महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी सरकार की सचिन वाझे केस को लेकर काफी भद्द पिट चुकी है। इस पूरे केस में गृहमंत्री अनिल देशमुख का इस्तीफा और उनके खिलाफ शुरु हुई सीबीआई जांच को लेकर उद्धव सरकार पर भी सवाल उठने लगे हैं, लेकिन इस केस में शिवसेना को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है क्योंकि शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के गठबंधन की सरकार का नेतृत्व कर रही है। जबकि शरद पवार अभी तक सबसे ज्यादा फायदे में हैं। भले ही उन्होंने अपने एक सिपहसलार अनिल देशमुख को वाझे से जुड़े केस में खो दिया है लेकिन उनके एक अन्य वफादार दिलीप वलसे पाटिल को महाराष्ट्र के गृहमंत्री की कुर्सी पर बैठाकर पवार ने एक नया मास्टर स्ट्रोक चला है।
परमवीर सिंह द्वारा दायर याचिका में अनिल देशमुख पर 100 करोड़ प्रतिमाह की वसूली के केस में हाईकोर्ट ने सीबीआई जांच की मांग की इजाज़त देने के बाद अनिल देशमुख को इस्तीफा देना पड़ा है। इस्तीफे से पहले जब अनिल देशमुख पर आरोप लगे थे तो संजय राउत ने शिवसेना के मुखपत्र सामना ने अपने लेख में अनिल देशमुख की बुरी फजीहत कर दी थी। उन्होंने यहां तक कहा था कि गृहमंत्री अनिल देशमुख की जानकारी के बिना किसी भी तरह का अपराध हो ही नहीं सकता, जिसके बाद अजित पवार द्वारा दिया गया बयान दर्शा रहा था कि दोनों पार्टियों के बीच कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है।
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इस मुद्दे के बाद परमवीर सिंह की याचिका पर हाईकोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश देकर अनिल देशमुख को इस्तीफे के लिए मजबूर कर दिया, ये इस्तीफा हुआ भी, लेकिन अब एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने एक बार फिर अपने दाएं हाथ माने जाने वाले दिलीप वलसे पाटिल को अपने कोटे से महाराष्ट्र का गृहमंत्री बनाने की तैयारी कर ली है। पाटिल शरद पवार के सबसे खास लोगों में से एक माने जाते हैं जो कि एनसीपी के संस्थापक नेताओं की सूची में शामिल हैं। पाटिल कांग्रेस नेता रहे दत्तात्रेय वलसे पाटिल होने के चलते शरद पवार के सबसे विश्वसनीय हैं।
शरद पवार के खास अनिल देशमुख के इस्तीफे के बाद राज्य में शरद पवार की काफी फजीहत हुई है, क्योंकि जैसे ही हाईकोर्ट का फैसला आया, तुरंत ही पवार के घर बैठक कर एनसीपी द्वारा अनिल देशमुख का इस्तीफा ले लिया गया। देशमुख की जगह शिवसेना ने अपने एक और वफादार दिलीप वलसे पाटिल को गृह मंत्रालय सौंप दिया है। वहीं, इस मामले में शिवसेना की फजीहत पहले से ज्यादा हो रही है।
शिवसेना प्रमुख और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे इस मुद्दे पर इस्तीफा नहीं ले सके, लेकिन शरद पवार ने खुद ही काम किया, जिसके चलते शरद पवार की नीति केवल अपनी और पार्टी की छवि सुधारने की थी, और वो देशमुख के जाने के बावजूद अपने मकसद मे कामयाब हो गए हैं।
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इस पूरे घटना क्रम के आधार पर ये कहा जा सकता है कि सचिन वाझे के केस में अनिल देशमुख के इस्तीफे के बाद खोने को कुछ भी नहीं था, लेकिन अब देशमुख की जगह पाटिल को गृहमंत्री की कुर्सी पर बैठाकर शरद पवार ने अपनी स्थिति फिर से मजबूत कर ली है, जबकि शिवसेना समेत उद्धव ठाकरे के लिए ये केस उनकी छवि को खराब करने का पर्याय बन गया है जो कि उद्धव को भविष्य में बहुत भारी पड़ेगा।