IMA के अध्यक्ष युवा छात्रों और डॉक्टरों के बीच ईसाई धर्म का प्रचार करने के लिए उत्साहित हैं!

IMA का नया अध्यक्ष डॉक्टर है या पादरी

PC : (OPIndia)

विपत्ति में अवसर ढूँढना बुरी बात नहीं है, लेकिन उस विपत्ति में धर्मांतरण के अवसर ढूँढना कोई पुण्य का काम नहीं है। कुछ निकृष्ट लोग ऐसे भी हैं, जो विपत्ति में भी अवैध धर्मांतरण को बढ़ावा देने से बाज नहीं आ रहे हैं और दुर्भाग्यवश इनमें से एक भारतीय मेडिकल एसोसिएशन यानि IMA का अध्यक्ष भी है।

दिसंबर 2020 में डॉ जॉनरोज़ ऑस्टिन जयलाल को दिसंबर 2021 तक के लिए इंडियन मेडिकल एसोसिएशन का अध्यक्ष चुना गया, लेकिन इनके वर्तमान बयानों को देखकर ऐसा नहीं लगता कि इनका उद्देश्य देश में चिकित्सकों के लिए नए अवसर और नई राह प्रदान करना है। वर्तमान अध्यक्ष के अनुसार यह आपदा ईसाई धर्म के प्रचार के लिए किसी सुनहरे अवसर से कम नहीं है।

डॉ. जयलाल के उद्घाटन भाषण के अनुसार, “यह ईसाई धर्म की महिमा, ईसाई चिकित्सकों और चर्चों के वात्सल्य का ही कमाल है कि दुनिया को लेपरोसी, कॉलेरा जैसी महामारियों से छुटकारा मिला है। हमें लगता है कि कोरोना वायरस जैसी महामारी ने हमें अपने गॉस्पेल का प्रचार अन्य संस्थानों में भी करने का एक सुनहरा अवसर दिया है और हमें इसे हाथ से जाने नहीं देना चाहिए”।

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किसी शैक्षणिक एवं चिकित्सीय संस्थान में पंथ के नाम पर इस तरह से एक बीमारी की आड़ में एक व्यक्ति द्वारा धर्मांतरण की बातें करना और ईसाई धर्म का प्रचार करना न केवल अनुचित है, बल्कि चिंताजनक भी है। हालांकि हम भूल रहे हैं कि ईसाई धर्म की रीति ऐसी ही रही है। बाढ़ हो, सुनामी हो, भूकंप हो या फिर कोई भी आपदा, इन अवसरों पर इनके चेहरे की चमक देखते ही बनती है।

डॉ जयलाल वहीं पर नहीं रुके। वे अपने भाषण में आगे कहते हैं, “जीजस क्राइस्ट में अटूट विश्वास के कारण ही वुहान वायरस जैसी महामारी से बच पाने में हम सफल रहे हैं। रात में प्रार्थना करने से लेकर ईसाई बंधुओं पर विश्वास बढ़ाने तक ईसाइयों ने भौतिक संसार का मोह त्याग अध्यात्म से अपने आप को जोड़ा और यही हमें अन्य संस्थानों में भी करना है”।

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इसके अलावा सनातन धर्म और प्राकृतिक चिकित्सा, विशेषकर आयुर्वेद के प्रति अपनी घृणा जताते हुए डॉ. जयलाल क्रिश्चियन टुडे को बताते हैं, “ये हिन्दू राष्ट्रवादी सरकार आधुनिक चिकित्सा को बर्बाद कर देना चाहती है, क्योंकि उनके लिए ये पश्चिमी चिकित्सा है। सरकार को आयुर्वेद में इसलिए यकीन है, क्योंकि वे हिन्दुत्व के प्रति आसक्त हैं। पिछले तीन चार वर्षों से वे आधुनिक मेडिसिन को इससे बदलना चाहते हैं। 2030 में आपको आयुर्वेद के साथ साथ यूनानी, सिद्ध, होम्योपैथी, योग जैसी चीजें भी सीखनी होंगी”।

यदि एक डॉक्टर देश की संस्कृति और उसके मूलभूत आधार के प्रति इस प्रकार के घृणास्पद विचार रखता हो, तो आप भली भांति जानते हैं कि यह युवा चिकित्सकों के मन मस्तिष्क में क्या घोलने वाले हैं। ऐसे लोगों के कारण ही देश में अवैध धर्मांतरण एक विकराल समस्या बनती जा रही है, जिसके पीछे काफी हद तक दशकों की अल्पसंख्यक तुष्टीकरण का हाथ रहा है। यदि ऐसा न होता, तो डॉ जे. ए. जयलाल जैसे ‘पादरियों’ को देश के अहम संस्थानों में जगह तक न मिलती।

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