लगता है इसरो के पूर्व वैज्ञानिक नम्बी नारायणन को अब न्याय मिलने वाला है। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को न सिर्फ सीबीआई से उन्हें फ़साने वालों के बारे में पता लगाने के लिए जाँच जारी रखने का आदेश दिया बल्कि SC ने यह भी संकेत दिया कि इस मामले में कुछ पुलिस वालों का हाथ था।
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद जैन समिति द्वारा 1994 में पूर्व इसरो वैज्ञानिक डॉ एस नंबी नारायणन के खिलाफ जासूसी मामले में प्रस्तुत रिपोर्ट को सील कर यह फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत ने कहा कि रिपोर्ट को इस मामले में शामिल किसी भी पार्टी के सामने नहीं खोला जायेगा और CBI इसके निष्कर्षों की और जांच करेगी।
बता दें कि जैन समिति की रिपोर्ट तीन सदस्यीय पैनल द्वारा तैयार की गई थी, जिसकी अध्यक्षता पूर्व शीर्ष अदालत के न्यायाधीश न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) डी. के जैन ने की थी। यह रिपोर्ट नम्बी नारायणन की झूठी गिरफ़्तारी करने वाले पुलिस अधिकारीयों पर आधारित थी।
रिपोर्ट पर विचार करने के लिए केंद्र की याचिका पर सुनवाई करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समिति ने केरल पुलिस के “अधिकारियों” की “चूक” को पाया। न्यायमूर्ति एएम खानविल्कर की अध्यक्षता वाली SC बेंच ने सीबीआई को जैन समिति की रिपोर्ट को ही प्रारंभिक जांच रिपोर्ट के रूप में मानने और इस मामले की जांच करने का निर्देश दिया।
केंद्रीय जांच एजेंसी को जाँच पूरी करने के लिए तीन महीने का समय दिया गया है। यानी तीन महीनों में जिन पुलिस वालों ने अपने आकाओं के कहने पर नम्बी नारायणन को जासूसी के झूठे आरोप में फंसा कर गिरफ्तार किया था अब उनका सच भी देश के सामने आने वाला है।
SC का स्पष्ट कहना था कि, “रिपोर्ट कुछ बेहद गंभीर तथ्यों की और इशारा कर रही है, इसी कारण रिपोर्ट पर उचित कार्रवाई की जाएगी। रिपोर्ट में कई परिस्थितियों और घटनाओं का उल्लेख किया गया है। उन्हें पूरी जांच करनी होगी।“
SC ने बताया कि रिपोर्ट में उन पुलिस अधिकारियों की पहचान की गई है जो इसरो वैज्ञानिक की गिरफ्तारी के लिए जिम्मेदार थे।
बता दें कि नारायणन के खिलाफ 1994 में दो कथित मालदीव के खुफिया अधिकारियों को रक्षा विभाग से जुड़ी गुप्त जानकारी लीक करने का आरोप लगा था। नारायण को इस मामले में गिरफ्तार भी किया था और जहां उन्हें काफी यातनाएं दी गईं। बाद में यह पता चला कि यह पूरा मामला राज्य के शीर्ष पुलिस अधिकारियों ने जानबूझकर बनाया था जो केरल के राजनीतिक इशारे पर किया गया था।
वहीँ सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इंडिया टुडे से बात करते हुए, डॉ एस नम्बी नारायणन ने कहा कि उन्हें खुशी है कि सीबीआई इस मुद्दे की जांच करेगी। नारायणन ने यह भी कहा कि, “यह एक मनगढ़ंत मामला है; किसी ने उन्हें जासूसी के मामले में फंसाया। उन्होंने इस तथ्य को स्वीकार किया है कि जिन लोगों ने उन्हें फसाया, उन्होंने एक अपराध किया है, जब तक वे पकडे नहीं जाते, मैं यह नहीं कहूंगा कि न्याय हुआ।“
मामला 1994 में शुरू हुआ था, जब केरल पुलिस ने मालदीव के कुछ जासूस के माध्यम से पाकिस्तान को गुप्त सूचना देने के आरोप में नंबी नारायणन को गिरफ्तार किया था। बाद में यह पता चला कि, यह पूरी कहानी केरल कांग्रेस के एके एंटनी गुट ने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की मदद से गढ़ी थी, जो केरल के तत्कालीन कांग्रेस मुख्यमंत्री कन्नौथ करुणाकरण के खिलाफ लामबंदी की कोशिश में लगे थे। एके एंटनी, जासूसी के मामले से करुणाकरण को नीचा दिखाने में सफल रहे।
इसके बाद एंटनी को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया था, लेकिन कांग्रेस पार्टी अगला विधानसभा चुनाव हार गई, और सीपीएम के नेतृत्व वाली एलडीएफ सरकार सत्ता में आई। नम्बी नारायणन पर इन झूठे आरोपों को ‘पुख्ता’ करने में कथित तौर पर उस आरबी श्रीकुमार का भी नाम शामिल था।
साथ ही उस दौरान सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में केरल के पुलिस अधिकारियों सिबी मैथ्यूज, केके जोशवा और एस विजयन, और आईबी अधिकारियों मैथ्यू जॉन का भी नाम लिया था। उन्हें उच्च पदों के साथ संरक्षित और पुरस्कृत किया गया था। अब सुप्रीम कोर्ट और किन किन पुलिस वालों के बारे में इशारा कर रही है यह तो जाँच पूरी होने के बाद ही स्पष्ट होगा।
परन्तु एक बात तय है कि अब 27 वर्षों के बाद अब जा कर देश नम्बी नारायणन को न्याय देने के करीब आया है। अब उनके 27 वर्षों को तो नहीं लौटाया जा सकता है लेकिन उन्हें वो सम्मान देकर और उन्हें फंसाने वालों को दंड देकर न्याय दिया जा सकता है