भारत को फिलहाल इलैक्ट्रिक वाहनों की नहीं, वैकल्पिक ऊर्जा स्त्रोतों की आवश्यकता है

क्या देश इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए पूरी तरह से तैयार है?

मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में हम सभी ने देखा है कि किस प्रकार से केन्द्रीय प्रशासन ने इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने पर जोर दिया है। 2017 से ही नीति आयोग इस दिशा में अहम कदम उठाने के लिए प्रेरित कर रहा है, और ओला जैसे राइड शेयरिंग प्लेटफ़ॉर्म इसके लिए आवश्यक व्यवस्था भी कर रहे हैं। पर एक प्रश्न का उत्तर अभी भी नहीं मिल है – क्या देश इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए पूरी तरह से तैयार है? या फिर वैकल्पिक ऊर्जा स्त्रोतों के लिए?

यदि वर्तमान स्थिति का विश्लेषण किया जाए, तो शायद उक्त प्रश्न का उत्तर होगा, ‘नहीं’। सरकार के लाख बढ़ावा देने के बाद भी भारत के पास इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए पर्याप्त इन्फ्रस्ट्रक्चर नहीं है। उचित वाहनों की संख्या तो छोड़िए, यहाँ इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए पर्याप्त चार्जिंग स्टेशन ही नहीं है। ऐसा इसलिए हैं क्योंकि एलेक्ट्रिक वाहनों के लिए देश में उतनी मांग ही नहीं है।

लेकिन क्या यही एक कारण है? दरअसल सरकार द्वारा बिजली को वैकल्पिक ऊर्जा का प्रमुख स्त्रोत मानना बुरा नहीं है, परंतु ये समय से पहले लिया गया निर्णय है। भारत में आज भी 50 प्रतिशत से अधिक बिजली कोयले से उत्पन्न होती है। भले ही देश सौर ऊर्जा की दिशा में धीमे धीमे आगे बढ़ रहा है, परंतु आज भी देश की अधिकांश बिजली थर्मल पावर प्लांट से ही उत्पन्न हो सकती है। ऐसे में अचानक से बिजली के वाहनों की ओर मुड़ना परिपक्वता नहीं, अतार्किक सोच का परिचायक होगा।

इस समय सरकार का ध्येय होना चाहिए वैकल्पिक ऊर्जा के स्थायी स्त्रोत ढूँढना, जैसे जल शक्ति, वायु शक्ति, सौर ऊर्जा, परमाणु ऊर्जा इत्यादि। इसी दिशा में मोदी सरकार ने दुनिया भर के निवेशकों को भारत में निवेश करने के लिए आमंत्रित भी किया है। प्रधानमंत्री मोदी ऊर्जा क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रयासरत हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि हर वर्ष भारत fossil fuel इम्पोर्ट पर लगभग 100 बिलियन डॉलर खर्च करता है, जो भारत के कुल इम्पोर्ट का एक चौथाई होता है। यदि पीएम मोदी के दृष्टिकोण के अनुसार काम किया गया, तो भारत चीन की भांति ईंधन एक्स्पोर्टर बन सकता है।

वहीं दूसरी ओर पेट्रोल और प्राकृतिक गैस के दाम मिडिल ईस्ट की स्थिति पर निर्भर है। तेल के दाम में जरा सा उछाल आया नहीं, और इम्पोर्ट बिल के साथ महंगाई की मार देश को डसने के लिए तैयार होती है। यदि भारत ऊर्जा क्षेत्र में वाकई आत्मनिर्भर हो जाता है, तो ये भारत सरकार के लिए आर्थिक और राजनीतिक तौर पर काफी लाभकारी सिद्ध होगा।

इसलिए इलेक्ट्रिक वाहनों पर अत्यधिक निर्भर होने के बजाए मोदी सरकार को बिजली उत्पत्ति में कोयले की हिस्सेदारी कम करने और वैकल्पिक स्त्रोतों को बढ़ावा देने पे ध्यान देना चाहिए, जिससे न सिर्फ भारत की ऊर्जा स्वच्छ होगी, बल्कि ये देश को आर्थिक तौर पर भी समृद्ध बनाएगा।

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