वैक्सीन डिप्लोमेसी में भारत के हाथों मुंह की खाने के बाद चीन को भारत के दुख में उम्मीद दिखाई देती है

चीन को वापस रणक्षेत्र में उतरने का मिला मौका

जिनपिंग

भारत की सफल वैक्सीन डिप्लोमेसी के हाथों मुंह की खाने के बाद अब आखिरकार चीन को वापस रणक्षेत्र में उतरने का मौका मिल गया है। कोरोना से जूझते भारत के दौरान ही अब चीन ने दक्षिण एशियाई देशों को अपनी वैक्सीन देने का ऑफर दिया है। इसको लेकर मंगलवार को चीनी विदेश मंत्री Wang Yi ने पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, अफ़गानिस्तान और श्रीलंका के विदेश मंत्रियों के साथ एक वर्चुअल बैठक की।

भारत, भूटान और मालदीव ने इस बैठक से दूरी बनाई रखी। स्पष्ट है कि चीन को इस बात का अहसास हो गया है कि अगर भारत को वैक्सीन डिप्लोमेसी में हराकर इन देशों को चीनी वैक्सीन इस्तेमाल करने के लिए मजबूर करना है, तो यही सही समय है।
भारत में 1 मई के बाद 18 वर्ष से लेकर 45 वर्ष तक की आयु के सभी नागरिकों के लिए Vaccination प्रक्रिया शुरू हो रही है।

ऐसे में Vaccines के लिए भारत सरकार अपने नागरिकों को ही प्राथमिकता दे रही है, जिसके कारण आने वाले कुछ महीनों के लिए भारत के Vaccine exports में कमी देखने को मिल सकती है। चीन ने अब इसी बात का फायदा उठाया है और भारत में बढ़ते कोरोना के संकट के बीच उसने दक्षिण एशियाई देशों को घटिया और कम efficacy वाली चीनी वैक्सीन देने का फैसला लिया है।

चीनी विदेश मंत्री ने इस बैठक के दौरान कहा “हम दक्षिण एशिया में वैक्सीन की निर्बाध सप्लाई करने के इच्छुक है। इसके साथ ही हम दक्षिण एशियाई देशों को राहत सामाग्री प्रदान करने के लिए एक Emergency Reserve स्थापित करना चाहते हैं।”

चीन ने इस मौके पर यह भी ऐलान किया है कि वह क्षेत्र में गरीबी को खत्म करने के लिए इन देशों के साथ मिलकर “poverty reduction development cooperation centre” की स्थापना करेगा जहां वह अपने अनुभवों को साझा करने पर ज़ोर देगा।
स्पष्ट है कि यहाँ चीन भारत के कष्ट का फायदा उठाकर अपनी वैक्सीन डिप्लोमेसी को आगे बढ़ाना चाहता है।

भारत अपने सफल वैक्सीन मैत्री अभियान के तहत करीब 6 करोड़ 63 लाख वैक्सीन export कर चुका है, जिसके तहत पाकिस्तान को छोड़कर भारत ने अपने सभी दक्षिण एशियाई पड़ोसियों को वैक्सीन प्रदान की है। दूसरी ओर कम Efficacy होने के कारण चीनी वैक्सीन को ज़्यादा खरीददार नहीं मिल पाये हैं। पिछले दिनों चीनी experts ने यह खुद स्वीकार किया था कि चीन की वैक्सीन ज़्यादा असरदार नहीं है।

शायद यही कारण है कि अब चीन को अपनी वैक्सीन बेचने के लिए भारत में आई विपत्ति का सहारा लेना पड़ रहा है।

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