रितिका फोगट की खुदखुशी ने हमे चेताया है, भारत में खिलाड़ियों को केवल शारीरिक प्रशिक्षण की नहीं, मानसिक मार्गदर्शन की भी आवश्यकता है

रितिका फोगट की खुदखुशी ने एक सवाल पीछे छोड़ दिया है....

हमने अक्सर देखा है कि खिलाड़यों की किसी खेल में जब हार होती है, तो उनका मनोबल टूट जाता है, यही नहीं उनकी हार को लेकर जरूरत से ज्यादा होती चर्चा उन्हें मानसिक रूप से कमजोर करती है। ऐसी स्थिति में कई बार ये खिलाड़ी मौत तक का रास्ता चुन लेते है। कुछ ऐसा ही रास्ता भारतीय रेसलर बबीता और गीता फोगाट की बहन रीतिका फोगाट ने भी चुन लिया, उन्होंने फांसी लगाकर अपनी जान दे दी। इसकी वजह केवल इतनी थी कि हाल ही में स्टेट लेवल के एक कुश्ती टूर्नामेंट के एक मुकाबले में उनकी हार हुई थी। ये पूरा मामला दिखाता है कि उन्होंने खेल को अपने जीवन से ज्यादा महत्व दे दिया जो कि उनके लिए खतरनाक साबित हुआ। साफ है कि खिलाड़ियों को खेल के प्रशिक्षण के साथ ही मानसिक प्रशिक्षण की बड़ी आवश्यकता है।

जब घर में सब एक से एक बड़े खिलाड़ी हों, तो अन्य लोगों पर खेल में बेहतरीन प्रदर्शन का मानसिक दबाव अधिक होता है। ऐसे में ये खिलाडी एक छोटे स्तर के मैच को भी जरूरत से ज्यादा बड़ा समझ लेते हैं। इन परिस्थितियों में यदि हार हो तो खिलाड़ियों का आत्मबल टूट जाता है, जो कि उन्हें मानसिक रूप से कमजोर कर देता है। कुछ ऐसा ही रीतिका फोगाट के साथ हुआ है। उनकी बहनें गीता और बबीता फोगाट अंतरराष्ट्रीय स्तर के कुश्ती की चैंपियन हैं। ऐसे में उन लोगों की तरह ही बनने का सपना रितिका फोगाट को मौत के मुंह में ले गया।

और पढ़ें- बबीता फोगाट ने खोली किसान आंदोलन की पोल तो असहिष्णु हो गए अराजकतावादी

खबरों के मुताबिक रीतिका फोगाट ने फांसी लगाकर अपनी जान दी। ध्यान देने वाली बात ये भी है कि वो भी गीता बबीता के तरह ही महावीर फोगाट से ही कुश्ती की ट्रेनिंग ले रही थीं, और उन्होंने अत्महत्या भी महावीर फोगाट के ही बलाली गांव में की है। हाल ही में उनाक स्टेट लेवल कुश्ती चैपियनशिप का फाइनल था, जिसमें उनकी करारी हार हुई था। इस हार ने उन्हें मानसिक रूप से इतना मजबूर कर दिया कि उन्होंने खुदकुशी कर ली। इसने एक बार फिर भारत में खेल को लेकर लोगों की सोच पर सवाल खड़े कर दिए हैं। वहीं उनकी बहन बबीता ने ट्विटर पर ट्वीट के जरिए  भावनात्मक बातें कही हैं, और हार-जीत को सिक्के के दो पहलुओं की तरह बताया है।

भारत में खेल को लेकर लोगों का उत्साह इतना ज्यादा होता है कि जिंदगी और मौत के बीच का फासला तक खत्म हो जाता है। लोग जीतने पर तो समान्य रहते हैं लेकिन हार पर उनका आत्मविश्वास आसमान से जमीन पर धड़ाम हो जाता है और ये आत्मविश्वास ही लोगों को आत्महत्या जैसे कदम उठाने पर मजबूर करता है। इतना ही नहीं घर से लेकर समाज तक के लोग खिलाड़ियों पर जीत का दबाव बनाते हैं लेकिन हार मिलने पर इन लोगों को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।

और पढ़ें- “मैं ज़ायरा वसीम नहीं हूँ”, तबलीगी जमात के खिलाफ बोलने पर उनको ट्रोल करने वालों को बबीता फोगाट ने दिया घूसा

इसके अलावा इन खिलाड़ियों को शारीरिक रूप से इतने ज्यादा कठिन प्रशिक्षण का सामना करना पड़ता है कि वो कभी-कभी मानसिक दबाव को लेकर ड्रग्स तक लेने पर मजबूर हो जाते हैं, जो कि उनके खेल की गुणवत्ता को अधिक प्रभावित करता है।

ऐसे में खिलाड़ी इस दबाव को नहीं झेल पाते, इसलिए आज के दौर में ये बेहद जरूरी है कि खिलाड़ियों को उनके खेल के प्रशिक्षण के साथ ही, समाज का दबाव बर्दाशत करने के लिए मानसिक प्रशिक्षण भी देना चाहिए, क्योंकि खेल में प्रत्येक बार जीतना संभव नहीं है। ऐसे में खिलाड़ियों को हार होने पर किस तरह उसे स्वीकार कर उसे पीछे छोड़ आगे बढ़ना है ये सिखाना भी जरूरी है।

खेल के प्रशिक्षण के साथ ही यदि खिलाड़ियों को मानसिक प्रशिक्षण नहीं दिया जाता तो अभी जो रीतिका फोगाट के साथ हुआ है, वो भविष्य में अन्य खिलाड़ियों के साथ भी हो सकता है जो कि देश के लिए एक गहन चिंता का विषय बन जाएगा।

Exit mobile version