पंजाब: COVID के मामलों में भारी उछाल, सारा श्रेय नासमझी भरे विरोध प्रदर्शन और सरकार को जाता है

कुशासन और बेसिर पैर के प्रदर्शनों की भेंट चढ़ रहा है पंजाब

इन दिनों पंजाब कुछ अलग ही कारणों से सुर्खियों में है। अभी कल ही भारत में महीनों बाद वुहान वायरस के मामलों में जबरदस्त उछाल आया, और रिकॉर्ड 40000 से अधिक मामले दर्ज हुए। इसमें से 60 प्रतिशत से अधिक मामले केवल और केवल महाराष्ट्र से आए है, जिसका सिर्फ और सिर्फ एक ही कारण है – महाराष्ट्र की अकर्मण्य गठबंधन सरकार। लेकिन क्या आपको पता है कि महाराष्ट्र के बाद वुहान वायरस के मामलों में बढ़ोत्तरी में सबसे अधिक योगदान किसका है? पंजाब का।

वुहान वायरस के कुल मामलों में महाराष्ट्र के बाद सर्वाधिक योगदान यदि किसी राज्य का है तो वह पंजाब का है। प्रारंभ में कर्नाटक, केरल और महाराष्ट्र में मामले काफी बढ़ रहे थे, और गुजरात एवं मध्य प्रदेश में भी स्थिति काफी चिंताजनक बनी हुई थी। लेकिन गुजरात, मध्य प्रदेश और कर्नाटक में तुरंत ही कार्रवाई होने पर स्थिति थोड़ी-थोड़ी नियंत्रण में आती दिखाई दे रही है, यहाँ तक कि केरल में भी एक समय पर 6000 मामले प्रतिदिन निकलकर सामने आ रहे थे, परंतु अब वहाँ पर भी रिकवरी की दर पहले से काफी बेहतर है और पिछले कुछ दिनों से औसतन मामले 2000 प्रतिदिन के दर से भी नीचे जा रहे हैं।

लेकिन पंजाब में स्थिति काफी चिंताजनक है। पिछले कुछ दिनों से महाराष्ट्र के बाद यह राज्य देश के कुल मामलों में सबसे अधिक योगदान दे रहा है। इसके अलावा महाराष्ट्र के बाद वुहान वायरस से मारे जाने वाले लोगों में भी सर्वाधिक योगदान पंजाब का ही रहा है। उदाहरण के लिए यदि कल 188 लोग वुहान वायरस की भेंट चढ़े थे, तो उनमें 108 लोग केवल महाराष्ट्र और पंजाब में ही मारे गए। महाराष्ट्र में 70 लोगों की मृत्यु हुई और पंजाब में 38 लोगों की।

तो इसके पीछे कारण क्या है? केवल दो कारण है – सत्ताधारी काँग्रेस पार्टी की अकर्मण्यता और आढ़तियों एवं खालिस्तानियों द्वारा प्रायोजित किसान आंदोलन। महाराष्ट्र में भी काँग्रेस सरकार का हिस्सा है, और वहाँ सरकार की नाकामी का ही परिणाम है कि वैक्सीन अभियान प्रारंभ होने के बावजूद महाराष्ट्र में ही देशभर के 60 प्रतिशत से अधिक मामले सामने आ रहे हैं। ऐसे ही पंजाब में भी काँग्रेस का ध्यान जनता के हित से अधिक अपना राजनीतिक हित साधने में है।

इसके अलावा वुहान वायरस के कारण पंजाब की बिगड़ती अवस्था में काफी हद तक ‘किसान आंदोलन’ का भी योगदान रहा है। आंदोलन के प्रारम्भिक महीनों में ही अराजकतावादियों ने साफ कर दिया था कि वे सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का कोई पालन नहीं करेंगे, क्योंकि ये सरकार द्वारा दमन करने के प्रयासों में शामिल है।

इन्ही कारणों से पंजाब में भी महाराष्ट्र जैसी हालत होती हुई दिखाई दे रही है। यदि अमरिंदर सिंह अब भी नहीं चेते और जनता के लिए आवश्यक कदम नहीं उठाते हैं, तो पंजाब और महाराष्ट्र की अकर्मण्यता के कारण पूरे देश को इसके दुष्परिणाम भुगतने पड़ेंगे।

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