आरक्षण की सीमा तय करने का अधिकार राज्यों को देने की वकालत कर रहे मुकुल रोहतगी को सुप्रीम कोर्ट ने लताड़ा

बहुत बढ़िया!

मुकुल रोहतगी

देश में आरक्षण को लेकर जरा-सा विरोध भी हद से ज्यादा भारी पड़ सकता है। स्थिति ये है कि जहां आरक्षण की व्यवस्था को धीरे-धीरे खत्म करने की बात होनी चाहिए तो यहाँ नए वर्ग भी आरक्षण की मांग कर रहे हैं। महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण की मांग ऐसी ही है। महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में कहा कि राज्यों को आरक्षण की सीमा तय करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए जिसको लेकर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने मुकुल रोहतगी को लताड़ लगाई, और उनसे पूछा कि इस देश में कब तक लोगों को आरक्षण की आवश्यकता होगी।

महाराष्ट्र सरकार ने मराठा आरक्षण के प्रावधान कर रखे हैं और यह मामला आज भी सुप्रीम कोर्ट में है। इस मुद्दे पर महाराष्ट्र सरकार की तरफ से पेश हुए वकील मुकुल रोहतगी ने कहा, “न्यायालयों को बदली हुई परिस्थितियों के मद्देनजर आरक्षण कोटा तय करने की जिम्मेदारी राज्यों पर छोड़ देनी चाहिए। मंडल मामले से संबंधित फैसला 1931 की जनगणना पर आधारित था।” इतना ही नहीं अपनी दलीलों को सही ठहराने के लिए उन्होंने आर्थिक रूप से अक्षम लोगों को दिए जाने वाले 10 फीसदी आरक्षण को भी गलत बताया है।

 

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मुकुल रोहतगी की ये दलीलें सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस अशोक भूषण की पांच सदस्यों वाली संवैधानिक बेंच को रास नहीं आई है। इस बेंच में जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस अब्दुल नजीर, जस्टिस रविंद्र भट्ट और हेमन्त गुप्ता शामिल हैं। कोर्ट ने इस मामले में बराबरी का मुद्दा उठाते हुए कहा, “यदि 50 प्रतिशत की सीमा या कोई सीमा नहीं रहती है, जैसा कि आपने सुझाया है, तब समानता की क्या अवधारणा रह जाएगी। आखिरकार, हमें इससे निपटना होगा। इस पर आपका क्या कहना है…इससे पैदा होने वाली असमानता के बारे में क्या कहना चाहेंगे। आप कितनी पीढ़ियों तक इसे जारी रखेंगे।”

कोर्ट ने इस मुद्दे पर एक विराट सोच रखते हुए मुकुल रोहतगी को लताड़ा है, ओर पूछा है कि आखिर कब तक इस देश में आरक्षण की आवश्यकता होगी। कोर्ट ने कहा, “देश की आजादी के 70 साल गुजर चुके हैं और राज्य सरकारें कई सारी कल्याणकारी योजनाएं चला रही हैं तथा क्या हम स्वीकार कर सकते हैं कि कोई विकास नहीं हुआ है, कोई पिछड़ी जाति आगे नहीं बढ़ी है। मंडल से जुड़े फैसले की समीक्षा करने का यह उद्देश्य भी है कि पिछड़ेपन से जो बाहर निकल चुके हैं, उन्हें अवश्य ही आरक्षण के दायरे से बाहर किया जाना चाहिए।”

 

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सुप्रीम कोर्ट के जजों की आरक्षण को लेकर इन टिप्पणियों ने मुकुल रोहतगी को भी असहज कर दिया। उन्होनें फिर अलग-अलग राज्यों के उदाहरण देना शुरू कर दिया। मुकुल रोहतगी से इतर अगर आरक्षण के मुद्दे की बात करें तो इसमें कोई शक नहीं आरक्षण का लाभ ले चुके लोगों की दूसरी तीसरी पीढ़ियां सक्षम होने के बावजूद आरक्षण का लाभ ले रही हैं, जिससे समाज में असमानता की स्थिति पैदा हुई है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी देश में एक नए रिफॉर्म की शुरुआत हो सकती है क्योंकि आरक्षण को लेकर देश में दो विचारधाराएं बन गईं हैं, जिसके चलते समाज बंटता जा रहा है।

 

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