जंगल महल की लड़ाई- ममता हत्या के आरोपी और पूर्व माओवादी छत्रधर को BJP के खिलाफ इस्तेमाल कर रही हैं

हत्या का आरोपी, ममता का प्यारा!

ममता

(PC: tv9hindi)

भारत में तुष्टिकरण की राजनीति का पुराना इतिहास रहा है। इस तुष्टिकरण के लिए राजनीतिक पार्टियों को अगर मर्डर के आरोपी को भी चुनावी चेहरा बनाना होता है तो ये पीछे नहीं हटती हैं। पश्चिम बंगाल के चुनाव में भी यही देखने को मिल रहा है। ममता बनर्जी आदिवासियों को लुभाने के लिए हत्या के आरोपी, पीसीपीए का प्रमुख चेहरा और दस वर्षों तक माओवादी गतिविधियों में शामिल होने के मामले में जेल में कैद रहे छत्रधर महतो को बीजेपी के खिलाफ तुरुप का इक्का बना रही हैं।

पश्चिम बंगाल का जंगल महल इलाका आदिवासी प्रमुख क्षेत्र है। पश्चिमी मेदिनीपुर, बांकुरा, पुरुलिया, झाड़ग्राम जैसे जिलों में कुल 42 विधानसभा सीटों पर बीजेपी और ममता बनर्जी के बीच टक्कर है। पिछले विधान सभा में तो TMC ने 40 में से 31 पर जीत हासिल की थी लेकिन 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 6 लोकसभा सीटों में से 5 पर जीत दर्ज की। इस प्रदर्शन से ममता बनर्जी पूरी तरह से डरी हुई हैं। इसी कारण उन्होंने छत्रधर महतो को मैदान में उतारा है। चुनाव लड़ाने के लिए टीएमसी ने पहले सजा कम कराकर फरवरी में महतो को जेल से रिहा कराया और अब तृणमूल कांग्रेस में उन्हें राज्य कमेटी में शामिल कर सचिव बना दिया।

बता दें कि साल 2008 और साल 2011 के बीच राज्य सरकार के खिलाफ पीसीपीए आंदोलन का चेहरा, महतो को सितंबर 2009 पुलिस ने गिरफ्तार किया था। इसके बाद यूएपीए के तहत आरोप लगा और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।

वह 11 साल बाद सलाखों के पीछे से फरवरी 2020 में बाहर आया या यूँ कहे कि TMC सरकार द्वारा बाहर लाया गया। तब से ही वह जंगलमहल के माओवादी बेल्ट में तृणमूल के लिए काम कर रहा है। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने गुरुवार को PCAPA के पूर्व नेता छत्रधर महतो को हत्या के एक मामले में एक सप्ताह में तीन बार एनआईए कार्यालय में उपस्थित होने का निर्देश दिया।

हालाँकि ममता बनर्जी को 2018 के पंचायत चुनाव के बाद ही संकेत मिलने लगा था कि आदिवासी क्षेत्र में हालात बदलने लगे हैं। बीजेपी ने झाड़ग्राम में 42 फीसदी और पुरुलिया में 33 फीसदी वोट हासिल किए थे। एक साल बाद, लोकसभा के नतीजों में भाजपा की पांच लोकसभा क्षेत्रों में जीत ने इस बात पर मुहर लगा दी। टीएमसी ने महसूस किया कि आदिवासी एसटी वोट (29 फीसदी) को जीतने के लिए उन्हें एक आदिवासी चेहरे की जरूरत थी और इसके लिए उनके पास महतो से बेहतर कोई नहीं था।

छत्रधर महतो के आजीवन कारावास की सजा को कम करने के लिए TMC तिकड़म लगाने लगी। इतना ही नहीं ममता बनर्जी ने उसके परिवार की निष्ठा सुनिश्चित करने के लिए उसके दो बेटों को सरकारी नौकरी भी दे दी। इसी छत्रधर महतो के सहारे में ममता ने वर्ष 2008 के पंचायत, 2009 के लोकसभा और 2011 के विधानसभा चुनाव में वाममोर्चा का लालदुर्ग कहे जाने वाले जंगमलह में सेंधमारी की थी।

साल 2008 में वाममोर्चा के तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य के काफिले को उड़ाने की नाकाम कोशिश करने वाले आरोपी छत्रधर महतो को सितंबर 2009 में गिरफ्तार किया गया था। इसके बाद से ही ममता बनर्जी उसकी रिहाई की मांग करती रहती थीं। अब जा कर उन्होंने समय की मांग को देखते हुए महतो की रिहाई कराई है।

टीएमसी को लगता है कि एक बार फिर से महतो उनकी जीत सुनिश्चित कर सकते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर माहौल कुछ अलग है। Bharat Jakat Manjhi Pargana Mahal (संथालों का एक संगठन) के कृष्ण मुर्मू का कहना है कि, “आदिवासियों को लगता है कि ममता ने उनके साथ विश्वासघात किया है। हमने उन्हें सुशासन की उम्मीद के लिए चुना, लेकिन उन्होंने अपने भ्रष्टाचारी नेताओं को खुली छुट दे दी है। हमें (आदिवासियों) को तो कुछ नहीं मिला, जबकि कट्टर माओवादियों को मुआवजे के पैकेज के साथ पुनर्वासित किया गया और उन्हें नौकरी भी दी गई।”

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष भी मानते हैं कि महतो की रिहाई करवा कर टीएमसी ने माओवादियों को एकजुट करने का प्रयास कर रही हैं।

अब यह देखना है हत्या के आरोपी को चुनावी चेहरा बना कर ममता बनर्जी को इस विधानसभा चुनाव में कितना फायदा होता है।

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