श्रीलंकाई सरकार एहसान फरामोश की सही परिभाषा बताने की कसम खा चुकी है। अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए श्रीलंका किसी की भी गुलामी करने और उसे खुश करने की तैयारी कर लेता है। कुछ ऐसा ही उसने भारत के साथ कोरोना वायरस की वैक्सीन के मुद्दे पर भी किया, क्योंकि वैक्सीन हासिल करने के बाद इस पड़ोसी के सुर बदल गए हैं।
श्रीलंकाई राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने भारत पर सांकेतिक निशाना साधते हुए उसे अपने यहां अलगाववाद बढ़ाने का दोषी बताया है। उनका ये बयान उनकी एहसान फरामोशी का नमूना है। इससे दोनों देशों के बीच पुनः एक टकराव की स्थिति आ सकती है, इसीलिए ये कहा जाने लगा है कि विदेश नीति के मामले में श्रीलंका को बांग्लादेश से सीख लेने की आवश्यकता है।
वो गोटाबाया, जो कल तक भारत से कोरोना की वैक्सीन मांगने के लिए घुटनों पर थे वो अब भारत को आंखें दिखाने की स्थिति में आ गए हैं। हाल में ही अपने बयान में उन्होंने कहा, “कई देश अपने भू-रणनीतिक हित साधने के लिए श्रीलंका में विकेंद्रीकरण के नाम पर अलगाववाद को बढ़ावा दे रहे हैं, लेकिन वह ऐसा नहीं होने देंगे। हिंद महासागर में वैश्विक ताकतों के बीच वर्चस्व की लड़ाई में उनकी सरकार शामिल नहीं होना चाहती है। श्रीलंका की संप्रभुता के साथ कोई खिलवाड़ नहीं कर सकता।”
इसके पीछे श्रीलंका की नाराजगी है, क्योंकि श्रीलंका में तमिल और मुस्लिमों के साथ हो रहे भेदभाव और अत्याचार का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र में उठाया गया, जिसके बाद संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार में श्रीलंका के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया गया। श्रीलंका ने इस मुद्दे पर भारत से समर्थन मांगा था, लेकिन भारत ने अपने आंतरिक मामलों के चलते इससे दूरी बनाई थी। भारत द्वारा बनाई गई यही दूरी श्रीलंका को रास नहीं आई है, जिसके बाद श्रीलंकाई राष्ट्रपति के सुर भारत विरोधी हो गये हैं।
राजपक्षे ने बातों ही बातों में भारत और चीन के बीच चल रहे अघोषित शीत युद्ध को लेकर निशाना साधाते हुए कहा, “हम जेनेवा की चुनौती का बिना किसी डर के सामना करेंगे। हम किसी के दबाव में झुकने वाले नहीं हैं। हम एक आजाद मुल्क हैं। हम हिंद महासागर में दुनिया की महाशक्तियों की दुश्मनी का शिकार नहीं बनेंगे।”
दिलचस्प बात ये है कि इस मुद्दे पर पाकिस्तान और चीन ने श्रीलंका का समर्थन किया है। यही कारण है कि इन दोनों ही देशों की तरफ गोटाबाया का रुख नर्म है, जो कि उनके स्वार्थी चरित्र को दर्शाता है। श्रीलंका का चीन के प्रति प्रेम इतना ज्यादा है कि चीन पैसे के दम पर श्रीलंका के पोर्ट तक पर कब्जा कर चुका है। दूसरी ओर बांग्लादेश एक ऐसा मुल्क है, जो चीन का निवेश लेने के बावजूद चीन को आंखें दिखाता रहता है।
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भारत के विषय में बांग्लादेशी पीएम शेख हसीना के सलाहकार पहले ही कह चुके हैं कि चीन भले ही हमारे यहां निवेश करके हमें आकर्षित करने की कोशिश करे, लेकिन भारत हमारा सबसे महत्वपूर्ण साथी रहेगा। ऐसे में चीन से हजारों चोट खाने के बावजूद चीन के पीछे भारत से दुश्मनी लेना श्रीलंका को भारी पड़ सकता है। इसलिए श्रीलंका की विदेश नीति को देखते हुए यह कहा जा रहा है कि उसे बांग्लादेश से बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है।