बाइडन प्रशासन के सत्ता में आते ही अमेरिका-उत्तर कोरिया के रिश्ते फिर उसी मोड़ पर जा पहुंचे हैं, जहां वे आज से चार साल पहले खड़े थे। ट्रम्प प्रशासन के चार सालों के दौरान उत्तर कोरिया-अमेरिका और उत्तर कोरिया-दक्षिण कोरिया के आपसी रिश्तों के तनाव में कमी देखने को मिली थी। हालांकि, बाइडन के आते ही उत्तर कोरिया दोबारा अमेरिका और दक्षिण कोरिया को धमकाने के रास्ते पर लौट आया है।
हालिया बयान में उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन की बहम किम यो जोंग ने अमेरिका और दक्षिण कोरिया के संयुक्त सैन्याभ्यास की आलोचना करते हुए कहा “अगर अमेरिका आने वाले चार सालों तक शांति की नींद सोना चाहता है, तो उसे इस क्षेत्र में गंदगी फैलाने से दूर रहना चाहिए।” उनके इस बयान की टाइमिंग इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह बयान अमेरिकी विदेश मंत्री और अमेरिकी रक्षा मंत्री की जापान यात्रा से ठीक एक दिन पहले दिया गया है।
बाइडन प्रशासन ने अब तक अपनी उत्तर कोरिया नीति को सार्वजनिक नहीं किया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक आने वाले महीने में अमेरिका अपनी North Korea पॉलिसी को जारी कर सकता है जिससे पहले उत्तर कोरिया अपने आक्रामक बयानों से अमेरिका पर दबाव बनाना चाहता है। अमेरिका यह पहले ही पुष्ट कर चुका है कि उत्तर कोरिया वार्ता को आगे बढ़ाने की अमेरिकी प्रशासन की कोशिशों का कोई उत्तर नहीं दे रहा है।
जून 2018 में जब सिंगापुर में किम-ट्रम्प की समिट का आयोजन हुआ था, तो उत्तर कोरिया के Denuclearization और उत्तर कोरिया-दक्षिण कोरिया के रिश्तों में सुधार आने के विचार को काफी बल मिला था। इस समिट के बाद ना सिर्फ अमेरिका ने दक्षिण कोरिया के साथ होने वाले संयुक्त सैन्य अभ्यासों पर रोक लगा दी थी, बल्कि उत्तर कोरिया ने भी दक्षिण कोरिया में आयोजित हो रहे Winter Olympics में अपने खिलाड़ी भेजकर शांति की ओर एक कदम बढ़ाया था। पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने Fox Business को दिये एक इंटरव्यू में कहा “हमने बेशक अच्छा काम किया। हम अपने मुकाम तक नहीं पहुँच पाये, लेकिन हमने उन्हें मिसाइल टेस्ट बंद करने पर मजबूर कर दिया, जो कि अमेरिका और क्षेत्र की सुरक्षा के लिए बेहद महत्वपूर्ण था।”
हालांकि, जब ट्रम्प प्रशासन ने मिसाइल प्रोग्राम और मिसाइल परीक्षण को रोकने के बदले उत्तर कोरिया को प्रतिबंधों से राहत देने से मना कर दिया, तो आज से करीब 1 साल पहले अमेरिका-उत्तर कोरिया शांति वार्ता फिर रास्ते से भटक गयी। हालांकि, उत्तर कोरिया ने कई मौकों पर ऐसे संकेत दिये कि वह अब भी अमेरिका की पहल के बिना ही दक्षिण कोरिया के साथ अपने रिश्ते सुधारना चाहता है।
कोरोना के बाद से ही उत्तर कोरिया की विदेश नीति में एक बदलाव देखने को मिला था और वह चीन के अलावा अपने बाकी पड़ोसियों के प्रति भी सहनशीलता की भावना दिखा रहा था। इसका सबसे बड़ा उदाहरण सितंबर में देखने को मिला था। तब दक्षिण कोरियाई नागरिक की समुद्र में गोली मारकर हत्या किए जाने पर उत्तर कोरिया के नेत किम जोंग-उन ने माफी मांगते हुए इसे अप्रत्याशित और अपमानजनक घटना करार दिया था। आमतौर पर तानाशाह किम-जोंग-उन से इस प्रकार माफी मांगने की उम्मीद कम ही की जाती रही है। हालांकि, उनके इस कदम को दक्षिण के साथ तनाव को कम करने की कोशिश के रूप में देखा गया था।
इस दौरान दक्षिण कोरिया की ओर से भी ऐसे कदम उठाए गए, जिसके बाद दोनों देशों के रिश्तों में बेहतरी के आसार बढ़े थे। उदाहरण के लिए दिसंबर 2020 में दक्षिण कोरिया ने “प्रोपेगैंडा से भरे पत्रों” को बॉर्डर पार भेजने पर रोक लगा दी थी। पूर्व में उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के लोग गुब्बारों के जरिये एक दूसरे के खिलाफ पत्रों को बॉर्डर पार पहुंचाते रहे हैं। हालांकि, दिसंबर में दक्षिण कोरियाई संसद ने इसे गैर-कानूनी करार दिया था, जिसका दक्षिण कोरिया में कुछ हद तक विरोध भी देखने को मिला था।
हालांकि, बाइडन के सत्ता में आने के बाद से ही समीकरण बदलते दिखाई दे रहे हैं। बाइडन प्रशासन की उत्तर कोरिया नीति Denuclearization के इर्द-गिर्द ही घूमेगी, जिसके कारण वह उत्तर कोरिया के खिलाफ ऐसा रुख अपना सकता है, जो दोबारा उत्तर कोरिया को चीन के पास धकेल सकता है। उत्तर कोरिया के हालिया अमेरिका-विरोधी बयानों से भी यह स्पष्ट हुआ है कि Back-Channels के माध्यम से चीन और उत्तर कोरिया बाइडन प्रशासन का मुक़ाबला करने के लिए एक साझी रणनीति पर काम कर रहे हो सकते हैं।
क्षेत्र में असंतुलन को बढ़ावा मिलते देख दक्षिण कोरिया की चिंताएँ भी बढ़ी हैं। South China Morning Post के एक लेख के मुताबिक दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति मून जे इन बाइडन प्रशासन पर ट्रम्प की नीति का पालन करने का ही दबाव बना रहे हैं। उन्होंने हाल ही में कहा था कि, “मैं पूरी कोशिश करूंगा कि जो अनमोल उपलब्धियां ट्रम्प प्रशासन के तहत मिली हैं उसे अगली सरकार के साथ मिलकर आगे बढ़ायें।”
अब यह देखने होगा कि आखिर बाइडन प्रशासन किस प्रकार उत्तर कोरिया के इस रुख का जवाब देता है, जो क्षेत्र में शांति स्थापना के विचार को बल भी दे सकता है और उसे कमजोर भी कर सकता है। हालांकि, इतना तय है कि अगर बाइडन अपनी मौजूदा नीति के तहत शांति वार्ता को लेकर कोई कदम आगे बढ़ाने में विफल साबित होते हैं, तो वे ना सिर्फ उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच की शांति को हमेशा के लिए बर्बाद कर रहे होंगे, बल्कि वे उत्तर को दोबारा चीन के पाले में धकेल बैठेंगे।