कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय ने वित्त वर्ष 2018-20 के दौरान 3.8 लाख से अधिक शेल कंपनियों की पहचान कर उनके रजिस्ट्रेशन को रद्द किया है। राज्य सभा में एक सवाल के जवाब में, वित्त और कॉर्पोरेट मामलों के राज्य मंत्री, अनुराग सिंह ठाकुर ने बताया कि कंपनी अधिनियम, 2013 में “शेल कंपनी” शब्द की कोई परिभाषा नहीं है। यह सामान्य रूप से एक कंपनी ऐसी कंपनी होती है जो बिना सक्रिय व्यवसाय संचालन के ही चलती है जो गैरकानूनी उद्देश्यों जैसे कि कर चोरी, मनी लॉन्ड्रिंग, दूसरों के बीच बेनामी संपत्तियों के लिए उपयोग की जाती हैं।”
सरकार द्वारा “शेल कंपनियों” के मुद्दे की जांच के लिए गठित विशेष कार्य बल ने शेल कंपनियों की पहचान की है और उनके खिलाफ एक्शन लिया गया है। उन्होंने बताया, “वित्तीय विवरणों (एफएस) के लगातार दो साल या उससे अधिक समय तक दाखिल न होने के आधार पर, ‘शेल कंपनियों’ की पहचान की गई और कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करने के बाद, पिछले तीन वर्षों में 3,82,875 कंपनियों के रजिस्ट्रेशन को रद्द किया गया। उन्होंने कहा कि सरकार ने ऐसी कंपनियों की पहचान करने लिए एक विशेष अभियान शुरू किया है। यानी देश में टैक्स चोरी करने वालों, मनी लॉन्ड्रिंग करने वालों, आतंक को फंड करने वालों, प्रोटेस्ट और नक्सल गतिविधियों को फंड करने वालों के खिलाफ चाबुक चला है।
आखिर यह शेल कंपनियां हैं क्या?
सैद्धांतिक रूप से, शेल कंपनियां या फर्जी कंपनियां ऐसी कंपनियां होती हैं जिनका न तो व्यवसाय संचालन सक्रिय है या ना ही उनके नाम महत्वपूर्ण संपत्ति हैं। उन्हें व्यावसायिक लोगों द्वारा वैध और अवैध दोनों उद्देश्यों के लिए स्थापित किया जा सकता है। शेल कंपनी को पंजीकृत करने के अवैध उद्देश्यों में लॉ एनफोर्समेंट से किसी कंपनी के स्वामित्व के विवरण को छिपाना, या बेहिसाब धन की लांड्रिंग और टैक्स से बचना शामिल है। इसी माध्यम से ब्लैक मनी को व्हाइट मनी में बदल कर देश के अंदर आतंक और नक्सल जैसे देश विरोधी गतिविधियों को भी फंडिंग की जाती है।
शेल कंपनी को सामने रख कागज पर सभी लेनदेन को वैध व्यापार लेनदेन के रूप में दिखाया जाता है, जिससे काले धन को सफेद धन में बदल दिया जाता है। इस प्रक्रिया में, व्यापार करने वाला भी लोन के पैसे पर टैक्स देने से बचाता है।
गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने Assam Company India Ltd and Ors v. Union of India के मामले में शेल कंपनियों के काम को यह बताते हुए समझाया कि शेल कंपनी की पहचान उनके संदिग्ध गतिविधियों कर चोरी से पहचाना जाता हैं ‘। बता दें कि भारत में शेल कंपनियों को न तो कंपनी अधिनियम 2013, ना ही आयकर अधिनियम 1961 और न ही किसी भारतीय कानून के तहत परिभाषित किया गया है।
उदाहरण के तौर पर पंजाब नेशनल बैंक स्कैम (2018) में, प्रवर्तन निदेशालय ने पाया था कि नीरव मोदी ने भारत से बाहर की गई 17 शेल कंपनियों की मदद से रु वर्ष 2017 में 5,921 करोड़ रुपये का मनी लांड्रिंग की थी। वहीं नीरव मोदी के चाचा मेहुल चोकसी भी कम नहीं थे और ईडी ने उनके 140 शेल कंपनियों को शॉर्टलिस्ट किया, वहीं SFIO कम से कम 400 कंपनियों की जांच कर रही थी।
फर्जी तरीके से लेटर्स ऑफ अंडरटेकिंग्स (LoUs) खरीदकर PNB 14,000 करोड़ रुपये का धोखा देने के बाद दोनों भगोड़े हो गए।
इससे क्या फर्क पड़ता है?
शेल कंपनियों को निवेशकों के लिए एक गंभीर खतरा माना जाता है। शेल कंपनियों की उचित परिभाषा की कमी के कारण अवैध उद्देश्यों के लिए बनाई गई शेल कंपनियों की पहचान करना मुश्किल है। शेल कंपनियों का नेटवर्क निवेशकों और शेयरधारकों के हित को खतरे में डालता है। यह काले धन के खतरे को भी बढ़ाता है।
अब मोदी सरकार ने 2017 में ही एक स्पेशल टास्क फोर्स बनाकर ऐसी कंपनियों के खिलाफ एक्शन लेना शुरू कर दिया था। अनुराग ठाकुर ने राज्यसभा में बताया कि सरकार ने पिछले तीन सालों में 3.82 फर्जी (शेल) कंपनियों की पहचान कर उनका रजिस्ट्रेशन रद्द किया है। इससे अब अवैध शेल कंपनियों का रैकेट चलाने वालों में खौफ बनेगा और वे भविष्य में ऐसा करने में अवश्य ही हिचकिचाएंगे। सरकार की कार्रवाई ऐसा धांधली करने वालों के लिए बड़ा झटका है।