इन दिनों पवनपुत्र हनुमान काफी सुर्खियों में हैं। इसका कारण हैं दो राज्यों – कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में उनके जन्मस्थल को लेकर छिड़ी बहस। अब ये लोगों को चाहे कितनी भी अटपटी लगे, लेकिन भारत के लिए ये किसी शुभ समाचार से कम नहीं है। जब बात हनुमानजी के जन्मस्थली से शुरू हुई है, तो अब देश के अन्य भव्य स्थलों की वास्तविकता पर भी चर्चा शुरू होगी।
दरअसल, रामायण के सबसे अनोखे पात्रों में से एक हनुमान जी को मूलत: दक्षिण भारत का निवासी बताया जाता है। वे वानर राज केसरी और शापित अप्सरा अंजनी के घर पर जन्में थे। अब तक यही माना जाता रहा है कि उत्तरी कर्नाटक में स्थित हम्पी के निकट किष्किन्धा क्षेत्र के अनजेयनाद्रि पर्वत पर पवनपुत्र हनुमान जी का जन्म हुआ था।
लेकिन आंध्र प्रदेश के प्रशासन ने यह दावा किया है कि तिरुपति पर्वतों की श्रृंखला के तीसरे पर्वत अंजनाद्रि पर्वत पर हनुमान जी का जन्म हुआ था। बता दें कि तिरुपति पर्वत श्रृंखला वही स्थान है जहां पवित्र तिरुपति बालाजी का तीर्थस्थल स्थित है।
इसके पीछे आंध्र प्रदेश प्रशासन का क्या तर्क है?
तिरुपति तिरुमला देवस्थानम के कार्यकारी ऑफिसर के एस जवाहर रेड्डी के अनुसार, “दिसंबर में हमने एक पैनल स्थापित की थी, जिसमें वैदिक विद्वान, पुरातत्व विशेषज्ञ एवं इसरो वैज्ञानिक भी शामिल थे, जो कि 21 अप्रैल को अपने विश्लेषण के अनुसार हनुमानजी के वास्तविक जन्मस्थान से संबंधित अपनी रिपोर्ट पेश करेंगे।”
इस कमेटी में राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर मुरलीधर शर्मा, एसवी वैदिक विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सन्निधानम शर्मा, इसरो वैज्ञानिक रेमेल्ला मूर्ति, राजकीय पुरातत्व विभाग के उप निदेशक विजयकुमार, प्रोफेसर रनिसदाशिव मुरथी, जे रामकृष्ण, शंकरनारायन इत्यादि शामिल हैं।के एस जवाहर रेड्डी का कहना है कि ‘हमारे पास पर्याप्त ज्योतिषी एवं वैज्ञानिक प्रमाण हैं, जो हमारे दावों को सिद्ध कर सकता है।‘
के एस जवाहर रेड्डी के अनुसार, “यह पैनल सभी साक्ष्यों और संबंधित जानकारी को एक पुस्तक के रूप में सामने लाकर तिरुपति तिरुमाला देवस्थानम बोर्ड को सबमिट करेगा। इसके लिए हमने शिवा, ब्रह्म, ब्रह्मांड, वराह एवं मत्स्य पुराण के साथ-साथ वेंकटचाल महात्यम एवं वराहमिहिर के बृहदसंहिता से जानकारी जुटाई है।”
वहीं कर्नाटक प्रशासन ने इन दावों पर आपत्ति जताते हुए कहा कि, “वे हनुमानजी के मूल जन्मस्थान को एक पर्यटक डेस्टिनेशन की भांति विकसित करेंगे, जहां पर सभी लोग आ जा सके।“ इसके अलावा कर्नाटक के गोकर्ण क्षेत्र से भी हनुमानजी के जन्मस्थान के दावे सामने आ रहे हैं।
अब इन सबका क्या तात्पर्य है? यह वाद-विवाद असल में भारतीय संस्कृति और हमारे देवी देवताओं की उत्पत्ति से संबंधित विषयों के लिए बेहद शुभ समाचार है। जो प्रशासन और सरकारें कभी श्रीराम के अस्तित्व तक को स्वीकारने से मना करती थी, वही अचानक से अब हनुमानजी के जन्मस्थान को लेकर एक दूसरे से भिड़ने को तैयार हैं।
इसके पीछे कहीं न कहीं 2019 के उस अभूतपूर्व निर्णय का भी कमाल है, जहां भक्तों के अथाह संघर्ष के पश्चात सुप्रीम कोर्ट ने उनकी आस्था का सम्मान करते हुए श्रीराम जन्मभूमि परिसर को उनके भक्तों को वापिस सौंप दिया था।