कल पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के आखिरी चरण का मतदान खत्म होते ही, देश की मुख्यधारा मीडिया एग्जिट पोल दिखाने लगी। एग्जिट पोल में असम में भाजपा की जीत बताई जा रही है, केरल में LDF गठबंधन की जीत का दावा किया जा रहा है, पुडुचेरी में NDA गठबंधन की सरकार बनते हुई दिख रही है। वहीं पश्चिम बंगाल की एग्जिट पोल से कुछ साफ निष्कर्ष नहीं निकल पा रहा है, लेकिन तमिलनाडु में DMK – कांग्रेस गठबंधन आसानी से जीतते हुए नजर आ रही है।
अगर हम बात करें तमिलनाडु की तो यह कहना गलत नहीं होगा कि यह जीत DMK के नेता MK Stalin के लिए वॉकओवर जीत है, क्योंकि उनका सामना उस AIADMK से हो रहा है, जो आज सबसे कमजोर स्थिति में है। हालांकि, AIADMK ने भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन किया है, लेकिन उसके बाद भी पार्टी में बहुत सारी ऐसी कमियां है, जिनको भुना कर MK Stalin कम से कम दस साल सत्ता पर बैठ सकते हैं।
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आपको बता दें कि साल 2016 में जयललिता ने लगातार दूसरी बार विधानसभा चुनाव जीतकर 32 सालों से चले आ रहे ट्रेंड को तोड़ दिया था। जयललिता का वर्चस्व पूरी तरह से तमिलनाडु की राजनीति पर हावी था और फिर अचानक दिसंबर 2016 में उनकी अकस्मात मृत्यु हो गई। वहीं दूसरे खेमे में भी साल 2018 में DMK के प्रमुख मुत्तुवेल करुणानिधि का निधन हो गया। साल 2018 तक दोनों पार्टियों ने अपने सबसे बड़े द्राविडियन नेता को खो दिया था।
लेकिन दोनों पार्टियों के काम करने के तौर तरीके में बहुत बड़ा फर्क था। जयललिता ने AIADMK के लिए अपने जाने के बाद उत्तराधिकारी नहीं चुना, वहीं DMK की ओर से MK Stalin का उत्तराधिकारी बनाना तय था। जयललिता का उत्तराधिकारी न चुनना AIADMK का पतन का कारण साबित हो रहा है।
तमिलनाडु की सत्तारूढ़ पार्टी की मुख्यमंत्री Edappadi K Palaniswamy और उपमुख्यमंत्री O Panneerselvam के बीच बढ़ रहे तनाव से आज सभी वाकिफ है। पार्टी के दो बड़े नेता अगर सरेआम एक दूसरे से सियासी घमासान में फंस जाते है तो जमीनी स्तर पर पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल टूट जाता है। साथ ही पार्टी के अंदर गुटबाजी होने लगती है। वहीं दूसरी ओर MK Stalin एक मजबूत नेता के जैसे काम कर रहे हैं। DMK पर उनकी पूरी तरह से पकड़ है। दोनों पार्टियों की अंदरूनी कमजोरी और मजबूती का उदाहरण आपको 2019 लोकसभा चुनाव के नतीजों में देखने को मिला था। बता दें कि 2019 लोकसभा चुनाव में 39 में से 38 सीटों पर DMK को जीत हासिल हुई थी।
हैरानी की बात यह है कि AIADMK पार्टी की अंदरूनी मतभेद 2021 विधानसभा चुनाव तक भी खत्म नहीं हुई। पार्टी आलाकमान के बीच दरार साफ नजर आ रही थीऔर इसका फायदा MK Stalin को अवश्य आने वाले मतदान के नतीजों में मिलेगा।
जयललिता के जाने के बाद एक पक्ष ऐसा भी था जो चाहता था कि शशिकला AIADMK का नेतृत्व करें पर ऐसा नहीं हुआ। जयललिता के निधन के बाद साल 2017 में शशिकला को घोटालें के मामले में जेल जाना पड़ा। हालांकि, उनकी रिहाई चुनाव से पहले हो गई थी, लेकिन फिर भी शशिकला ने खुद को विधानसभा चुनाव से अलग कर लिया। शशिकला का यह फैसला AIADMK के लिए आखिरी धक्का था।
फ़िलहाल तमिलनाडु की राजनीति में आज पूरी तरह से MK Stalin का वर्चस्व बना हुआ है, क्योंकि उनके सामने एक ऐसी पार्टी है जिसके पास कोई मजबूत, आकर्षक नेता नहीं है। AIADMK की अंदर गुटबाजी की वजह से कार्यकर्ता भी बंट चुके हैं और जनता को ऐसी पार्टी जो खुद का नेतृत्व न कर पाए, ऐसी पार्टी में उन्हें कोई दिलचस्पी नहीं है। AIADMK की वर्तमान की स्थिति को देखकर हम कह सकते हैं कि DMK आने वाले 10 साल बड़ी आसानी से राज कर सकती है और अगर AIADMK को दुबारा तमिलनाडु की राजनीति में अपना दमखम दिखाना है तो एक नया आकर्षक चेहरा सामने लाना ही एकमात्र विकल्प है।