आजकल पत्रकार पत्रकारिता के नाम पर अपने निजी एजेंडे को चला रहे हैं। जैसे की जनता को सरकार के खिलाफ भड़काना या जनता को सरकार के क़ानूनों को लेकर गुमराह करना। उदाहरण के लिए आप हरियाणा के पत्रकार राजेश कुंडू को ही देख लीजिये। कुंडू किसान आंदोलन में पत्रकारिता करने के बहाने किसानों के मन में सरकार के प्रति नफरत फैला रहा था। हद तो तब हो गई जब कुंडू ने अपने फ़ेसबुक प्रोफ़ाइल और व्हाट्सप्प पर एक पोस्ट साझा की जिसमें वो सांप्रदायिक वैमनस्य फैला रहा था। कुंडू की इस हरकत के बाद हिसार पुलिस ने उसके खिलाफ FIR दर्ज की है।
बता दें कि, हिसार पुलिस ने साइबर आतंकवाद और सांप्रदायिक वैमनस्य फैलाने के जुर्म में FIR दर्ज किया है। FIR में धारा 153A (सांप्रदायिक वैमनस्य को बढ़ावा देना) और IPC की 2000 धारा (F और साइबर आतंकवाद) की धारा 66 F (साइबर आतंकवाद) के लिए 153 B (प्रतिरूपण, राष्ट्रीय एकीकरण के पूर्वाग्रहपूर्ण दावे) का ज़िक्र किया गया है।
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राजेश कुंडू के ऊपर FIR विक्रम नामक पुलिस अधिकारी ने की है। विक्रम ने FIR में एक पोस्ट का उल्लेख किया है जिसमें कुंडू कथित रूप से कहते हैं कि “हिसार में जाति-संबंधी हिंसा के लिए एक स्क्रिप्ट तैयार की गई है”। विक्रम ने आगे कहा है कि, कुंडू का पोस्ट राष्ट्र की अखंडता के ऊपर बुरा प्रभाव डाल सकता है और साथ ही में “आम लोगों को उकसाने” का काम करेगा।
इस मामले के जवाब में राजेश कुंडू ने अपना बयान जारी कर कहा कि, “मैंने सूत्रों के माध्यम से प्राप्त जानकारी के आधार पर 14 अप्रैल को बी आर अंबेडकर जयंती के अवसर पर हिंसा की आशंका की बात कही थी। मैने इसके संबंध में एक पोस्ट साझा करके एक जिम्मेदार नागरिक और पत्रकार का अपना कर्तव्य निभाया है। ”
राजेश कुंडू के पक्ष में कथिक वामपंथी पत्रकार सामने आ गए है और उनके साथ- साथ विपक्ष भी हरियाणा सरकार और हिसार पुलिस के खिलाफ आवाज़ उठाने लगी हैं। कांग्रेस के नेता रनदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा है कि, “जब सरकार चल रहे किसान आंदोलन को नहीं तोड़ पाई, तो उसने किसानों की आवाज बन चुके पत्रकार राजेश कुंडू के खिलाफ FIR दर्ज कराई। न तो इस आवाज को दबाया जा सकता है और न ही किसान आंदोलन को।”
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राजेश कुंडू को कथित किसान आंदोलन की आवाज़ माना जाता है। बता दें कि, कुंडू किसानों के मन में बिना किसी आधार या ठोस सबूत के जातिगत दंगे की खबर फैला रहे थे। जब कथित पत्रकारों और वामपंथियो को समझ आ गया कि किसान आंदोलन अब फीका पड़ रहा है और उनके एजेंडे अब नहीं चलने वाले है, तो कुंडू ने बुझती आग में दोबारा घी डालने का काम किया है।