भारत को मनाकर अपनी Apps चालू करवाना चाहता था चीन? भारत ने चीन के मदद के प्रस्ताव को ठुकरा दिया

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कितना अजीब है कि जिस चीन ने कोरोनावायरस जैसी महामारी को पैदा कर पूरे विश्व में हाहाकार मचाया, अब वही चीन भारत और दक्षिण एशिया के देशों के साथ मिलकर कोरोना के रोकथाम के लिए साथ मिलकर काम करने की बात कर रहा है। चीनी विदेश मंत्री ने इस संबंध में हाल ही में एक वर्चुअल बैठक भी की, लेकिन इस बैठक को भारत की मोदी सरकार द्वारा सिरे से नजरंदाज कर दिया गया है, क्योंकि भारत जानता है कि चीन के प्रत्येक कदम के पीछे उसकी महत्वकांक्षाएं छिपी होती है। इसलिए भारत चीन को किसी भी कीमत पर सौदा करने की अवस्था में नहीं लाना चाहता है, जिसके चलते भारत ने चीन के इस प्रस्ताव से दूर रहने का ही मन बना लिया है।

दरअसल, चीन अब कोरोनावायरस के रोकथाम के लिए वैक्सिनेशन के जरिए दक्षिण एशिया में पुनः अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिशें कर रहा है। इसी सिलसिले में चीनी विदेश‌ मंत्री वांग यी ने एक वर्चुअल मीटिंग आयोजित की, जिसमें उन्होंने दक्षिण एशिया के अन्य राष्ट्रों के अपने समकक्षों से वार्ता की। इस वर्चुअल बैठक का मुख्य उद्देश्य कोरोना की रोकथाम और वैक्सिनेशन के काम को युद्ध स्तर पर सहज ढंग से करने का था। इस बैठक में अफगानिस्तान, नेपाल, पाकिस्तान,  बांग्लादेश श्रीलंका के विदेश मंत्री भी शामिल थे। दिलचस्प बात ये है कि भारत ने न्योते के बावजूद इस बैठक से खुद को किनारे कर चीन को झटका दे दिया है।

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चीन ने दक्षिण एशिया के देशों की बैठक बुलाई और उसमें भारत की अनुपस्थिति को लेकर जब सवाल खड़े हुए तो विदेश मंत्री वांग यी ने कहा, “चीन के समावेशी और मैत्रीपूर्ण भाव के कारण भारत के लिए इस बैठक के दरवाजे हमेशा ही खुले हैं। भारत जब आना चाहे आ सकता है, हम उसका और अन्य सभी देशों का स्वागत करेंगे।” उनका कहना है कि “चीन अन्य देशों में वैक्सीन के गोदाम बनाकर वैक्सिनेशन के काम में सभी की मदद करने का इच्छुक है। साथ ही आर्थिक स्थितियों में सुधार और गरीबी के खात्मे को लेकर भी चीन ने अपनी नीतियां स्पष्ट की है।“ भारत में कोरोनावायरस की दूसरी लहर को लेकर वांग यी ने दुख प्रकट करते हुए कहा कि “चीन भारत की सभी तरह की मदद करने को तैयार है और चिकित्सा क्षेत्र से संबंधित प्रत्येक मदद के लिए चीन भारत के साथ खड़ा है।“

चीन के इस बदले रुख को लेकर कोई भी कह सकता है कि चीन भारत की मदद को तैयार है। ऐसे में भारत को चीन के साथ आकर इस बीमारी से लड़ना चाहिए। इससे इतर भारत चीन की चालाकियों को बेहद अच्छी तरह समझता है। चीन कभी भी किसी देश की मदद निस्वार्थ भाव से नहीं करता है, क्योंकि उसकी मदद के पीछे उसकी विस्तारवादी महत्वकांक्षाएं छिपी हुई होती हैं। चीन ने पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल समेत मालदीव और म्यांमार जैसे देशों को पहले ही मदद के नाम पर कर्ज दिया और फिर उन्हें कर्ज तले दबाकर उनकी जमीनों पर कब्जा जमा लिया।

भारतीय सेना की लंबे समय से चीनी पीएलए के साथ लद्दाख में गतिरोध की स्थिति बनी हुई है। चीन चाहकर भी भारत की इंच भर की जमीन पर कब्जा नहीं कर पाया है, जिसके चलते अब वो नई चाल चलने की कोशिश में है। चीन कोरोनावायरस से मदद करने की मंशा से भारत को मैत्री का प्रस्ताव तो दे रहा है, लेकिन वो भारत वैक्सिनेशन या जरूरी मेडिकल उपकरणों की आपूर्ति के दौरान सौदेबाजी भी कर सकता है।  चीन भारत से मदद के बदले चीनी एप्प्स पर लगे बैन हटाने की मांग कर सकता है, भारतीय बाजार में चीनी कंपनियों के निवेश को और बढ़ाने की मांग कर सकता है। यही कारण है कि चीन की बातों पर भारत विश्वास नहीं करना चाहता है।

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चीन महामारी के बीच इस बुरे वक्त में भारत के साथ खड़ा होकर स्वास्थ्य सुविधाओं के प्रसार और बढ़ोतरी की बातें कर रहा है। साथ ही वैक्सिनेशन के लिए अलग-अलग देशों में प्लांट और वेयरहाउस बनाने पर जोर दे रहा है, लेकिन उसकी मंशाएं हमेशा की तरह ही धोखा देने की हैं। इसका हालिया उदाहरण हम सभी ने देखा भी है जहां एक तरफ कोरोना की दूसरी लहर में भारत की मदद करने की बात कर चीन पड़ोसी धर्म निभाने का दिखावा कर रहा था तो वहीं, दूसरी ओर उसने चीन की सरकारी कंपनी के कार्गो की फ्लाइट्स भारत के लिए रद्द कर दी, जिसका नतीजा ये हुआ कि चीन से आने वाले ऑक्सीजन कंसंट्रेटर की आपूर्ति ठप हो गई। जबकि भारत को अभी ऑक्सीजन संबंधित सभी उपकरणों की विशेष आवश्यकता है।

चीन भले ही कोरोनावायरस के वक्त में भारत की मदद करने के साथ ही साझा सहयोग की बात कर रहा है, लेकिन उसकी नीयत में बहुत ज्यादा झोल‌ हैं, जिसके करण ही भारत ने चीन के कोरोना से साथ लड़ने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है, और चीन की मंसूबों को झटका दे दिया है।

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