बड़े बुजुर्ग सही ही कहते थे, विनाश काले विपरीते बुद्धि। जिस प्रकार से ममता बनर्जी अपने राजनीतिक पतन की ओर बढ़ रही हैं, उससे स्पष्ट होता है कि किस प्रकार से उनकी पार्टी के दिन लद चुके हैं। अब ममता ने अपने हाथों से अपना विनाश लिखते हुए केवल नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का निर्णय किया है।
हाल ही में बंगाल के विधानसभा चुनाव में जिन 294 सीटों पे चुनाव लड़े जाएंगे, उनमें से लगभग 291 सीटों के उम्मीदवारों की सूची सत्ताधारी तृणमूल काँग्रेस ने जारी कर दी है। इसमें ममता बनर्जी का चुनावी क्षेत्र भी शामिल है, और इस बार वह केवल नंदीग्राम से विधानसभा चुनाव लड़ेंगी।
अब यह निर्णय न केवल आश्चर्यजनक है, बल्कि हास्यास्पद भी। ममता बनर्जी का मानना है कि उन्हें सत्ता से कोई बेदखल नहीं कर सकता, और उनके चुनाव संयोजक प्रशांत किशोर ने यहाँ तक कह दिया कि यदि चुनाव में भाजपा के 100 सीट भी आ गए, तो वे किसी को भी चुनावी सलाह देना हमेशा के लिए छोड़ देंगे।
लेकिन अपने घमंड में दोनों एक बात भूल गए – नंदीग्राम उस नेता का गढ़ है, जो इन दोनों के ख्वाबों को मिट्टी में मिलाने में पूरी तरह सक्षम है – और वो है सुवेंदु अधिकारी। कभी तृणमूल काँग्रेस के सबसे कद्दावर नेताओं में से एक माने जाने वाले सुवेंदु अधिकारी को ममता के रूखे व्यवहार और प्रशांत किशोर की पार्टी में बढ़ती दखलंदाज़ी के कारण तृणमूल काँग्रेस छोड़ भारतीय जनता पार्टी में शामिल होना पड़ा था।
अब केवल नंदीग्राम से चुनाव लड़ना ममता के लिए घातक सिद्ध होने वाला है, क्योंकि यह वही जगह है, जहां से सुवेंदु अधिकारी चर्चा में पहली बार आए थे, और पूर्वी बंगाल में स्थित होने के कारण नंदीग्राम उनका अपना गढ़ है। इसके अलावा सुवेंदु तो ममता को चुनावी दंगल में चारों खाने चित्त करने के लिए भी पूरी तरह तैयार है। उन्होंने ये भी स्पष्ट किया है कि चाहे भाजपा उन्हें नंदीग्राम से चुनाव लड़ने के लिए भेजे या नहीं, परंतु वे ममता को हराए बिना वापिस नहीं जाएंगे, और यदि वे ऐसा नहीं कर पाए, तो वे राजनीति ही छोड़ देंगे।
सुवेंदु अधिकारी इतने विश्वास के साथ ये बात इसलिए भी बोल पा रहे हैं, क्योंकि पूर्वी बंगाल में उनका काफी भयंकर प्रभाव है, और यहां वे कम से कम 40 से 50 सीटें भाजपा को दिला भी सकते हैं। वे न केवल सभी वर्गों में लोकप्रिय हैं, बल्कि जमीनी स्तर पर भी वे काफी परिपक्व हैं। जमीन से जो जुड़ाव कभी तृणमूल कांग्रेस की पहचान हुआ करती थी, आज उसी के अभाव के कारण आधे से ज्यादा नेता पार्टी छोड़ चुके हैं, चाहे वो मुकुल रॉय हो, अर्जुन सिंह हो, दिनेश त्रिवेदी हो या फिर सुवेंदु अधिकारी हो। इसमें प्रशांत किशोर की हेकड़ी ने मानो आग में घी का काम किया है।
ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि प्रशांत किशोर पर अंध विश्वास अब ममता बनर्जी की पार्टी के खात्मे का कारण बनेगा। केवल नंदीग्राम से लड़ना, जहां उनके सबसे कट्टर विरोधी पहले से ही उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं, न सिर्फ एक विनाशकारी निर्णय है, बल्कि ये भी सिद्ध करता है कि आगामी चुनाव में सीएम की कुर्सी तो छोड़िए, ममता अब विधायक भी नहीं बन पायेंगी।
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