SS, TMC, NCP, AAP, SP, JDU और RJD: कांग्रेस से ज़्यादा क्षेत्रीय पार्टियां लोकतन्त्र के लिए खतरनाक हैं

केंद्र और राज्य दोनों जगह विपक्ष के रूप में यदि कोई पार्टी सबसे बेहतर है तो वो कांग्रेस है!

PC: Outlook India

भारत की संसदीय लोकतंत्र की सबसे प्रमुख खूबियों में से एक क्षेत्रीय पार्टियों का उदय भी है। आज भारत में 2000 से अधिक क्षेत्रीय पार्टियां मौजूद हैं। परन्तु अक्सर यह सवाल उठता है कि ये क्षेत्रीय पार्टियां देश के विकास और राज्यों की एकता में क्या भूमिका निभाती हैं? आज जिधर देखा जाये, जिस राज्य में देखा जाये, क्षेत्रीय पार्टियां सिर्फ और सिर्फ भ्रष्टाचार करने, सामाजिक एकता को तोड़ने और देश के विकास में अड़चन डालती दिखाई देती है।

उदहारण के लिए महाराष्ट्र को ही देखें तो यहां सरकार में NCP और शिवसेना के नेता 100 करोड़ महीने कमाने की बात कर रहे हैं। यह भ्रष्टाचार और अराजकता को बढ़ावा देना नहीं हैं तो और क्या है? ऐसे में इन पार्टियों की तुलना में कांग्रेस सबसे बेहतर विपक्षी पार्टी दिखाई देती है, चाहे वो केंद्र हो या राज्य हो। कांग्रेस सत्ता में बने रहना चाहती है, लेकिन क्षेत्रीय पार्टियां सत्ता में आने पर अपने राज्य को लकड़बग्घों के झुंड की तरह लूट कर खाती हैं। झारखण्ड राज्य और JMM पार्टी इस तरह के व्यव्हार के लिए एक जीवंत उदहारण है।

क्षेत्रीय मुद्दों के बहाने इन दलों को प्रासंगिकता मिलती है और फिर क्षेत्रीय पार्टियों का उदय होता है। देश की सभी क्षेत्रीय पार्टियों ने ऐसे ही लोगों में अपनी पहचान बनाई है लेकिन इनका मकसद सिर्फ और सिर्फ सत्ता पाकर अधिक से अधिक लूट मचाना होता है। इसी क्रम में अपनी राजनीति को जीवित रखने के लिए क्षेत्रीय दल समाज को जाति के आधार बांटे रखना जारी रखते हैं जिसका दुष्परिणाम देखने को मिलता है। जिस तरह से SP-BSP या RJD ने उत्तर प्रदेश और बिहार के समाज को वोट बैंक के लिए बांटा है, उससे न तो विकास हुआ और न ही उन जातियों का सामाजिक उत्थान हुआ जिसके लिए ये पार्टियाँ दावा करती हैं।

सच तो यही है इनका मकसद सिर्फ राज्य के संसाधनों को लूटना है। अब किसी क्षेत्रीय पार्टी के नेता को टोंटी चोर नाम ऐसे ही नहीं मिल सकता है।

यह सिर्फ भारत के कुछ ही राज्यों के लिए नहीं है, बल्कि पूरे भारत के अन्दर सभी राज्यों की क्षेत्रीय पार्टियों का यही हाल है। चाहे तो जम्मू कश्मीर की नेशनल कांफ्रेंस और PDP की भारत को बाँटने वाली राजनीति हो , या पंजाब की अकाली दल का सत्ता में रहने की भूख हो या उत्तर प्रदेश और बिहार को जाति के आधार पर बाँट कर भ्रष्टाचार कर राज्य को गरीबी में धकेलने वाली वाली SP, BSP, RJD और JDU जैसी पार्टियाँ हो। JMM तो राज्य को लुटने के लिए ही झारखण्ड का निर्माण करवाने के लिए फ्रंट पर रही और आज ये इस खनिज से भरपूर राज्य को जोंक की तरह चूस रहे हैं। इसी तरह पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्ट पार्टी और TMC ने हिंसा का ऐसा तांडव मचा रखा है कि आज भी इस राज्य से निवेश कोसो दूर है। कहने को तो BSP और कम्युनिस्ट पार्टी राष्ट्रीय पार्टी है लेकिन इसका प्रभाव कुछ ही क्षेत्रों में बचा है तो ऐसे में इसे भी क्षेत्रीय पार्टी कहना गलत नहीं होगा। महाराष्ट्र में तो NCP और शिवसेना ने महाराष्ट्र में बदले की राजनीति और भ्रष्टाचार के एक नए आयाम को छुआ है।

