दिल्ली के क्रांतिकारी मुख्यमंत्री केजरीवाल ने लंबे समय से क्रांति नहीं की, तो अब वह उसके लिए योजना बना रहे हैं

क्रांतिकारी केजरीवाल की एक और क्रांति!

कुछ लोगों को आंदोलनकारी होने का शौक होता है, दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल का हाल भी कुछ ऐसा ही है, क्योंकि उनकी राजनीतिक उत्पत्ति भी आंदोलन से ही हुई है, लेकिन पिछले काफी समय से कोई ऐसा आंदोलन या धरना नहीं हुआ, जिसमें केजरीवाल की मुख्य भूमिका हो।

ऐसे में केजरीवाल का आंदोलन के कारण चर्चा में बने रहने का लालच एक बार फिर जाग गया है, क्योंकि दिल्ली के उपराज्यपाल के अधिकारों को बढ़ाने के मुद्दे पर केजरीवाल अब केंद्र सरकार के साथ नई लड़ाई लेने के मूड में आ गए हैं जो कि दिल्ली को ही मुसीबत में डाल सकता है।

दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच दिल्ली के उपराज्यपाल की शक्तियों को लेकर कई बार टकराव सामने आ चुके हैं। दो साल पहले 2019 में दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल की शक्तियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था, कि दिल्‍ली पुलिस, पब्लिक ऑर्डर और जमीन संबंधित मामलों पर उप-राज्‍यपाल की अनुमति दिल्ली सरकार के लिए जरूरी होगी।

वहीं अब इस मसले पर केंद्र सरकार ने दिल्‍ली राष्‍ट्रीय राजधानी राज्‍यक्षेत्र शासन संसोधन बिल 1991 पेश (GNCTD ACT 1991 Amendment Bill) लोकसभा के पटल पर रखा है जिसको लेकर राजनीति गर्म हो चुकी है।

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इस नए बिल के अनुसार दिल्ली सरकार को किसी भी नए फैसले को लागू करने के लिए उपराज्यपाल से अनुमति लेनी होगी। ठीक उसी तरह दिल्ली सरकार की कैबिनेट के प्रत्येक मंत्री को भी को भी कोई फैसला लेने से पहले एक निश्चित समय सीमा यानी 15 दिन पहले उप राज्यपाल को बताना होगा, और यहीं से केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने केन्द्र सरकार के इस बिल पर हमला बोलते हुए कहा, “इस बिल के पारित होने के बाद दिल्ली में चुनी हुई सरकार का मतलब अब कुछ नहीं होगा। ये बहुत खतरनाक संशोधन है। इसमें लिखा है कि चुनी हुई सरकार जो फैसले लेगी उसकी फाइल अब उप राज्यपाल के पास भेजनी पड़ेगी।”

उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया समेत आप आदमी पार्टी और दिल्ली सरकार इस बिल को अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक बता रहे हैं। वहीं इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपने मंत्रियों और विधायकों के साथ अपने चिर परिचित अंदाज में एक बार फिर धरने की तैयारी कर चुके हैं और इस बार उनका ठिकाना दिल्ली का जंतर-मंतर होगा केजरीवाल ने इस मसले पर कहा, “एक बार फिर दिल्ली की चुनी हुई सरकार के खिलाफ षड्यंत्र रचा जा रहा है, हम इसका विरोध करेंगे, और पहले की तरह सुप्रीम कोर्ट के जरिए जीत हमारी ही होगी।”

केजरीवाल के हालिया कारनामे बताते हैं कि उनके पास राजनीति में बने रहने का अद्भुत हुनर है
इसमें कोई शक नहीं है कि दिल्ली के संबंध में इस बिल के पारित होने के बाद उप राज्यपाल की शक्तियां बढ़ जाएंगी, लेकिन पिछ्ले दो-तीन सालों में जिस तरह से दिल्ली में अराजकता मचाई गई हैं, उनको देखकर तो ये कहा जा सकता है कि राज्य में ऐसे ही बिल की आवश्यकता थी।

दिल्ली देश की राजधानी है, ऐसे में यहां कोई भी विवादित मसला होता है तो वो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि को धूमिल करता है, और पिछले कुछ सालों में ये प्रकरण बड़ी संख्या में देखे भी गए हैं। दिल्ली सरकार अपनी राजनीति के लिए कुछ न कुछ ऐसे फैसले लेती रही है जो कि राज्य की कानून व्यवस्था को कमजोर करता है, और जब ये व्यवस्था बिगड़ती है तो केजरीवाल दिल्ली पुलिस अपने अंतर्गत न होने का हवाला देकर केन्द्र पर निशाना साधते हैं।

इन स्थितियों पर नजर डालें तो ये नया बिल सही प्रतीत होता है। दूसरी ओर पिछले काफी वक्त से केजरीवाल को लेकर कोई चर्चा नहीं हो रही थी और उन्हें चर्चा में रहने का शौक़ है। इसीलिए अब वो इस नए मुद्दे के जरिए मीडिया में। आना चाहते हैं, क्योंकि मीडिया में बने। रहना उनकी मजबूरी है।

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