‘भारत और चीन में से किसी एक को चुनो’, UNHRC में वोटिंग से दूर रहकर भारत ने श्रीलंका को दिए सख्त सन्देश

श्रीलंका

भारत ने मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में श्रीलंका के खिलाफ आए एक प्रस्ताव पर वोटिंग न कर श्रीलंका को एक कड़ा संदेश दिया है। UNHRC में श्रीलंका के मानवाधिकार उल्लंघन के मुद्दे पर लाए गए प्रस्ताव को कुल 47 सदस्य देशों में से 22 का समर्थन मिला है। पिछली बार, 27 मार्च 2014 को भारत ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान करने से परहेज़ किया था। हालांकि, भारत ने 2012 में इसी तरह के प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया था।

यह ऐसे समय में आया है जब, नई दिल्ली श्रीलंका की सरकार से पूर्वी कंटेनर टर्मिनल परियोजना को सौंपने पर जोर दे रही है, जिसे फरवरी में श्रीलंकाई सरकार ने अपने देश की चीन समर्थित ट्रेड यूनियन के दबाव में आकर टर्मिनल को Sri Lanka Ports Authority (SLPA) के हाथों सौंप दिया था। इस टर्मिनल को विकसित करने के लिए भारत, श्रीलंका और जापान के बीच समझौता हुआ था। इसमें कहा गया था कि टर्मिनल के संचालन में भारत और जापान की हिस्सेदारी 49 फीसदी और शेष हिस्सेदारी SLPA के पास होगी। परन्तु अब इस पोर्ट का संचालन पूरी तरह से SLPA को दे दिया गया है। यह परियोजना एक विवादित $ 500 मिलियन चीनी-संचालित कंटेनर जेट के बगल में स्थित है।

पिछले कुछ समय में देखा जाए तो भारत के लिए श्रीलंका का रुख फ्लिप फ्लॉप वाला रहा है यानी कभी पक्ष में तो कभी विपक्ष में दिखाई दिया है। इसी का नतीजा है कि भारत ने श्रीलंका का साथ न देकर उसे दंड दिया है।

यह अच्छी तरह से स्थापित है कि श्रीलंका चीनी ऋण-जाल रणनीति का शिकार रहा है। श्रीलंका ने चीन के ऋण जाल में फंस कर हंबनटोटा और कोलंबो पोर्ट सिटी को चीन को सौंप दिया था जिससे भारत की चिंता बढ़ गई थी।

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में पास हुए इस प्रस्ताव में श्रीलंका में तमिलों के मानवाधिकार उल्लंघन का भी मुद्दा शामिल था। श्रीलंका की सरकार चाहती थी कि भारत प्रस्ताव के खिलाफ वोट करे परंतु तमिल नेशनल एलायंस ने भारत से प्रस्ताव को समर्थन देने की मांग की थी।

बता दें कि जो यूएनएचसीआर के वर्तमान सत्र में पारित हुआ प्रस्ताव 27 जनवरी को उच्चायुक्त के कार्यालय द्वारा मानव अधिकारों के ऊपर प्रस्तुत एक रिपोर्ट पर आधारित है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि श्रीलंका “गंभीर मानवाधिकारों के उल्लंघन की पुनरावृत्ति की ओर खतरनाक मार्ग पर है”। साथ ही रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि श्रीलंका की विफलता के कारण सभी समुदायों के हजारों परिवार के सदस्यों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ रहे है।

श्रीलंका के खिलाफ यूएनएचसीआर के कोर ग्रुप द्वारा यह प्रस्ताव लाया गया था – जिसमें यूके, जर्मनी और कनाडा शामिल हैं। इस प्रस्ताव में कोलंबो पर प्रतिबंध लगाने के साथ श्रीलंकाई सरकार के लिए कुछ सख्त कार्रवाई का प्रस्ताव शामिल हैं।

UNHRC के चल रहे सत्र में पिछले महीने ही भारत की स्थायी प्रतिनिधि, इंद्रा मणि पांडेय ने कहा था कि भारत “श्रीलंका के तमिलों की समानता, न्याय, शांति और गरिमा की आकांक्षाओं” के लिए प्रतिबद्ध है।

अब भारत ने वोटिंग के समय अनुपस्थित रह कर श्रीलंका को यह संदेश दे दिया है कि वहां रहने वाले तमिलों को मानवाधिकार देने के साथ साथ श्रीलंका को अब भारत और चीन में से किसी एक को चुनना होगा। अगर श्रीलंका इसी तरह आनाकानी करता रहा तो उसे इसी तरह दंड मिलता रहेगा।

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