PM मोदी ने बांग्लादेश स्वतन्त्रता संघर्ष में भाग लिया था, इस दावे को सच सिद्ध करते हैं ये सबूत

लिबरलों तुम जाओ, इतिहास पढ़ के आओ

जब वामपंथियों को उनके घृणास्पद विचारों और उनके भ्रामक तथ्यों के लिए घेरा जाता है, तो वे अक्सर जवाब में इतिहास पढ़ने की नसीहत देते हैं। लेकिन हाल ही में जो हुआ, उससे इतना तो स्पष्ट हो गया कि इतिहास पढ़ने की आवश्यकता सबसे ज्यादा वामपंथियों को है, जो एक सच्ची घटना को भी झूठा सिद्ध करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाने को तैयार है। हाल ही में वुहान वायरस के पश्चात अपने पहले विदेशी दौरे पर PM मोदी बांग्लादेश गए, जहां वे बांग्लादेश की स्वतंत्रता के 50वें वर्षगांठ के शुभ अवसर पर उनकी खुशियों में शामिल हुए। इसी दौरान बांग्लादेश की जनता को संबोधित करते हुए उन्होंने बताया कि कैसे बांग्लादेश की स्वतंत्रता के लिए उन्हे एक सत्याग्रह में हिस्सा लिया था, जिसके चलते वे जेल भी गए थे। ये उनके प्रारम्भिक आंदोलनों में से एक था।

लेकिन जिन्होंने दशकों तक देशवासियों को अपने झूठे तथ्यों के आधार पर भ्रमित रखा, वे भला PM मोदी की बातों को क्यों सच मानते? बस, भारत के वामपंथियों ने पीएम मोदी का मज़ाक उड़ाते हुए उनकी बातों को झूठा सिद्ध करने का प्रयास किया। शशि थरूर ने तो यहाँ तक ट्वीट किया कि भारत के लोगों को अपनी बातों से उल्लू बनाने के बाद अब पीएम मोदी बांग्लादेश के लोगों को भी फेक न्यूज बताते हैं

लेकिन ये तो बस शुरुआत थी। वामपंथियों ने PM मोदी को झूठा सिद्ध करने के लिए तरह-तरह के मीम्स और ट्रेंड्स भी चलाए। यूं ही #BalNarendra, #LieLikeModi ट्विटर पर इतना ट्रेंड नहीं कर रहा था। लेकिन वो कहते हैं न, सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं।

आधुनिक युग में किसी भी बात को छुपाना इतना आसान नहीं, और सोशल मीडिया ने तो यह काम लगभग असंभव बना दिया है। लिहाजा जागरूक सोशल मीडिया यूजर्स ने न सिर्फ यह सिद्ध किया कि PM मोदी का व्याख्यान शत प्रतिशत सच था, बल्कि स्पष्ट तथ्यों के साथ वामपंथियों को उनके लिए झूठ के लिए जमकर ट्रोल भी किया

उदाहरण के लिए इस प्रशस्ति पत्र को देखिए। ये तत्कालीन भारतीय जनसंघ के प्रखर नेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को बांग्लादेश की स्वतंत्रता के लिए आवाज उठाने के एवज में दिया गया था। इसमें बताया गया है कि कैसे अटल बिहारी वाजपेयी ने 1 – 11 अगस्त तक बांग्लादेश की स्वतंत्रता हेतु गण सत्याग्रह का आयोजन कराया था, जिसमें हजारों की संख्या में लोगों ने हिस्सा लिया था। इसके अलावा 12 अगस्त 1971 को भारतीय संसद के समक्ष एक विशाल रैली आयोजित कराई थी, और यहाँ भी बांग्लादेश की स्वतंत्रता की मांग इस रैली में ज़ोरों शोरों से उठाई गई थी।

लेकिन बात यहीं पर खत्म नहीं होती। कई सोशल मीडिया यूजर्स ने यहाँ तक सिद्ध कर दिया कि कैसे कई लोगों को बांग्लादेश की आजादी में समर्थन देने के लिए प्रदर्शन करने पर हिरासत में लिया गया था, और कैसे PM नरेंद्र मोदी वाकई में इस आंदोलन में शामिल थे।

एक ट्विटर यूजर आलोक मिश्रा ने तो पीएम मोदी द्वारा लिखित ‘संघर्ष मा गुजरात’ के बैक कवर पर उनके बांग्लादेश आंदोलन में सक्रियता और पुस्तक में इस विषय पर लिखे गए छंदों का अनुवाद भी किया। आलोक के ट्वीट के अनुसार, “इस किताब के बैक कवर पर तब आरएसएस के युवा प्रचारक रहे नरेंद्र मोदी का जो परिचय है, उसमें साफ तौर पर बांग्लादेश के निर्माण के लिए चले आंदोलन में नरेंद्र मोदी की भूमिका का उल्लेख है। जिन्हे गुजराती नहीं आती, उनके लिए चौथे पैराग्राफ का गुजराती अनुवाद आगे दे रहा हूँ”

उक्त पैराग्राफ के अनुवाद अनुसार, “आपातकाल के बीस महीने, सरकारी तंत्र की असफलता को साबित करते हुए मैंने अंडरग्राउन्ड काम किया और आपातकाल के विरुद्ध संघर्ष को जारी रखा। इससे पहले बांग्लादेश के लिए सत्याग्रह के समय मैं तिहाड़ जेल होकर आया। इसे पढ़ने के बाद शर्म आए, तो बिना तथ्य जाने मोदी आलोचकों को विवाद पैदा करना छोड़ देना चाहिए।

सच कहें तो PM मोदी को नीचा दिखाने की जल्दबाजी में वामपंथियों ने एक बार फिर अपनी भद्द पिटवाई है। यह वही लोग हैं, जो मुगलों के विरुद्ध एक भी शब्द सुनने पर बिदक जाते हैं, और नरेंद्र मोदी यदि शत प्रतिशत सत्य भी बोलें, तो उसे झूठा सिद्ध करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। लेकिन जिस प्रकार से सोशल मीडिया के जागरूक यूजर्स ने इस बार वामपंथियों की पोल खोली है, अब वे कहीं भी मुंह छुपाने लायक भी नहीं बचे हैं।

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