जयपुर की एक निचली अदालत ने केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय और NCERT के निदेशक को बारहवीं कक्षा के लिए NCERT इतिहास की पाठ्यपुस्तक में मुगल शासकों के “महिमामंडन” पर नोटिस जारी किया है।
याचिका में उन तथ्यों को हटाने की मांग की गई थी, जो मुगलों का “महिमामंडन” करते हैं और साथ ही इतिहास की किताब के इस हिस्से को छापने और प्रकाशित करने पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गयी थी। अदालत ने केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय और NCERT के निदेशक को आदेश दिया कि वे या तो अपने अधिवक्ता के माध्यम से पेश हों और 19 अप्रैल तक दस्तावेजों के साथ अपना जवाब पेश करें।
पीसी भंडारी ने जयपुर के एक सिविल कोर्ट में संयुक्त सचिव, शिक्षा मंत्रालय, नई दिल्ली और NCERT के निदेशक के खिलाफ याचिका दायर की है। यह “महिमामंडन” बारहवीं कक्षा की इतिहास की किताब “भारतीय इतिहास में विषय -2 भाग -2” के पृष्ठ संख्या 234 में मौजूद हैं। इसमें कहा गया है कि शाहजहाँ और औरंगज़ेब ने युद्धों के दौरान ध्वस्त हुए मंदिरों की मरम्मत के लिए अनुदान जारी किया था।
जब याचिकाकर्ता ने RTI दायर की, तो उन्हें सूचित किया गया कि प्रकाशित इस दावे को प्रमाणित करने के लिए उनके पास कोई सबूत नहीं है। भंडारी ने तब अदालत से गुहार लगाई कि वह विवादित हिस्से को किताब से हटाए। याचिकाकर्ता ने कहा कि नोटिस मिलने के दो महीने बाद भी तथ्यों को किताब से नहीं हटाया गया। इस RTI के आने के बाद NCERT की खूब किरकिरी हुई थी, व लोगों ने भी सोशल मिडिया पर जमकर लताड़ा था।
RTI में, यह पूछा गया था कि NCERT ने भारतीय इतिहास भाग 2 थीम के पृष्ठ संख्या 234 के दूसरे पैराग्राफ में किस स्रोत से लिखा है कि युद्ध के दौरान ध्वस्त हुए मंदिरों को, शाहजहाँ और औरंगजेब के शासन में पुनर्निर्माण के लिए वित्तीय सहायता दी गई थी। फिर, RTI में NCERT से यह भी पूछा गया कि औरंगज़ेब और शाहजहाँ ने कितने मंदिरों का पुनर्निर्माण कराया? जवाब में, NCERT ने कहा कि उसे इसके बारे में जानकारी नहीं है।
तो यहाँ सवाल यह है कि NCERT के डिजाइनर इतिहासकार कौन है, जिसने भारत में सांप्रदायिकता के सुल्तान को धर्मनिरपेक्ष बनाकर पेश किया? यह भी सवाल उठता है कि जब कोई आधार नहीं था तो NCERT ने छात्रों से औरंगज़ेब के बारे में झूठ क्यों बोला? UPA सरकार द्वारा 2005 में जब से NCERT की किताबों में मार्कसिस्ट इतिहास भरा गया है तब से वही देश के युवाओं को परोसा जा रहा है। NCERT की किताबों में इससे पहले सिर्फ पांच बार यानि 1975, 1988, 2000 और 2005 में बदलाव किया गया है।
2005 में किए गए बदलाव में कांग्रेस के घरेलू इतिहासकारों का खूब योगदान था। सोनिया गांधी की अगुवाई वाली यूपीए सरकार द्वारा शुरू की गई नई किताबों और सिलेबस में विदेशी आक्रमणकारियों और उपनिवेशवादियों को सौम्य शासकों के रूप में दिखाने और वैदिक सभ्यता और भारतीय महानायकों को मिटाने का प्रयास किया गया था। NCERT के इन सभी पहलुओं और इतिहासकारों द्वारा तथ्यों के तोड़-मरोड़ पर Neeraj Atri और Munieshwer A Sagar ने Brainwashed Republic नाम की एक बेहद विस्तृत किताब में बताया है। वर्ष 2005 में किए गए नुकसानों को सही करने का यही अवसर है।
भारत के युवाओं और बच्चों को देश की सांस्कृतिक जड़ों के बारे में पढ़ने का अवसर दिया जाना चाहिए। पढ़ाई का इस तरह से राजनीतिकरण कर वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों को अपनी ही विरासत से दूर करना उनके पतन का कारण बन सकता है। इसको लेकर वाजपेयी सरकार ने सही दिशा में एक बड़ा कदम उठाया था, और अब मोदी सरकार को भारत के भविष्य को बचाने के लिए यह कार्य अपनी देख रेख में करना होगा। बता दें कि कुछ दिनों पहले ही शिक्षा पर संसद की स्थायी समिति ने स्कूलों में वर्तमान राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) की इतिहास की पाठ्यपुस्तकों के पुनरीक्षण पर चर्चा की थी। अब यह देखना है कि कोर्ट के मंत्रालय और NCERT को नोटिस के बाद बदलाव आने में कितना समय लगता है।