़ी अर्थव्यवस्था और व्यापार इन्हीं प्रवासी मजदूरों पर निर्भर करता है। 

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