क्या कारण है कि जापान के उग्र स्वभाव के बावजूद चीन उसके खिलाफ कोई कदम उठाने की हिम्मत नहीं करता?

जापान-चीन सम्बन्धों का अनूठा विश्लेषण!

जापान पिछले कुछ समय से चीन को उकसाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। जापान न सिर्फ चीन के खिलाफ अपनी रक्षा प्रणाली को मजबूत कर रहा है, बल्कि ASEAN देशों के साथ अपने सम्बन्धों को और प्रगाढ़ कर रहा है। इसके साथ ही ताइवान को लेकर भी जापान फ्रंट-फुट पर खेल रहा है!

अमेरिका-जापान वार्ता में ताइवान मुद्दा उठाना हो या फिर ताइवान की सुरक्षा हेतु अपनी कोस्ट गार्ड की तैनाती करने की प्रतिबद्धता दर्शाना हो, जापान इस मुद्दे पर भी चीन को ललकारने से पीछे नहीं हटा है।
हालांकि, इस सब के बावजूद जापान के खिलाफ चीनी सरकार से लेकर चीनी मीडिया, सब चुप्पी साधे हुए हैं।

अमेरिका, ASEAN देशों के खिलाफ बात-बात पर धमकी जारी करने वाली चीनी सरकार और चीनी मीडिया जापान के खिलाफ एक शब्द नहीं बोल पा रहे हैं। इसके पीछे एक बड़ी भूमिका जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजों आबे की मानी जा सकती है। आबे ने सक्रिय राजनीति से दूरी बेशक बना ली हो, लेकिन उनकी नीतियाँ आज भी चीनी सरकार का पीछा नहीं छोड़ रही हैं।

मौजूदा प्रधानमंत्री योशीहिदे सुगा भी आबे की नीतियों को ही आगे बढ़ा रहे हैं।
Wolf Warrior Diplomacy को आगे बढ़ाना वाला चीन अक्सर दूसरे देशों के ऐसे रवैये के खिलाफ प्रतिबंधों की झड़ी लगाने से पीछे नहीं हटता है। उदाहरण के लिए वर्ष 2016 में अमेरिका द्वारा दक्षिण कोरिया में THAAD डिफेंस सिस्टम की तैनाती को ही ले लीजिये! इसके जवाब में चीन ने दक्षिण कोरिया पर “यात्रा से संबन्धित” प्रतिबंधों समेत कोरियन एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री के खिलाफ कार्रवाई करने का फैसला लिया था।

यहाँ तक कि चीन ने उस समय दक्षिण कोरिया के उत्पादों पर भी एक अनाधिकारिक प्रतिबंध घोषित कर दिया था। दूसरी ओर पिछले वर्ष जब ऑस्ट्रेलिया ने कोरोना की उत्पत्ति की जांच की मांग की थी, तो भी चीन ने उसके खिलाफ एक भीषण आर्थिक युद्ध छेड़ दिया था। जापान के खिलाफ चीन एकदम चुप है।

चीन ने देखा है कि किस प्रकार जापान ने ताइवान मुद्दे पर बयान जारी करने के लिए बाइडन प्रशासन को भी मजबूर कर दिया। उसके बावजूद चीनी सरकार बड़ी सावधानीपूर्वक चुप्पी साधे हुए है। चीन ने इस संदर्भ में एक बयान जारी भी किया, लेकिन उसमें भी जापान का नाम तक अंकित नहीं किया। चीन के एक बयान के अनुसार “दूसरों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर किसी को कुछ हासिल नहीं होने वाला।”

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चीनी मीडिया में जापान को लेकर चुनिन्दा लेख देखने को मिल रहे हैं। Global Times के एक लेख के मुताबिक “हम जापान को ताइवान मामले से दूर रहने की सलाह देते हैं। जितना ज़्यादा जापान यह मुद्दा उठाएगा, उसे उतना बड़ा दाम ही चुकाना पड़ेगा।”

Japan की चीन नीति बेहद उग्र है, उसके बावजूद भी चीन को सिर्फ दाँत पीसकर बैठे रहना पड़ रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि चीन जापान के खिलाफ ज़्यादा कदम नहीं उठा सकता है।

शिंजों आबे ने PM रहते हुए खुलकर चीन के खिलाफ एक से बढ़कर एक कदम उठाए, जिसके खिलाफ चीन कुछ ना कर सका। अब उसका नतीजा यह है कि चीन के खिलाफ आज जापान बिना किसी डर के बड़े से बड़े कदम उठा पा रहा है।

शिंजों आबे ने अपने कार्यकाल में चीन से जापानी कंपनियों को बाहर निकालने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जापान ने अपनी कंपनियों को 2.2 बिलियन डॉलर का आर्थिक पैकेज देकर उन्हें चीन से बाहर खींचने का काम किया था। अब अगर चीन Japan के खिलाफ कोई कदम उठाता भी है तो Japan आसानी से दोबारा वही कदम चलकर चीन को दिन में तारे दिखा सकता है।

जापान-चीन के बीच आर्थिक रिश्ते भी एक बड़ा कारण है कि चीन जापान के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर सकता। जापान का चीन के साथ कोई Trade Surplus नहीं है और यही कारण है कि चीन व्यापारिक मोर्चे पर शांत है। चीन कभी भी जापान पर प्रतिबंध लगाकर अपने ही exports पर कुल्हाड़ी नहीं मारना चाहेगा।

इसके साथ ही चीन को Japan से निवेश की भी ज़रूरत है। जापान Investment के लिए चीन का तीसरा सबसे बड़ा स्रोत है। ये सब कारण है कि जापान के उग्र रुख के बावजूद चीन उसके खिलाफ कोई कदम उठाने की हिम्मत नहीं कर पाता!

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