गुस्सैल दीदी से Wheel Chair वाली दीदी- ममता की ये राजनीति विफ़ल होने वाली है

Victim Card लेकर चली ममता को Voting Card से पड़ेगी मार!

ममता बनर्जी प्रशांत किशोर

PC: MyNation Hindi

ममता बनर्जी इन दिनों विक्टिम कार्ड खेलकर भाजपा के खिलाफ विधानसभा में अपनी जीत की राह बुन रही हैं परन्तु उनकी आक्रामक राजनैतिक छवि को देखें तो वर्तमान की छवि उनपर बिलकुल फिट नहीं बैठती, ठीक वैसे ही जैसे गाँधी परिवार के राजकुमार राहुल गाँधी पर गरीबी का कार्ड खेलना फिट नहीं बैठता। अब एक राजकुमार जो विदेश में अपनी पढाई पूरी कर चुका है और गाँधी परिवार का इकलौता वारिस है वो भला गरीब कैसे हो सकता है यही वजह थी तब जनता ने राहुल गांधी को जमकर आड़े हाथों लिया था. ममता दीदी के साथ भी कुछ ऐसा ही है जिस छवि और दीदी गिरी के लिए वो जानी जाती है वो अगर खुद को ‘विक्टिम’ कहने लगे तो भला कौन भरोसा करेगा?

ममता बंगाल में आजकल Victim Card का खुलेआम प्रदर्शन कर अपना चुनाव प्रचार कर रही हैं। पहले उन्होंने अपने पैर में लगी चोट का आरोप भाजपा पर लगाकर राजनीतिक स्कोर बंटोरने की कोशिश की, उसके बाद जब भाजपा ने आक्रामकता से ममता को जवाब दिया तो ममता ने बंगाल में Wheel Chair पॉलिटिक्स शुरू कर दी। 14 मार्च को उन्होंने एक ट्वीट कर कहा “मैं बहुत दर्द में हूँ, लेकिन मेरे लिए बंगाल के लोगों का दर्द ज़्यादा मायने रखता है। हमने बहुत कुछ सहा है लेकिन हम झुकेंगे नहीं।”

TMC पार्टी ने एक बयान जारी कर यह भी कहा है कि अगर ममता को बंगाल का बाकी चुनाव प्रचार Wheel Chair पर करना पड़े तो भी वे उसके लिए तैयार हैं। लेकिन क्या ये Victim कार्ड की राजनीति ममता पर सूट करती है, क्या उन्हें इसका फायदा मिलेगा? ये सबसे बड़ा प्रश्न है।

ममता को शुरू से ही एक आक्रामक स्वभाव वाला नेता माना जाता है। उनकी आक्रामकता ही उनके सफल राजनीतिक करियर का आधार है। बंगाल के लोगों को इसीलिए वे सबसे ज़्यादा पसंद आती है। 70 के दशक में उन्होंने कांग्रेस पार्टी जॉइन की और उसके बाद राज्य में पार्टी पर इतनी पकड़ बना ली कि उन्होंने वर्ष 1997 में कांग्रेस तोड़कर पहले खुद की TMC पार्टी बनाई और 14 साल के संघर्ष के बाद उन्होंने राज्य से left को जड़ से उखाड़ फेंका! इन 14 सालों के दौरान उन्होंने NDA और UPA का साथ लिया और अपनी ‘दीदी गिरी’ दिखाकर समय आने पर इन्हें छोड़ भी दिया। ये वही ममता है जिन्होंने अपने आक्रामक अभियान के चलते वर्ष 2007-08 में बंगाल से Tata को भागने पर मजबूर कर दिया था। तब ममता का कहना था कि TATA अपने नैनो प्रोजेक्ट के लिए गरीब किसानों की ज़मीन का अधिग्रहण कर रही है, उसी के बाद ममता ने लेफ्ट सरकार के खिलाफ बड़ा अभियान चलाया था।

