ममता बनर्जी आदिवासी क्षेत्रों में BJP से हार रही है, इसलिए अब प्रचार के लिए हेमंत सोरेन को बुलाया है

हेमंत सोरेन बचा पाएंगे TMC की डूबती हुई नैया?

यह किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस की आगामी चुनाव में हालत इतना खराब हो जाएगी कि उसे प्रचार के लिए दूसरे राज्य के मुख्यमंत्री का सहारा लेना पड़ेगा। ममता बनर्जी ने JMM के प्रमुख और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को अपने चुनाव प्रचार के लिए निमंत्रण दिया है। हेमंत सोरेन ने इस निमंत्रण को स्वीकार कर लिया है। दरअसल, बात यह है कि पश्चिम बंगाल के पहले और दूसरे चरण का चुनाव पुरुलिया, बांकुरा, झाड़ग्राम, पश्चिम मेदिनापुर जैसे जगहों पर होना हैं, जहां पर आदिवासियों का प्रभाव है।

गौर करने वाली बात है कि हेमंत सोरेन आदिवासियों के बीच काफी चर्चित चेहरा हैं, जिसके कारण ममता बनर्जी को हेमंत को अपनी मदद के लिए बुलाना पड़ा। ममता बनर्जी 10 सालों से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री हैं, लेकिन इतने सालों से मुख्यमंत्री होने के बावजूद ममता ने ऐसा कुछ भी नहीं किया, जिससे वह अपने दम पर आदिवासियों का वोट मांग सकें। नतीजतन, उन्हें दूसरे राज्य के मुख्यमंत्री सहारा लेना पड़ रहा है।

और पढ़ें –ममता ने महिष्य समुदाय OBC स्टेटस की मांग को हमेशा अनदेखा किया, अब भाजपा इन्हें वो स्टेटस देगी

वर्तमान समय में पश्चिम बंगाल के आदिवासियों का झुकाव भाजपा की तरफ देखने को मिल रहा है। ऐसे में ममता बनर्जी उन्हें अपनी ओर करने के लिए हेमंत सोरेन की मदद ले रही हैं। केवल बंगाल ही नहीं बल्कि देश भर के आदिवासियों की पहली पसंद पीएम मोदी हैं। 2018 में हुए पंचायत चुनाव के नतीजे भी यही कह रहे हैं क्योंकि बीजेपी को आदिवासी क्षेत्रों में भारी बढ़त मिली थी।

उदाहरण के तौर पर झाड़ग्राम और पुरुलिया जिले में बीजेपी ने 42 सीटें और 33 प्रतिशत वोट पाए थे। पश्चिम बंगाल के मतुआ समुदाय के लोगों का भी PM मोदी के लिए भरपूर समर्थन है। साथ ही नंदीग्राम क्षेत्र में  महिष्य समुदाय की आबादी 51 प्रतिशत है, वो भी मोदी के मुरीद हैं। गौरतलब है कि, नंदीग्राम से ममता बनर्जी सुवेंदु अधिकारी के खिलाफ चुनाव लड़ रहीं हैं। यह अनुमान लगाना गलत नहीं होगा कि ममता अपनी और TMC की साख बचाने के लिए सोरेन की मदद लेने पर मजबूर हो गई हैं।

आदिवासियों के बीच प्रधानमंत्री की पकड़ कितनी मजबूत है, इसका प्रमाण 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजे साफ बयां कर रहे हैं। बता दें कि, मेदिनापुर, पुरुलिया, झाड़ग्राम जैसे आदिवासी प्रभावित क्षेत्रों में भाजपा को जोरदार समर्थन मिला था। यहाँ यह भी कहना गलत नहीं होगा कि आदिवासियों के समर्थन के कारण ही भाजपा को 42 में से 18 सीटों पर जीत हासिल हुई थी।

नेशनल हेराल्ड में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार कुछ दिन पहले ही रांची में RJD प्रमुख तेजस्वी यादव और NCP प्रमुख शरद पवार उपस्थित थे। इस दौरान उन्होंने हेमंत से आग्रह किया कि ममता बनर्जी के लिए चुनाव प्रचार करें। कमाल की बात यह है कि, बिहार में कांग्रेस और RJD का गठबंधन है, वैसे ही महाराष्ट्र में NCP और कांग्रेस का गठबंधन है। वहीं पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस के खिलाफ भी चुनाव लड़ रही है, ऐसे में तेजस्वी और पवार अपने ही सहयोगी दल कांग्रेस के विरोध में चुनाव प्रचार करने की बात कर रहे थे।

और पढ़ें –ममता बनर्जी ने PM मोदी को ‘बाहरी’ कहा था, अब वो नंदीग्राम में अपने ही जाल में फंस गयी हैं

ममता बनर्जी ने आदिवासियों के वोट के लालच में दूसरे राज्य के आदिवासी नेता को बुलाना यह संकेत देता है कि 10 साल तक राज्य का मुख्यमंत्री रहने के बावजूद भी ममता ने ऐसा कोई काम नहीं किया है, जिसकी बदौलत वो आदिवासियों का वोट पा सकें। इसके अलावा बाकी दल के नेता, जो आधिकारिक तौर पर TMC के साथ नहीं वो भी खुलकर ममता के साथ नज़र आ रहे हैं। इससे एक बात तो साफ है कि वर्तमान समय में विपक्ष मोदी के खिलाफ विचारधारा के लिए नहीं लड़ रहा, उनका मकसद केवल कुर्सी का लालच और मोदी का विरोध करना है।

 

Exit mobile version