काँख उठा कर पीएम मोदी की मीटिंग में सुस्ताने वाले केजरीवाल की कोविड नीति बिल्कुल बर्बाद है

केजरीवाल से तो यही उम्मीद की जा सकती है

केजरीवाल

PC : (Newsroompost)

बीते कुछ दिनों में दिल्ली में कोरोना वायरस के मामलों में बहुत तेजी आई है। हालात दिन-प्रतिदिन बिगड़ते जा रहे हैं, लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल को कुछ समझ नहीं आ रहा है कि इन परिस्थितियों से कैसे निपटा जाए। केजरीवाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह बात स्वीकार की है कि बढ़ते कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से दिल्ली में हालात खराब हो रहे हैं। उन्होंने बताया कि पिछले 24 घंटे में कोरोना वायरस के 10 हजार से अधिक मामले सामने आये हैं।

केजरीवाल ने कहा “मार्च महीने के मध्य तक कोरोना के 200 मामले रोज सामने आ रहे थे, लेकिन अंतिम 24 घंटे में 10732 नए मामले सामने आये हैं। दिल्ली में शनिवार को कोरोना वायरस के 7897 नए मामले आए थे, जबकि इसके एक दिन पहले कोरोना के 8500 नए केस दर्ज किये गये थे। गौरतलब है कि दिल्ली में पिछले दस- पंद्रह दिनों में कोरोना तेजी से फैला है।

कोरोना वायरस के मामले बढ़ने के वाबजूद भी केजरीवाल यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि दिल्ली में हालात संभालने के लिए क्या किया जाये, पूरा लॉकडाउन लगाया जाये, नाइट कर्फ्यू लागू किया जाये या फिर अन्य किसी प्रकार के प्रतिबन्ध लागू किये जायें। एक ओर बाकी राज्यों की सरकारें अपने प्रदेश में कोरोना की स्थिति को नियंत्रण में करने के लिए नए-नए प्रतिबंध लगाने के तरीके खोज रही हैं, मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर कर रही हैं।

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 वहीं दूसरी ओर दिल्ली के मुख्यमंत्री के पास कोरोना वायरस को नियंत्रित करने के लिए किसी प्रकार की पॉलिसी नहीं है। केजरीवाल तो हाथ पर हाथ धरकर बैठे रहते हैं और प्रधानमंत्री के साथ हो रही मीटिंग में उंघाई लेते रहते हैं। बता दें कि दिल्ली में कोरोना पाजिटिविटी रेट में बढ़कर 10 प्रतिशत गई है।

वहीं लॉकडाउन की संभावना को केजरीवाल न तो स्वीकार कर रहे हैं और न ही उससे इनकार कर रहे हैं। केजरीवाल ने कहा है कि, “मैं लॉकडाउन के पक्ष में नहीं हूं, मेरा मानना है कि लॉकडाउन कोरोना का समाधान नहीं है। लॉकडाउन किसी भी सरकार द्वारा तभी लागू किया जाना चाहिए, जब वहां का पूरा चिकित्सा तंत्र ही टूटने लगे। लॉकडाउन के जरिये कोरोना के बढ़ने की गति धीमी की जा सकती है। अगर आप (आम आदमी) सहयोग करें और चिकित्सा तंत्र नियंत्रण में रहे, तो हमें दिल्ली में लॉकडाउन लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।“ उन्होंने आगे कहा कि, ” यदि हॉस्पिटल में बेड की संख्या इसी प्रकार घटती रही तो संभवतः हमें लॉकडाउन लगाना होगा। मैं लॉकडाउन के पक्ष में नहीं हूँ, मुझे बस आपका सहयोग चाहिए।”

बता दें कि यह पहला मौका नहीं है, जब केजरीवाल सरकार असंजस में पड़ी हो, बल्कि कोरोना वायरस संक्रमण की शुरुआत से दिल्ली सरकार के पास इससे निपटने के लिए कोई प्रभावी योजना नहीं रही है। जब कोरोना की पहली लहर ने दिल्ली को अपनी चपेट में लेना शुरू किया था, तो केजरीवाल ने अपनी कागजी योजनाएं गिनाते हुए पहले ही अपनी पीठ थपथपा ली थी। साथ ही दावा किया किया था कि दिल्ली में हालात उनके काबू में ही रहेंगे, लेकिन जैसे ही परिस्थितियां बिगड़ने लगी, केजरीवाल जिम्मेदारी लेने से बचने लगे।

केजरीवाल ने कई रेडिकल नीतियां अपनाई, जैसे दिल्ली के अस्पताल में दिल्ली के लोगों के लिए बेड रिजर्व करना, लेकिन जब इससे भी हालात काबू में नहीं आए, तो केजरीवाल सरकार ने दिल्लीवासी बनाम बाहरी की नीति अपनाकर लोगों का ध्यान भटकाने की कोशिशें तेज कर दीं, लेकिन कोरोना से लड़ने के लिए किसी प्रभावी योजना पर काम शुरू नहीं किया।

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 जब केजरीवाल ने दिल्ली को कोरोना वायरस से जूझने के लिए छोड़ दिया था, तो अंततः केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को मामला अपने हाथ में लेना पड़ा था। उनके प्रयासों से ही कोरोना की पहली लहर से, दिल्ली किसी प्रकार जूझते बच निकलने में कामयाब हुई। अमित शाह के कारण रेलवे कोच को हॉस्पिटल बेड में बदलने की योजना लागू हुई, जिसकी वजह से आज दिल्ली में 8 हजार बेड मौजूद हैं और अगले 8 हजार बेड बनाने की योजना पर कार्य चल रहा है।

गौरतलब है कि अमित शाह ने LNJP हॉस्पिटल का भी दौरा किया था, जहां चिकित्सकों को दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा था। उन्होंने कई उच्च अधिकारीयों के साथ बैठक की थी और इस अस्पताल को 500 ऑक्सीजन सिलेंडर, 10 हजार ऑक्सीमीटर और 440 वेंटिलेटर मुहैया कराये गये थे।

ये दिल्ली का दुर्भाग्य ही है कि केजरीवाल वहां मुख्यमंत्री हैं। हालांकि दिल्ली ने अपनी नियति स्वयं चुनी है, चाहे जो भी हो, लेकिन केजरीवाल को अमित शाह से कम से कम मैनेजमेंट स्किल तो सीखनी ही चाहिए। साथ ही अपनी राजनीतिक प्रतिद्वंदिता और अहंकार को किनारे रखकर केंद्र से आवश्यक मदद मांगनी चाहिए, जिससे दिल्ली में कोरोना वायरस को नियंत्रित किया जा सके।

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