भारत और चीन के बीच चल रहा स्टैंड ऑफ अभी तक जारी है और किसी भी समाधान का निकलना मुश्किल लग रहा है। कई स्तर पर 10 से अधिक दौर की बातचीत हो चुकी है, पर अब भी स्थिति जस की तस दिखाई दे रही है। न तो चीन पीछे होना चाह रहा है और न भारत, आखिर ऐसा क्या कारण है जिससे यह मामला अभी भी फंसा हुआ है? यह मामला है Depsang Plain का।
यह वही क्षेत्र है जहाँ चीन ने 2013 में मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान घुसपैठ कर कब्ज़ा कर लिया था। अब मोदी सरकार ने बेहद ही चालाकी से गलवान घाटी की घटना और Pangong Tso में स्टैंड ऑफ के बाद हो रही बातचीत में चीन ने इस क्षेत्र को भी बातचीत के लिए टेबल पर रख दिया था। चीन ने तब से इस क्षेत्र पर कब्ज़ा किया हुआ है।
शायद यही कारण है कि दोनों देश अब भी बातचीत कर रहे हैं लेकिन कोई समाधान नहीं निकल रहा है। चीन यह सोच रहा था कि आक्रामकता दिखा कर भारत की और जमीन हथिया लेगा परन्तु भारत ने चीन को पूर्वी लद्दाख में ऐसा फंसाया कि अब उसे 2013 के दौरान कब्ज़ा किये गए क्षेत्र पर बातचीत करनी पड़ रही है।
दरअसल द संडे एक्सप्रेस ने 9 अप्रैल को रिपोर्ट किया कि कोर कमांडर-स्तर पर अंतिम दौर की वार्ता के दौरान, चीन ने हॉट स्प्रिंग्स और गोगरा पोस्ट से अपने सैनिकों को वापस खींचने से इनकार कर दिया, जो कि Depsang Plains के साथ, दोनों देशों के बीच विवाद का कारण बने हुए हैं।
जब विवाद शुरू हुआ था तो यह गलवान घाटी और Pangong Tso क्षेत्र तक ही सिमित था। हालाँकि दोनों तरफ से कई क्षेत्र जैसे हॉट स्प्रिंग्स और गोगरा पोस्ट पर सैनिक जमा हो रहे थे। जब दोनों देशों के बीच विवाद को समाप्त करने के लिए सैनिकों के पीछे हटने के लिए बातचीत का दौर शुरू हुआ तब भारत ने बेहद ही चालाकी से इस बातचीत में Depsang Plain को भी शामिल कर किया जिस पर चीन ने 2013 के दौरान कांग्रेस के शासन में कब्ज़ा जमाया था।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में सेना के एक सूत्र के हवाले से लिखा गया है कि “इस पूरे विवाद के दौरान डेपसांग में कुछ नहीं हुआ।डेपसांग में, चीनी कई पेट्रोलिंग पॉइंट पर हमारे पेट्रोल पार्टी को रोकते रहे हैं। चीनी सैनिक हर दिन अपनी गाडी में आते हैं, और बस उस मार्ग को अवरुद्ध करते हैं।”
तब भारत ने चीन से अपने सैनिकों को वापस खींचने और पूर्वी लद्दाख के रणनीतिक रूप से स्थित डेपसांग-दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) क्षेत्र में आगे की निर्माण गतिविधियों को रोकने के लिए कहा था।बता दें कि चीन ने 2013 में, LAC के भारतीय हिस्से में 19 किमी तक कब्ज़ा कर लिया था और रोड तथा अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर बनाना शुरू कर दिया था। तब से वह क्षेत्र चीन के कब्जे में ही है।
सूत्र ने बताया कि, “विवाद के दौरान बातचीत में डेपसांग को जानबुझ कर जोड़ा गया है ताकि यह हल हो जाए।अप्रैल 2020 तक, Depsang में यथास्थिति नहीं बदली है। यह एक पुराना मुद्दा है, लेकिन हमने इसे जोड़ा है। शुरू में इस पर चर्चा भी नहीं हो रही थी। चौथे-पांचवें दौर की बातचीत के बारे में, हमने सोचा कि इसे हल कर दिया जाए। हमें लगा कि डेपसांग अगला फ्लैशपॉइंट हो सकता है।यही हमारा आंकलन था।“
इस बार भारत ने गलवान घाटी के बाद चीन को ऐसा फंसाया की अब उसके पास इस क्षेत्र को खाली करने के अलावा और कोई चारा नहीं है। आज नहीं तो कल अब चीन को इस क्षेत्र से जाना ही होगा। एक तरह से देखा जाये तो Depsang Plain को भी बातचीत में शामिल कर भारत ने चीन को चेकमेट कर दिया है।
भारत के सुरक्षा की दृष्टि से Depsang Plain एक बेहद ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यही कारण है कांग्रेस के शासनकाल में खोए इस क्षेत्र को अब चीन से वापस लेने की कवायद शुरू हो चुकी है।