कमला नेहरू ट्रस्ट घोटाला- कांग्रेस का योगी राज में ट्रस्ट के बहाने जमीन लूटने का खेल हुआ खत्म

दिमाग हिलाने वाला कांड!

ट्रस्ट

PC: breakingtube.com

कांग्रेस और घोटालों का नाता काफी गहरा रहा है। चाहे सत्ता में हो, या उसके बाहर, कांग्रेस के लालच की कोई सीमा नहीं रही है। इसी लालच का एक और प्रत्यक्ष प्रमाण अभी हाल ही में सामने आया है, जब कमला नेहरू ट्रस्ट के नाम से जमीन की हेराफेरी करने के आरोप में उत्तर प्रदेश पुलिस ने पूर्व कांग्रेसी सांसद के बेटे समेत 12 लोगों पर FIR दर्ज की।

ANI की रिपोर्ट के अनुसार, जिला प्रशासन ने ट्रस्ट को जमीन देने में सरकारी अभिलेखों में छेड़छाड़ करने वाले ट्रस्ट के पदाधिकारी, तत्कालीन अधिकारी और कर्मी समेत 12 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कराया है। ADM (वित्त एवं राजस्व) ने शहर कोतवाली में इसकी तहरीर दी थी, जिसके आधार पर मामला दर्ज हुआ। ADM प्रेम प्रकाश उपाध्याय ने इस मामले में कांग्रेस की पूर्व सांसद शीला कौल के बेटे विक्रम कौल, ट्रस्ट के सचिव सुनील देव, तत्कालीन ADM (वित्त एवं राजस्व) मदनपाल आर्य, सब-रजिस्ट्रार घनश्याम, प्रशासनिक अधिकारी विंध्यवासिनी प्रसाद, नजूल लिपिक रामकृष्ण श्रीवास्तव और गवाह सुनील तिवारी के खिलाफ मामला दर्ज कराया”

FIR के अनुसार, उक्त आरोपियों ने नाजुल भूमि को धोखे से फ्रीहोल्ड प्रॉपर्टी में परिवर्तित करवाकर पूरी जमीन गांधी परिवार से संबंधित ट्रस्ट, विशेषकर कमला नेहरू ट्रस्ट के नाम करवा दी। नाजुल भूमि वो भूमि है जिसपर कोई दावा नहीं करता, और इसका प्रशासन अक्सर राज्य सरकार के आधीन होता है।

लेकिन ये कमला नेहरू ट्रस्ट है क्या, और इससे संबंधित घोटाले के पीछे कांग्रेस हाइकमान से संबंध कैसे जोड़ा जा रहा है? यह ट्रस्ट 1976 में प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की पत्नी के नाम पर स्थापित किया गया था। दिलचस्प बात तो यह है कि कांग्रेस की पूर्व सांसद शीला कौल के अलावा इस ट्रस्ट से सलमान खुर्शीद, पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के ससुर उमाशंकर दीक्षित, इंदिरा गांधी के निजी सचिव यशपाल कपूर और वरिष्ठ अधिवक्ता ललित भसीन जैसे लोग भी जुड़े हुए थे।

इस जमीन पर एक महाविद्यालय बनाया जाना था। इसके लिए प्रस्ताव भी तैयार कर किया गया था, और शहर के सिविल लाइंस स्थित करीब 5 बीघा भूमि कमला नेहरू ट्रस्ट के नाम की गई थी। लेकिन, जमीन 30 वर्षों से अयोग्य पड़ी हुई थी और कई लोगों ने यहां पर दुकानें खोल ली थी। इसीलिए शायद आर्थिक अपराध विभाग को पत्र लिखते हुए कांग्रेस की बागी MLA अदिति सिंह ने इस सोसाइटी के नाम पर हो रहे घोटालेबाज़ी के विरुद्ध गहन जांच पड़ताल की गुहार लगाई थी।

इन सबके अलावा सरकारी अभिलेखों में छेड़छाड़ के मामले में तत्कालीन तहसीलदार कृष्ण पाल सिंह, प्रभारी कानूनगो प्रदीप श्रीवास्तव, लेखपाल प्रवीण कुमार मिश्रा, नजूल लिपिक छेदीलाल जौहरी समेत अन्य पदाधिकारियों पर FIR दर्ज की गई है। सिटी मजिस्ट्रेट ने जब दस्तावेजों की जाँच की तो कई जगह सफ़ेद रंग लगा था। तत्कालीन DM की अनुमति नहीं ली गई थी। शायद इसीलिए 2020 में इस भूमि पर बने अवैध दुकानों और अन्य इमारतों को उत्तर प्रदेश प्रशासन ने ताबड़तोड़ कार्रवाई में ढहा दिया था।

इसी विषय पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सूचना सलाहकार शलभ मणि त्रिपाठी ने FIR की कॉपी शेयर करते हुए लिखा, “कांग्रेस और जमीन का गहरा नाता है। जमीन पर काम करने का नहीं, जमीन लूटने का। अमेठी में ‘सम्राट साइकिल के नाम पर गरीबों की जमीन लूटने के बाद अब तैयारी थी सोनिया गांधी के इलाके रायबरेली में बेशकीमती जमीन हथियाने की। लेकिन, योगीराज में दाल ना गली, उल्टे कमला नेहरू ट्रस्ट पर ही हो गई संगीन FIR”।

ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि कांग्रेस के लालच की कोई सीमा नहीं रही है। सत्ता से बाहर होने के लगभग 7 साल बाद भी उसकी काली करतूतें एक के बाद एक उजागर हो रही हैं। एक जमीन के टुकड़े के पीछे ये पार्टी अपनी नैतिकता को किस तरह से नीलाम करने को तैयार है, ये अब सबके सामने उजागर हो चुका है, और योगी प्रशासन इन्हें बिल्कुल नहीं बख्शने वाला।

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