श्रीलंका को दो नावों पर पैर रखने की बहुत खराब आदत रही है। वह चीन के साथ अपने संबंध यथावत रखना चाहता है, परंतु भारत को नाराज भी नहीं करना चाहता। इस रवैये के चक्कर में भारत ने श्रीलंका को चेतावनी भी दी थी, जिसके पश्चात अब श्रीलंका भारत के हितों को सर्वोपरि रखने की दिशा में काम कर रहा है।
दरअसल, श्रीलंका कोलंबो बंदरगाह पर स्थित West Container Terminal को विकसित करने के लिए भारत और जापान के साथ संयुक्त रूप से काम करने को तैयार हो गया है। द प्रिन्ट की रिपोर्ट के अनुसार, “श्रीलंका ने हाल ही में घोषणा की है कि वो कोलंबो के रणनीतिक रूप से अहम वेस्ट कन्टेनर टर्मिनल को विकसित करने के लिए भारत और जापान के साथ साझेदारी करने के लिए तैयार है, जिसमें भारत और जापान को पोर्ट में 85 प्रतिशत की हिस्सेदारी भी मिलेगी”।
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय ईस्ट कन्टेनर टर्मिनल की परियोजना रद्द करने के एवज में लिया गया है। 2019 में श्रीलंका पोर्ट्स अथॉरिटी ने भारत और जापान के साथ एक memorandum पर हस्ताक्षर किया था जिसके तहत ईस्ट कन्टेनर टर्मिनल को विकसित करने के लिए हामी भरी गई थी, परंतु कहीं न कहीं चीन के दबाव में आकर श्रीलंका ने इस प्रोजेक्ट को कुछ ही महीनों पहले रद्द कर दिया था।
ऐसा इसलिए भी कहा गया क्योंकि कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार इस डील को रद्द करने में शामिल ट्रेड यूनियनों को चीन ने कथित तौर पर उकसाया था। TFIPost ने अपनी रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश भी डाला था जिसके अनुसार, “कुछ ऐसी भी रिपोर्ट्स सामने आई हैं कि श्रीलंकाई सरकार पर ट्रेड यूनियनों का दबाव था जिसके कारण उन्हें झुकना पड़ा। यह भी रिपोर्ट्स सामने आई कि चीन ने भारतीय हित के खिलाफ पोर्ट यूनियनों को विरोध करने के लिए उकसाया था। श्रीलंका के 223 यूनियनों ने ईस्ट कन्टेनर टर्मिनल समझौते को रद्द करने लिए ट्रेड यूनियनों की मांग का समर्थन करने की घोषणा भी की थी। यानि अगर यह कहा जाये कि चीन के दबाव में आकर श्रीलंका की सरकार भारत के खिलाफ फैसले लेने पर मजबूर हुई तो यह गलत नहीं होगा”।
इससे नाराज भारत की केंद्र सरकार ने श्रीलंका को दो टूक जवाब देते हुए स्पष्ट संदेश दिया था कि श्रीलंका के दोहरे मापदंड अब और स्वीकार नहीं किये जाएंगे। शायद इसीलिए इन दिनों श्रीलंका फूंक फूंक के कदम रख रहा है, ताकि भारत के हितों के साथ समझौता न हो।
इस दिशा में श्रीलंका ने कुछ अहम कदम भी उठायें है, जैसे इमरान खान के दौरे के बावजूद उन्हें श्रीलंकाई संसद से विश उगलने का अवसर न देना, और खुलेआम चीनी वैक्सीन के ऊपर भारतीय वैक्सीन को प्राथमिकता देना।
इस बीच ये भी कयास लगाए जा रहे हैं कि श्रीलंका जल्द ही हम्बनटोटा परियोजना पर पूर्णविराम लगा सकता है, जो भारत के लिए एक अहम कूटनीतिक विजय से कम नहीं होगी। ऐसे में यदि श्रीलंका वेस्ट कन्टेनर टर्मिनल में भारत और जापान को 85 प्रतिशत की साझेदारी दे रहा है, तो संदेश स्पष्ट है – भारत के हितों से कोई समझौता नहीं।