भारत और रूस की निकटता दशकों से सर्वविदित है। परिस्थितियाँ कैसी भी हो, परंतु दोनों देशों के संबंधों में कभी किसी भी प्रकार की कड़वाहट नहीं आई है। अब इसे एक कदम आगे ले जाते हुए रूस ने भारत की इंडो पेसिफिक नीति को अपनी आधिकारिक स्वीकृति, और जल्द ही इस विषय पर बात आगे बढ़ाने की आशंका जताई है।
ईकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, “मॉस्को में विदेश सचिव की बातचीत से यह स्पष्ट हुआ है कि भारत और रूस संयुक्त रूप से इंडो पेसिफिक क्षेत्र को मजबूत और मुक्त रखने की नीति पर काम करेंगे। यहाँ उनका प्रमुख केंद्र होगा आसियान के सदस्य देशों के साथ व्यापार संबंधों को और सुदृढ़ बनाना। इसके जरिए न सिर्फ आर्थिक संबंध मजबूत होंगे, बल्कि दोनों देशों का पूर्वी एशिया और पूर्वोत्तर एशिया में प्रभाव भी बढ़ेगा”।
परंतु ये तो वही रूस है न, जिसने कुछ महीने पहले तक भारत के इंडो पेसिफिक नीति को लेकर अपनी असहमति जताई थी? इसके पीछे रूस का कारण स्पष्ट था – वह इस क्षेत्र में प्रवेश कर इस क्षेत्र पर आँख गड़ाए बैठे चीन से पंगा नहीं मोल लेना चाहता था। परंतु एक वो दिन था और एक आज का दिन है, जहां रूस कदापि नहीं चाहता कि चीन का प्रभाव इस क्षेत्र में बिल्कुल भी बढ़े।
इसके पीछे एक अहम कारण है अमेरिका में जो बाइडन का शासन संभालना, जो चीन से निपटने के मामले में अपने शासन के पहले महीने में ही फिसड्डी सिद्ध हुए हैं। बाइडन डीप स्टेट की जी हुज़ूरी करते हुए रूस को अमेरिका का स्थायी दुश्मन बनाए रखना चाहते है, और बाइडन प्रशासन द्वारा रूस पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंध इसी बात का सूचक है।
ऐसे में रूस-भारत को अपने संकटमोचक के रूप में देख रहा है, जो न केवल अमेरिका के कमजोर पड़ने पर एक वैकल्पिक QUAD स्थापित करने में सक्षम है, बल्कि, बाइडन प्रशासन की हेकड़ी को ठिकाने लगाने के लिए भी पूरी तरह से तैयार हैं। पिछले कुछ दिनों से यह कयास लगाए हैं कि भारत ने यदि अपना S- 400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम का सौदा रूस से रद्द नहीं किया, तो अमेरिका उस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा सकता है। लेकिन भारत के बढ़ते अंतर्राष्ट्रीय कद को देखते हुए अमेरिका का यह कदम उतना ही घातक होगा, जितना कि आतंक रोधी अभियान के लिए इज़राएल पर कार्रवाई करना।
https://theprint.in/opinion/sanctions-on-india-over-russian-s-400-will-damage-bidens-goal-in-indo-pacific/612628/
अब भारत – रूस आधारित इंडो पेसिफिक नीति की संरचना की दिशा में कैसे आगे बढ़ सकता है? इसके संकेत स्वयं विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला ने दिए हैं, जिनके अनुसार भारत और रूस के बीच इंडो पेसिफिक क्षेत्र में साझेदारी की बात किये बिना कोई बात आगे ही नहीं बढ़ सकती, और इसी दिशा में काम करने के लिए भारत प्रयासरत भी है।
हर्षवर्धन शृंगला के अनुसार, “इस क्षेत्र में रूस के साथ अपनी साझेदारी मजबूत करने की दिशा में हम काम कर रहे हैं। इसके साथ ही हम चाहते हैं कि इस अभियान में हमारे आसियान के मित्र, दक्षिण पूर्वी एशिया के मित्र देश भी हमारे साथ जुड़ें। हमारी दृष्टि से यह साझेदारी भारत महासागर और प्रशांत महासागर के अनंत स्वरूप का प्रतीक रहेगा, जहां लोग निस्संकोच किसी के साथ भी व्यापार करने के लिए स्वतंत्र होंगे”।
ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि रूस की आर्थिक और सामरिक आवश्यकताओं ने उसे भारत की इंडो पेसिफिक नीति स्वीकारने के लिए बाध्य किया है। यह न सिर्फ एक सराहनीय कदम है, बल्कि इंडो पेसिफिक क्षेत्र में चीन के लिए एक बहुत बड़ा झटका है, क्योंकि यदि रूस इस क्षेत्र में प्रवेश करता है, तो चीन का पूरे एशिया पर प्रभुत्व जमाने का सपना बस सपना ही रह जाएगा, और यह भारत के लिए एक अहम कूटनीतिक विजय होगी।