इन दिनों पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान नियाज़ी की हालत ऐसी हो चुकी है, कि वे न घर के रहे और न ही घाट के। भारत के लिए उनकी कोई पूछ नहीं है, अमेरिका चाहकर भी उसकी विशेष सहायता नहीं कर सकता और अब अरब देशों के दबाव में पाकिस्तान को भारत के सामने घुटने टेकने पर विवश होना पड़ रहा है।
हाल ही में पाकिस्तान ने सभी को चौंकाते हुए भारत से इंपोर्ट्स पर लगे प्रतिबंध को हटाने का निर्णय लिया। इसके अंतर्गत अभी हाल ही में पाकिस्तानी प्रशासन ने चीनी और कपास के इम्पोर्ट को बहाल करने की स्वीकृति भी दी। पाकिस्तान ने आधिकारिक तौर पर इसके पीछे दो कारण दिए है – एक तो भारत दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले सस्ते दर पर शक्कर और कपास उपलब्ध करा रहा है, और दूसरा यह कि इन दोनों वस्तुओं के दाम पाकिस्तान में काफी बढ़ चुके हैं।
लेकिन बात यहीं पर खत्म नहीं होती। पाकिस्तान के इस बदले स्वभाव के पीछे अरब देशों का भी हाथ है, जिनमें से कुछ ने तो पाकिस्तान पर अपना बकाया चुकाने का भी दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया है। अब्राहम अकॉर्ड के बाद से पाकिस्तान के कद में जो गिरावट आई है, वो भी इसी कारण से हुई है। आईएमएफ़ से भी पाकिस्तान को कड़ी शर्तों पर ही 500 मिलियन डॉलर की आर्थिक सहायता मिली है।
हालांकि यह सेवा केवल निजी व्यापारियों को ही मिलेगी, परंतु पाकिस्तान ने इस दिशा में अहम कदम बढ़ा लिए हैं। इसके अलावा पाकिस्तान ने अभी हाल ही में युद्धविराम की घोषणा की थी, और बतौर प्रधानमंत्री इमरान खान भी अपने भारतीय समकक्ष नरेंद्र मोदी से बातचीत को बेहद इच्छुक है। अब आप भी सोच रहे होंगे – आखिर सूरज किस दिशा से उगा है।
लेकिन ये पाकिस्तान की कोई दरियादिली या प्रायश्चित नहीं, उनकी मजबूरी है जिनके कारण उन्हे इस प्रतिबंध को हटाना पड़ा। पहले पुलवामा में हुए आतंकी हमले के जवाब में पाकिस्तान में स्थित आतंकी ठिकानों पर आतंकी हमले और फिर अनुच्छेद 370 के विशेषाधिकार वाले प्रावधानों के निरस्त होने पर पाकिस्तान ने भारत से सभी व्यापारिक नाते तोड़ दिए।
लेकिन कुछ ही समय में पाकिस्तान को समझ में आ गया कि उन्होंने इस प्रकार से अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारी है। जिस प्रकार से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था रही है, उस प्रकार से भारत से व्यापार संबंध तोड़ना पल्ले दर्जे की बेवकूफी सिद्ध हुई। इसके कारण न केवल पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था की बधिया बैठ गई, अपितु लोगों को खाने के लाले पड़े हुए हैं।
अब देखना यह होगा कि क्या पाकिस्तान का बदलाव स्थायी है या क्षणिक। पाकिस्तान पर भरोसा करना मतलब अपने विनाश को निमंत्रण देने समान है। इसके अलावा इमरान खान ने बातचीत बहाल करने से पहले कश्मीर पर चर्चा करने को जोर दिया है, जिससे यही संकेत जाता है कि पाकिस्तान के वर्तमान निर्णय छलावा भी हो सकते हैं। यदि पाकिस्तान वाकई में ये सिद्ध करना चाहता है कि उसे भारत के साथ मधुर संबंध चाहिए, तो उसे ये भी सुनिश्चित करना होगा कि बातचीत की मेज पर आतंकवाद का साया न हो। यदि ऐसा हुआ, तो इमरान खान का सारा किया कराया पानी में मिल जाएगा।