देश के वरिष्ठ डॉक्टरों समेत खुद स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन हाल ही में कह चुके हैं कि देश में कोरोनावायरस की दूसरी लहर के पनपने में पंचायत चुनावों से लेकर किसान आंदोलन की भूमिका अहम रही है, लेकिन इतनी चेतावनियां के बावजूद तथाकथित किसान आंदोलन के नेतृत्वकर्ता और प्रायोजकों की अक्ल पर पत्थर पड़े हुए हैं, क्योंकि अब पंजाब से एक बार फिर किसानों का रेला इस अराजकतावादी किसान आंदोलन को धार देने की नीयत से दिल्ली की ओर कूच कर चुका है। इस स्थिति को देखते हुए पंजाब के तथाकथित संवेदनशील सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह की नीयत पर भी सवाल उठना लाजिमी है कि कैसे ये लोग कोरोनावायरस के मुश्किल दौर में उनकी सरकार की नाक के नीचे से निकल कर दिल्ली में संक्रमण फैलाने की वजह बन सकते हैं?
सभी को पता है कि तथाकथित किसान आंदोलन पंजाब सरकार द्वारा ही प्रायोजित था। पंजाब की कांग्रेस शासित सरकार इसके जरिए अपने लिए देश भर में नई राजनीतिक संभावनाएं तलाश रही थी, लेकिन खालिस्तानियों और अराजकतावादियों द्वारा ये तथाकथित आंदोलन ही हाईजैक हो गया। वहीं 26 जनवरी की घटना के बाद तो इसकी विश्वसनीयता शून्य हो गई थी। इसके विपरीत कोरोनावायरस की दूसरी लहर के पीछे इस आंदोलन में जमा भीड़ को एक बड़ी वजह माना जा रहा है, लेकिन अभी भी किसान आंदोलन के नाम पर अराजकता फ़ैलाने वाले लोग अपनी हरकतों से बाज नहीं आए हैं।
और पढ़ें- राकेश टिकैत के नकली किसान आंदोलन के कारण Oxygen टैंकर दिल्ली नहीं पहुँच पा रहे हैं
जनसत्ता की एक रिपोर्ट के मुताबिक पंजाब के 1,600 गांवों के किसान दोबारा दिल्ली की ओर कूच कर चुके हैं, जिनकी संख्या करीब 20,000 है। ये सभी भारतीय किसान यूनियन के ही सदस्य बताए जा रहे हैं। दिलचस्प बात ये है कि इस नए जत्थे में महिलाओं की संख्या अधिक होगी। इस मुद्दे पर भाकियू के सुखदेव सिंह क़ोकरीण ने कहा,“इस बार इन किसानों में 60 प्रतिशत महिलाएं होंगी क्योंकि पुरुष खेतों में व्यस्त हैं और इसलिए महिलाओं को कार्यभार संभालना पड़ेगा।”
इस पूरी परिस्थिति को देखते हुए एक बार फिर दिल्ली में अराजकता की संभावनाएं बनने लगी हैं। सुखदेव सिंह ने कहा, “किसान बठिंडा-डबवाली, खनौरी-जींद और सरदूलगढ़-फतेहाबाद सीमाओं से बस, वैन और कुछ ट्रैक्टरों पर टिकरी बॉर्डर पहुंचेंगे।” साफ है कि ये किसान कृषि कानूनों की आड़ में अब अराजकता फ़ैलाने की नई चाल चल रहे हैं, जो कि इनके ही किसान आंदोलन को कमजोर कर रहा है। कोरोनावायरस के इस मुश्किल वक्त में जब लोगों को दवाओं से लेकर आक्सीजन के लिए जूझना पड़ रहा है। ऐसे में अपने हितों के लिए अराजकता फ़ैलाने और भीड़ के जरिए संक्रमण को विस्तार देने की हरकत करना दिखाता है कि किसान आंदोलन के नेता कितने गैर जिम्मेदार हैं।
और पढ़ें- कोरोना के बढ़ते मामलों ने बढ़ाई टिकैत की चिंता, सरकार कभी भी उनके आंदोलन को कुचल सकती है
इस प्रकरण के बाद एक बड़ा सवाल पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के सामने भी खड़ा होता है कि जब कोरोनावायरस के कारण उन्होंने पूरे राज्य में कथित पाबंदियां लगा रखी हैं, जब राज्य में कोरोनावायरस के संक्रमण के रोकथाम के लिए लोगों को भीड़ से बचने के लिए रोका जा रहा है, तो ऐसे वक्त में पंजाब से निकले इस रेले को रोकने के लिए पंजाब सरकार किस तरह के एक्शन ले रही है? इसमें कोई शक नहीं है कि अगर वो एक्शन ले रहे हैं तो वो दिखावटी ही हैं क्योंकि अंदरखाने मोदी सरकार को घेरने के लिए ये आंदोलन भी उनके कांग्रेसी प्रशासन द्वारा ही प्रायोजित है।
ऐसे में ये काफिला यदि पुनः दिल्ली पहुंचता है, तो ये कैप्टन अमरिंदर सिंह की राजनीतिक नीयत पर कुछ गंभीर सवाल खड़े करेगा, क्योंकि इससे साबित होगा कि उन्हें महामारी से बचाव से ज्यादा चिंता अपने राजनीतिक भविष्य को बचाने की है।