मुख्यमंत्री बनने के बाद भी राज्य की सत्ता पर उनका प्रभाव बेहद ज़्यादा रहा है। अपने राजनीतिक विरोधियों को तो छोड़िए, ममता का राज्य के गवर्नर के साथ भी 36 का आंकड़ा रहता है। पिछले वर्ष सितंबर महीने में ममता ने गवर्नर जगदीप धनखड़ को धमकी देते हुए कहा था कि उन्हें तुरंत मुख्यमंत्री को कम आंकना बंद करना चाहिए और उन्हें अधिकारियों को समन करने का कोई अधिकार नहीं है। इन चुनावों में भी पिछले हफ्ते तक ममता भाजपा के खिलाफ आक्रामक अभियान ही छेड़े हुए थीं।

गौर करें तो भाजपा खासकर गृह मंत्री अमित शाह को निशाने पर लेना और गुस्से से जवाब देना ममता की आक्रामक राजनीति का हिस्सा रहा है। वो अक्सर मोदी सरकार के खिलाफ अपने आक्रामक रुख को लेकर सुर्ख़ियों में रही हैं। चाहे CAA पर अपनी भड़ास निकालते हुए काका छी छी कहना हो…. चाहे बीजेपी प्रेसिडेंट जेपी नड्डा के काफिले पर हुए हमले पर चड्डा, नड्डा, गड्ढा, भड्डा, सब चले आ रहे… ये कहना हो… या सीबीआई जब जांच करने पहुंचे तो गुस्सा दिखाना हो।

यही नहीं भाजपा द्वारा बंगाल में 20 रैली करने की घोषणा पर ममता ने कहा था “भाजपा से कहिए कि वह कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक तैनात सभी सुरक्षा बलों को बंगाल भेज दे। हम खेलेंगे, लड़ेंगे और जीतेंगे फिर चाहे BJP बंगाल में 120 रैली क्यों न कर ले।” ममता बनर्जी की छवि को आक्रामकता ही सूट करती है न कि ‘विक्टिम कार्ड’।

हालांकि, बड़ा सवाल यह है कि आखिर आक्रामक तेवर अपनाने वाली ममता इन चुनावों में Wheel Chair पॉलिटिक्स पर क्यों उतर आई हैं? इसके पीछे ममता के रणनीतिकार प्रशांत किशोर का हाथ हो सकता है, क्योंकि यह Victim कार्ड खेलने की रणनीति पहले भी कई राजनेताओं का बेड़ा पार करा चुकी है। वर्ष 2019 में जब YSRCP के नेता जगन मोहन रेड्डी पर विशाखापटनम एयरपोर्ट पर हमला हुआ था तो कहा गया था कि उनपर हुआ ये हमला pre-planned था और इसे प्रशांत किशोर के कहने पर करवाया गया ताकि उन्हें चुनावों में लोगों की सहानुभूति मिल सके। इसके साथ ही प्रशांत किशोर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ मिलकर भी इसी रणनीति पर काम कर चुके हैं। CM केजरीवाल हर बार चुनावों में आम आदमी होने और केंद्र सरकार एवं LG की “तानाशाही” से पीड़ित होने का नाटक करते हैं, जिससे उन्हें चुनावों में फायदा भी होता है। ममता भी चाहती हैं कि उन्हें भी सहानुभूति मिले और वे votes पाने में कामयाब हो सकें।

हालांकि, उनकी यह रणनीति उन्हीं पर भारी पड़नी वाली है क्योंकि बंगाल के लोग उन्हें victim कार्ड की राजनीति करने के लिए नहीं बल्कि “बंगाल की अस्मिता के बचाव के लिए” केंद्र से लड़ने और उनके आक्रामक तेवर के लिए पसंद करते हैं। ममता का सहानुभूति कार्ड खेलना कुछ ऐसा ही है अगर कल को UP के CM योगी आदित्यनाथ भी अपनी फायरब्रांड नेता की छवि छोड़कर ऐसे ही विक्टिम कार्ड खेलना शुरू कर दें! स्पष्ट है, ममता की छवि में परिवर्तन इन चुनावों में उनकी हार और प्रशांत किशोर के फ्लॉप शो का एक और बड़ा कारण बन सकता है।

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