प्रत्येक व्यक्ति का सपना होता है, कि उसका छोटा ही सही पर अपना एक आशियाना हो, लेकिन ग्रेटर नोएडा में लोगों के सपने टूटते नजर आ रहे हैं। दरअसल ग्रेटर नोएडा में इस सपने को हकीकत बनाने का दावा करने वाले बिल्डरों ने असल में उपभोक्ताओं के साथ धोखा किया, क्योंकि अनेक बिल्डरों द्वारा बनाये जाने के लिए प्रस्तावित घर अभी तक पूर्णतः तैयार नहीं हुए हैं।
साथ ही बिल्डर उपभोक्ताओं का पैसा भी देने में आना-कानी कर रहे हैं, जिसके चलते लोगों के सपने टूट गए हैं। इस मामले को लेकर पार्श्वनाथ बिल्डर्स के डायरेक्टर को तीन साल की सजा हुई है, जो एक सहज शुरुआत है। सबसे आवश्यक यह है कि जिन लोगों को पैसे देने के बावजूद घर नहीं मिले, उन्हें उनका पैसा हर्जाने के साथ वापस मिले।
द प्रिंट की रिपोर्ट के मुताबिक ग्रेटर नोएडा इंडस्ट्रियल डेवेलपमेंट अथॉरिटी के मुताबिक आज की स्थिति में 115 डिफाल्टर कंपनियां हैं, जिन पर 6,000 करोड़ का बकाया है। ग्रेटर नोएडा में बसने की इच्छा रखने वालों ने साल 2007 में इन बिल्डरों को पैसा दिया था और सपना देखा था कि जब तीन साल बाद बिल्डिंग बनकर खड़ी होगी तो उसमें एक आशियाना उनका भी होगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। आज की स्थिति ये है कि सभी प्रस्तावित बिल्डिंगों में से केवल तीन इमारतें ही खड़ी हो सकीं हैं। वादा 958 फ्लैट का था, जो कि 2007 के बाद अभी तक केवल 126 फ्लैट तक ही पहुंचा है।
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ऐसे में अदालतों और एनसीडीआरसी में चले केस में लोगों को राहत मिली और आदेश दिया गया कि सभी उपभोक्ताओं को 12 प्रतिशत की ब्याज दर से कंपनी द्वारा भुगतान किया जाएगा, लेकिन कंपनियां इस मामले में सुप्रीम कोर्ट तक गईं। हालांकि उन्हें वहां से भी कोई राहत नहीं मिली। ऐसे में रिफंड के पैसों को न देने और नियमों का पालन न करने के मामले पार्श्वनाथ बिल्डर्स के डायरेक्टर को तीन साल की सजा हुई है। ये उन लोगों के लिए एक राहत भरी बात है, जो अपने पैसों के लिए परेशान थे।
वहीं बात अगर पार्श्वनाथ बिल्डर्स की करें तो दिल्ली एनसीआर के लोगों को इस कंपनी द्वारा अनेक सपने दिखाए गए, लेकिन सब खोखले ही निकले हैं। ग्रेटर नोएडा इंडस्ट्रियल डेवेलपमेंट अथॉरिटी का इन सभी कंपनियों का कुल 6000 करोड़ रुपए बकाया है, जिसमें सबसे ज्यादा बकाया आम्रपाली ग्रुप का है। इसमें आम्रपाली ग्रुप का करीब 2,700 करोड़, यूनीटेक का 420 करोड़, पार्श्वनाथ 113 करोड़ और पंचशील समेत सुपरटेक जैसी कंपनियों के नाम शामिल हैं।
ऐसे में पार्श्वनाथ के डायरेक्टर को सजा अन्य डिफाल्टर कंपनियों के लिए उदाहरण बन सकती है, क्योंकि ग्रेटर नोएडा में ऐसी 115 डिफाल्टर कंपनियां हैं। इस मामले में एनसीडीआरसी के समक्ष उपभोक्ताओं का पक्ष रख रहे सुखम अहलूवालिया का कहना है कि उपभोक्ता के हितों की रक्षा करते हुए पहली बार किसी रियल स्टेट कंपनी के डायरेक्टर के खिलाफ कार्रवाई हुई है। काउंसलर ने कहा कि एनसीडीआरसी इस मामले को सौहार्दपूर्ण ढंग से निपटाने के लिए काम कर रही थी, लेकिन कंपनी द्वारा किसी भी शर्त से सहमत होने से इनकार करने पर आयोग ने अपना सख्त आदेश जारी करने के लिए बाध्य हो गया।
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वहीं दूसरी ओर पार्श्वनाथ के वकील मनोरंजन शर्मा अब तीन महीने की मियाद पूरी न होने का हवाला दे रहे हैं। उनका कहना है कि समय सीमा पर कंपनी उपभोक्ताओं को पूरी रकम वापस कर देगी। इस पूरे प्रकरण को देखने पर पता चलता है कि एनसीडीआरसी की सख्ती के बाद से पार्श्वनाथ बिल्डर्स के हाथ पांव फूल गए हैं, जो कि उपभोक्ताओं के लिए राहत भरी खबर है, लेकिन यह केवल शुरुआत है।
ग्रेटर ऩोएडा में ऐसी कई कंपनियां हैं, जो कि उपभोक्ताओं का पैसा दबाकर बैठी हैं, न तो लोगों को घर मिले हैं, न ही रिफंड की प्रकिया के तहत अपने पैसे। ऐसे में पार्श्वनाथ के खिलाफ कार्रवाई से हुई शुरुआत दिखाती है कि अन्य कंपनियों के दिन भी जल्द ही बुरे आ सकते हैं।