खालिस्तानी और नक्सली कम हुए हैं पर खत्म नहीं, इन्हें जड़ से उखाड़ना बाकी है

केंद्र सरकार को सख्त एक्शन लेने की आवश्यकता है!

बीते कुछ महीनों में नक्सलियों और खालिस्तानियों को लेकर यह धारणा बन चुकी थी कि अब इनके समूल नाश में ज्यादा समय नहीं है। लेकिन वर्तमान घटनाओं को देखते हुए ऐसा लगता है कि अभी खेल खत्म नहीं हुआ है। हाल ही में सुकमा और बीजापुर में नक्सलियों द्वारा किये गये हमले में 22 से ज्यादा सुरक्षाकर्मियों को अपने प्राण गँवाने पड़े। वहीं पंजाब से लेकर उत्तर भारत के कई क्षेत्रों में खालिस्तानियों ने फिर से सिर उठाना शुरू कर दिया है।

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बीजापुर और सुकमा जिले की सीमा पर नक्सलियों के साथ मुठभेड़ के बाद आज यानी रविवार को 17 और शव बरामद हुए हैं। शनिवार को सुरक्षाकर्मियों का एक दस्ता आराम कर रहा था। इसी दौरान घात लगाकर बैठे नक्सलियों ने सुरक्षाकर्मियों पर हमला दिया। इस दौरान दोनों ओर से जबरदस्त गोलाबारी हुई, जिसमें रॉकेट लॉन्चर भी प्रयोग किये गये।

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हिंदुस्तान समाचार की रिपोर्ट के अनुसार, बस्तर इलाके में शनिवार दोपहर लगभग 12 बजे जोनागुड़ा गांव के पास नक्सलियों की पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (पीएलजीए) बटालियन और तर्रेम के सुरक्षा बलों के बीच मुठभेड़ हुई थी। यह मुठभेड़ तीन घंटे से अधिक समय तक चली।

पुलिस अधिकारी ने बताया था कि मुठभेड़ में कोबरा बटालियन का एक जवान, बस्तरिया बटालियन के दो जवान और डीआरजी के दो जवान (कुल पांच जवान) शहीद हो गए। इस दौरान 30 जवान घायल हुए हैं। घायल जवानों में से सात जवानों को रायपुर के अस्पताल में और 23 जवानों को बीजापुर के अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

जी न्यूज रिपोर्ट के अनुसार, इस मुठभेड़ में नक्सलियों को भारी नुकसान हुआ है। मुठभेड़ के दौरान जवाबी कार्रवाई में सेना के जवानों ने 15 नक्सलियों को भी मार गिराया है, जबकि 20 नक्सली घायल हुए हैं। वहीं बीजापुर में सेना का सर्च ऑपरेशन लगातार जारी है।

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इस बीच केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह अपना असम दौरा बीच में छोड़ कर दिल्ली लौट रहे हैं। जानकारी के मुताबिक, केंद्रीय मंत्री छत्तीसगढ़ की स्थिति का जायजा लेने के लिए आज बैठक करेंगे। इस बैठक के लिए वह असम में अपना चुनावी दौरा बीच में छोड़कर दिल्ली वापस आ रहे हैं।

वहीं दूसरी तरफ खालिस्तानी भी फिर से अपना सिर उठाने लगे हैं। जहां एक तरफ पंजाब में पुलिसकर्मियों पर कुछ सरदार हमलावर हो गए, तो वहीं महाराष्ट्र के नांदेड़ में होला मोहल्ला के लिए जुलूस नहीं निकालने देने पर नाराज सरदारों ने तलवार सहित प्रशासन पर धावा बोल दिया।

इसके अलावा हाल में ही हिमाचल प्रदेश में एक निहंग सिख ने बाइक सवार से लिफ्ट मांगी। जब बाइक सवार ने अलग रास्ता होने के कारण अपनी असमर्थता जताई, तो आग बबूला सरदार उसपर हमलावर हो गया और अपने किरपान से उसने उस व्यक्ति की उँगलियाँ काट दीं। जब एक व्यक्ति बाइक सवार को बचाने के लिए आगे आया तो निहंग ने उस पर भी हमला कर उसे भी घायल कर दिया।

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अब कहने को इन दोनों प्रकरण के पीछे निसंदेह सत्ताधारी काँग्रेस पार्टी की अकर्मण्यता और उसकी तुष्टीकरण की नीतियाँ प्रमुख कारण हैं (पंजाब और छत्तीसगढ़ में काँग्रेस सत्ता में है), लेकिन यहाँ केंद्र सरकार भी अपनी जिम्मेदारियों से बच नहीं सकती। इस बात में कोई शक नहीं है कि अमित शाह ने कई मोर्चों पर बतौर गृहमंत्री अपना दायित्व बखूबी संभाला है, लेकिन नक्सली और खालिस्तानी मोर्चे पर वे उतने प्रभावी नहीं सिद्ध हुए हैं। इसी का परिणाम पहले दिल्ली में लाल किले पर हुए उपद्रव और फिर अब छत्तीसगढ़ में सुरक्षाकर्मियों की जघन्य हत्या के रूप में सामने आया है।

ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि खालिस्तान और नक्सलवाद अभी पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है, जिसे लेकर केंद्र सरकार को अपनी कमर कस लेनी चाहिए। अमित शाह ने कहा था कि वे जल्द ही नक्सलवाद के खिलाफ निर्णायक युद्ध छेड़ेंगे। अगर वास्तव में वे ऐसा करना चाहते हैं, तो नक्सलवाद के खिलाफ अंतिम युद्ध छेड़ने का यही सही समय है। नक्सलियों और खालिस्तानियों को ऐसा सबक सिखाना चाहिए, जिससे ये लोग दोबारा भारत की तरफ आँख उठाने से पहले हजार बार सोचें।

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