सुप्रीम कोर्ट का प्रस्ताव विवादों के घेरे में, नाबालिक के बलात्कारी से पूछा “क्या तुम उससे शादी करोगे?”

ये विरोधाभासी भी है और चिंताजनक भी

विरोध करने का अधिकार

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान पीठ ने एक ऐसा निर्णय दिया, जो विवादों के घेरे में आया है। एक दुष्कर्म आरोपी से पूछा कि क्या वो पीड़िता से विवाह करेगा, जिसके पीछे कई लोग सुप्रीम कोर्ट के इस रुख से हैरान भी है और आक्रोशित भी।

परंतु समस्या किस बात की है? असल में अभी सुप्रीम कोर्ट में दुष्कर्म के एक मामले को लेकर सुनवाई की जा रही थी, जहां एक सरकारी कर्मचारी पर एक नाबालिग पीडिता के दुष्कर्म का आरोप लगा हुआ था। आरोपी महाराष्ट्र के बिजली विभाग का कर्मचारी था, और उसने एक नाबालिग लड़की के साथ दुष्कर्म किया, जिसके पश्चात उसपर POCSO के अंतर्गत कार्रवाई हुई।

इसी संबंध में उक्त आरोपी के गिरफ़्तारी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई को लेकर मांग चल रही थी। आरोपी ने बताया कि पीड़िता से शादी को लेकर उसकी माँ ने पहले पीड़िता के परिवार से बातचीत भी की, परंतु बात असफल रही। इसको लेकर न्यायिक पीठ का नेतृत्व कर रहे मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबड़े ने मानो व्यंग्यात्मक लहजे में पूछा, “क्या तुम उससे विवाह करने को तैयार हो? यदि हाँ, तो तुम्हारी गिरफ़्तारी नहीं होगी। यदि नहीं, तो तुम्हारी नौकरी भी जाएगी और तुम्हें जेल भी होगी”

हालांकि जो दिखता है, जरूरी नहीं वैसा ही हो। सुप्रीम कोर्ट के इस प्रस्ताव से कई लोग चकरा गए हैं, परंतु वास्तविकता तो कुछ और ही है। दरअसल कुछ मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो मामला काफी पेचीदा है, क्योंकि आरोपी पहले से शादीशुदा है, और वह पीड़ित से शादी करने की बात कर बाद में मुकर गया। इसी के पीछे सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान पीठ ने आरोपी को आड़े हाथों भी लिया।

जब आरोपी के अधिवक्ताओं ने बताया कि वह पहले से ही शादीशुदा है, तो कोर्ट ने जिला न्यायालय से जमानत लेने की बात कही, और साथ ही में जब यह दलील दी गई कि एक सरकारी कर्मचारी होने के नाते उन्हे जेल में नहीं डाला जा सकता, तो वर्तमान पीठ ने अधिवक्ताओं को डपटते हुए कहा, यह सब [दुष्कर्म] करने से पहले सोचिए था न!

इसके अलावा 2019 के अप्रैल माह में ही सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक निर्णय में दुष्कर्म के बारे में अपना रुख स्पष्ट किया था, और साथ ही में यह भी कहा था कि शादी के नाम पर जबरदस्ती यौन संबंध बनाना भी दुष्कर्म ही है। लेकिन जिस प्रकार से एक नाबालिग लड़की के साथ दुष्कर्म करने वाले को उसी से विवाह करने का प्रस्ताव दिया, वह न सिर्फ विरोधाभासी है, बल्कि चिंताजनक भी, और इस बात पर वर्तमान पीठ को पुनर्विचार करना चाहिए।

अब वैधानिक तौर पर कोर्ट का प्रस्ताव अंतिम निर्णय नहीं होता, लेकिन ऐसा प्रस्ताव एक तरह से दुष्कर्मियों द्वारा पीड़िता के साथ विवाह की कुरीति को बढ़ावा देगा, जो भारतीय समाज के लिए अच्छा नहीं है। कुछ नहीं तो वर्तमान पीठ को अपनी शब्दावली की ओर ध्यान देना चाहिए था, ताकि ऐसे कुरीतियों को किसी भी प्रकार से बढ़ावा न मिले। सुप्रीम कोर्ट ने निस्संदेह अपने विवेक का उपयोग करते हुए सही निर्णय दिया, पर शब्दों के फेर में फंस गया।

Exit mobile version