उद्धव-पवार रंगे हाथों पकड़े गये हैं, BMC चुनावों में भाजपा को हो सकता है बड़ा फायदा

उद्धव और पवार ही अपनी पार्टी के पतन का कारण बनेंगे!

किसी का नुकसान उसके प्रतिद्वंद्वी के लिए फायदा बन जाता है, और महाराष्ट्र में भी अब कुछ ऐसा ही होने वाला है, जहां कि महाविकास आघाड़ी के बेमेल गठबंधन की पार्टियां भ्रष्टाचार से लेकर वसूली तक के मामलों में रंगे हाथों पकड़ी गईं हैं। इसके चलते इन सभी पार्टियों से जनता का भरोसा उठ चुका है, जिसकी झलक 2022 में होने वाले देश की सबसे धनवान महानगरपालिका यानी बीएमसी के चुनावों में देखने को मिलेगी, और इसका सबसे बड़ा फायदा बीजेपी को मिलेगा।

किसी राज्य में बेमेल गठबंधन की सरकार जब भ्रष्टाचार और जनता से ही लूट करने लगे, तो जनता का भड़कना जायज है। सचिन वाझे केस में एनसीपी कोटे के गृहमंत्री अनिल देशमुख से लेकर एनसीपी प्रमुख शरद पवार और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की छवि पर खूब बट्टा लगा है, और जनता के बीच ये सभी रंगे हाथों अपराधियों को संरक्षण देते पकड़े गए हैं जिसके चलते सरकार और इसके घटक दलों की राजनीतिक विश्वसनीयता शून्य हो चुकी है। इस पूरी स्थिति को देखते हुए ये कहा जा सकता है, कि राज्य में बीजेपी सबसे मजबूत स्थिति में है, और बीएसपी चुनाव में ये बात सामने भी आएगी क्योंकि एनसीपी और कांग्रेस के पास बीएमसी चुनावों के लिए कोई खास जनाधार नहीं है। दूसरी ओर शिवसेना का बीजेपी से गठबंधन टूटना उसकी ताकत के नष्ट होने की एक बड़ी वजह बन गया है।

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हम अपनी रिपोर्ट में आपको बता चुके हैं कि बीएमसी चुनावों को लेकर महाराष्ट्र की सभी राजनीतिक पार्टियों ने तैयारी शुरू कर दी है। एक तरफ जहां सत्ता के लिए शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस ने राज्य सरकार का गठन करते हुए एक बेमेल गठबंधन किया था, तो वहीं बीएमसी चुनावों को लेकर इन सभी के इरादे स्पष्ट हैं कि वो बीएमसी के चुनावों में अकेले ताल ठोकेंगे। कांग्रेस और एनसीपी के दिग्गज नेता इस मुद्दे को लेकर अपना रोड मैप भी तैयार कर चुके हैं। पिछले चुनावों की बात करें तो शिवसेना-भाजपा गठबंधन को 179 सीटें मिलीं थीं, वहीं कांग्रेस को 31 और एनसीपी को 21 सीटें मिलीं थीं, लेकिन अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं, क्योंकि महाराष्ट्र सरकार की सत्ताधारी तीनों ही पार्टियों की फजीहत हो चुकी है।

इन परिस्थितियों के बीच जनता ने भी राजनीतिक पार्टियों को अच्छे से परख लिया है, कि महाराष्ट्र सरकार के इन घटक दलों का मूल उद्देश्य केवल और केवल अपनी झोली भरना है। ऐसे में नाराज जनता इन सभी को एक तगड़ा सबक सिखा सकती है, और इसका प्रभाव बीएमसी के चुनावों पर अवश्य पड़ेगा। BMC चुनावों के नतीजे कांग्रेस एनसीपी और शिवसेना को उनके राजनीतिक पतन की ओर ले जाएगा।

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बात अगर बीएमसी की करें तो ये देश की सबसे धनाढ्य महानगर पालिका है, जिसके चलते हमेशा ही शिवसेना इसे अपने पास रखने के लिए बीजेपी पर दबाव बनाती थी। शिवसेना की इतनी अच्छी स्थिति कभी नहीं रही कि वो बीएमसी में अकेले ही सत्ता हासिल कर सके। उसे बीजेपी का साथ लेना ही पड़ता था, दूसरी ओर अब उसकी गठबंधन की साथी पार्टियां उसके साथ गठबंधन नहीं करना चाहतीं हैं जिससे इस पूरे खेल में शिवसेना अकेली पड़ गई है। वहीं जनता की नाराजगी तीनों पार्टियों से समान होने के कारण बीजेपी को इसका सीधा फायदा हो सकता है जो कि उसके लिए सकारात्मक होगा।

इसीलिए ये भी कहा जा रहा है कि राज्य में महाविकास आघाड़ी सरकार के गठबंधन की आयु केवल बीएमसी के चुनावों तक ही सीमित होगी, क्योंकि बीएमसी चुनावों में बीजेपी को मिलने वाली संभावित जीत इस गठबंधन में फूट और महाराष्ट्र सरकार के गिरने का कारण बन सकती है।

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