आखिर क्यों BJP के घोषणापत्र में असम की बाढ़ समस्या को शामिल करना उसकी जीत तय करने जा रहा

जनता की परेशानियों को नजरअंदाज करती रही है कांग्रेस

असम में 27 मार्च से विधानसभा चुनाव के पहले चरण की शुरुआत हो गई है। असम एक उत्तर पूर्वी राज्य है। उत्तर पूर्वी होने की वजह से राज्य की समस्या से न ही देश की मीडिया को ज्यादा मतलब रहता है और न ही 70 सालों से राज कर रही कांग्रेस पार्टी को, लेकिन भाजपा ने इस दिशा में सोचने का काम शुरू कर दिया है। भाजपा ने बीते मंगलवार (23 मार्च) को असम में अपना चुनावी घोषणापत्र जारी किया, जिसमें असम की सबसे बड़ी समस्या बाढ़ पर बात की गई है।

बता दें कि असम बाढ़ ग्रसित राज्य है, वहां लगभग हर साल बाढ़ आती है और न जाने कितने लोगों की जान और संपति को निगल जाती है। विस्तार में बताएं तो असम में ब्रह्मपुत्र नदी बहती है, जिसका प्रकोप काफी ज्यादा है। ब्रह्मपुत्र नदी के साथ ही असम में भूकंप का खतरा हमेशा रहता है। साल 1950 से लेकर आज तक भूकंप का प्रकोप आज भी कायम है। भूकंप की वजह से असम की ज़मीन नीचे की ओर धंस गई है, जिसकी वजह से ब्रह्मपुत्र नदी का स्तर और ऊपर हो गया है। नतीजतन असम को हर वर्ष बाढ़ का सामना करना पड़ता है।

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असम में शायद यह पहली बार हुआ है कि किसी राजनीतिक पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में बाढ़ को लेकर इतनी गंभीरता दिखाई हो। असम में दशकों तक राज करने वाली कांग्रेस पार्टी ने बाढ़ की समस्या पर कुछ खास विचार विमर्श भी नहीं किया। असम में कांग्रेस राज्य की जनता की परेशानियों को नजरअंदाज करते हुए बाढ़ की समस्या को प्राकृतिक आपदा बताकर अपना पल्ला झाड़ती रही है।

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अगर हम बीते समय की बात को छोड़कर आज के समय की कांग्रेस पार्टी की बात करें तो आज भी राहुल और प्रियंका गांधी ने कभी बाढ़ की समस्या पर बात नहीं की। हाँ, कांग्रेस ने चाय मज़दूरों की बात जरूर की, क्योंकि असम में उनका वोट बैंक पर अच्छा प्रभाव है। इसे देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि आज के दौर की कांग्रेस भी केवल उन्हीं मुद्दों पर बात करती है, जिनसे वह वोट बटोर सके।

आज भारतीय जनता पार्टी देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन चुकी है। इसका मुख्य कारण है कि, वोट बैंक की पॉलिटिक्स से ज्यादा वोट देने वाली जनता के बारें में सोचना। असम चुनाव के घोषणा पत्र से पहले भी असम की भाजपा सरकार ने बाढ़ को रोकने के लिए बहुत प्लान बनाए हैं और काफ़ी काम भी हो चुका है।

बता दें कि, केंद्र सरकार ने जुलाई 2020 में राज्य की जनता को बाढ़ की समस्या से हमेशा के लिए निजात दिलाने के लिए NORTH EAST WATER MANAGEMENT AUTHORITY के लिए अध्यादेश पारित किया था।

केंद्र सरकार के साथ असम सरकार ने बाढ़ की समस्या पर काबू पाने के लिए 2016 में राज्य में भाजपा और उसके सहयोगियों के सत्ता में आने के बाद, वित्तीय वर्ष 2016-17 से 2018-19 तक 1560.96 करोड़ रुपये की लागत वाली 731 बाढ़-नियंत्रण योजनाएं राज्य में लागू की गईं। इनमें कांग्रेस शासन के दौरान 17.75 किलोमीटर की लंबाई के साथ 91 तटबंध बनाने का प्रबंध किया है।

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केंद्र सरकार और राज्य सरकार के निरंतर प्रयास के बाद भी बाढ़ का समस्या अभी भी है। इससे यह संकेत मिलता है कि बीते कई सालों तक इस समस्या के ऊपर कोई गंभीर विचार नहीं किया गया। उम्मीद है कि अब राजनीतिक दलों द्वारा बाढ़ की समस्या को और गंभीरता से लिया जाए ताकि ‘असम बचाओ’ के नारा को सच बनाया जा सके।

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