17 मार्च 2020 को कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक बेहद ही विचित्र फैसला सुनाया जिसमें कहा कि पॉलीग्राफ टेस्ट (lie-detector test) को आरोपी व्यक्ति की लिखित सहमति प्राप्त किए बिना नहीं किया जा सकता है। कोर्ट का ये फैसला अपराधियों के लिए तो अच्छा है, परंतु जांच में शामिल अधिकारियों के लिए कई मुश्किलें खड़ी कर सकता है।
कर्नाटक उच्च न्यायालय के सिंगल बेंच के न्यायाधीश सूरज गोविन्दराज ने यह फैसला वीरेंद्र खन्ना बनाम कर्नाटक राज्य मामले में सुनाया। कोर्ट ने कहा कि अभियुक्त का पॉलीग्राफ टेस्ट उसकी सहमति के बिना नहीं किया जा सकता, अथवा अभियुक्त के मन में किसी तरह का संदेह नहीं होना चाहिए और सूचित किए जाने के बाद परीक्षण के निहितार्थ के बारे में अवगत कराया जाना चाहिए। अगर अभियुक्त व्यक्ति पॉलीग्राफ टेस्ट को लेकर कोई प्रतिक्रिया नहीं देता है तो उसकी चुप्पी को उसकी स्वीकृति न समझा जाये।
उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में सुनाया कि,”पॉलीग्राफ टेस्ट के प्रशासन को किसी भी तरह के टेस्ट को करने से पहले अभियुक्त व्यक्ति से लिखित में सहमति प्राप्त करना जरूरी है“। न्यायालय ने आगे कहा कि, “केवल इसलिए कि एक आरोपी चुप है, या वो पॉलीग्राफ टेस्ट के प्रशासन को दिए हुए आवेदन को स्वीकार नहीं कर रहा और न ही खारिज करता है तो इसे उस व्यक्ति की सहमती न समझा जाये।“
29 मार्च, 2020 को ट्रायल कोर्ट के एक आदेश को चुनौती देने वाली याचिका में फैसला सुनाया गया था। इस फैसले के तहत 2018 में दर्ज एक ड्रग मामले में एक पार्टी के आयोजक और एक आरोपी वीरेंद्र खन्ना को पॉलीग्राफ टेस्ट से गुजरना था जिसके लिए उन्हें सहयोग करना था। इसके अलावा वीरेंद्र खन्ना को अपने स्मार्टफोन में मौजूद डाटा और ईमेल खातों के पासवर्ड सहित जांच के लिए पुलिस को देना था।
उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि संबंधित अदालत की लिखित अनुमति के बिना जांच अधिकारी को किसी भी अभियुक्त के स्मार्टफोन या इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स से जब्त किए गए निजी डेटा का खुलासा करने का कोई अधिकार नहीं है।
उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि, किसी भी तरह के पॉलीग्राफ टेस्ट के लिए एक आवेदन उस व्यक्ति को दिया जाना चाहिए, जिस पर पॉलीग्राफ परीक्षण किया जाना है, और यदि आरोपित व्यक्ति का कोई वकील हो तो उसको भी टेस्ट के बारे में पूरी जानकारी देनी पड़ेगी। कोर्ट ने कहा कि पॉलीग्राफ टेस्ट के प्रभाव और पॉलीग्राफ टेस्ट के दौरान दिए गए किसी भी उत्तर को स्पष्ट रूप से बताया जाना चाहिए। स्पष्ट है इस फैसले से संगीन जुर्म करने वाले अपराधी पॉलीग्राफ टेस्ट के लिए अब बाध्य नहीं होंगे, और हो सकता है अपने अपराध को छुपाने के लिए कभी इस टेस्ट के लिए हाँ ही न करें। इससे जांच अधिकारीयों को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है या हो सकता है जांच में और अधिक समय लगे। कर्नाटक उच्च न्यायालय के इस फैसले से भविष्य में आरोपियों के लिए एक अपर हैण्ड होगा जो जांच में बाधा बन सकता है।