पूर्वोतर राज्यों में किसी भी राज्य का उदहारण लेने पर यह स्पष्ट पता चलेगा कि वहां की क्षेत्रीय पार्टियों का मकसद ही उग्रवाद को बढ़ावा देना है जिससे वे सत्ता पर काबिज रहे। उदहारण के लिए त्रिपुरा को ही देख लीजिये। यहाँ BJP के सत्ता में आने से CPI(M) का शासन था और तब ऐसी गरीबी थी कि वह किसी अफ़्रीकी देश को भी चुनौती दे सकता था। नागालैंड और मणिपुर भी क्षेत्रीय पार्टियों कस कारण यही हालत रही है।

दक्षिण भारत में देखें तो ऐसा लगता है कि लगभग सभी क्षेत्रीय पार्टियां समाज को बांटने के लिए ही बनी है। चाहे वो DMK हो या AIDMK या फिर TRS या JDS हो। कोई द्रविड़ राजनीति कर उत्तर भारत से इसे अलग कर रहा, तो राज्य में हिन्दुओं को ही बांटने का काम कर रहा, उदाहरण के लिए कर्नाटक को ही देख लीजिये जहां कोई पार्टी वोक्कालिगा और तो कोई लिंगायत पर राजनीति कर रहा है। वहीं केरल में तो आतंक की जड़ें भी जमी हुई हैं, जहाँ PFI जैसे कटटरपंथी संगठन न केवल देश विरोधी तत्वों को बढ़ावा देते हैं, बल्कि जबरन धर्म परिवर्तन को बढ़ावा दिया जा रहा है, परन्तु पिनाराई विजयन की सरकार इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठा रही। तमिलनाडु में तो आज भी विभाजन की राजनीति को अंजाम दिया जाता है। इन सभी में एक और क्षेत्रीय पार्टी है जो दिल्ली की सत्ता पर काबिज है।  यह पार्टी देखने में तो अन्य पार्टियों से सीधी नजर आएगी लेकिन यह है सबसे खतरनाक और देश को खोखला करने का माद्दा रखती है और कर भी रही है। दिल्ली में हिंसा को बढ़ावा देना, देश विरोधी तत्वों को समर्थन देना केजरीवाल सरकार के लिए आम बात है।

कुल मिलाकर कहें तो हमारे देश को क्षेत्रीय पार्टी रहित राजनीति की आवश्यकता है, न कि कांग्रेस मुक्त। ये क्षेत्रीय पार्टियां हिंसा, आतंक, अलगाववाद, विभाजन की नीति को बढ़ावा देती हैं ऐसे में यदि देश के 3 राज्यों में TMC सरकार या 4 राज्यों में AAP सरकार या फिर 5 राज्यों में नेशनल कांफ्रेंस की सरकार बन जाये!! यह किसी दुःस्वप्न से कम नहीं होगा है।

TFI फाउंडर अतुल मिश्रा के शब्दों में ये क्षेत्रीय पार्टियाँ Piranha (पिरान्हा) मछली की झुण्ड की तरह हैं जिनका उद्देश्य ही अपने राज्य को लुटकर खाना है । ऐसे में देखा जाये तो आज देश में एक मजबूत विपक्ष की आवश्यकता है।  केंद्र में भी और राज्यों में भी परन्तु विपक्ष के रूप में यदि कोई पार्टी सबसे बेहतर है तो वो कोई क्षेत्रीय पार्टियाँ नहीं बल्कि कांग्रेस है।

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