हम्पी के प्राचीन शिवलिंग मंदिर का गौरव बढ़ाने वाले पुजारी अब इस संसार में नहीं रहे। दशकों से हम्पी के प्राचीन बदावी लिंग मंदिर के सेवा में लगे श्री के एन कृष्ण भट्ट का कल निधन हो गया था। 80 के दशक में इस मंदिर के पुनः दर्शन के लिए खुलने के बाद से ही वे इस मंदिर में महादेव के स्वरूप की सेवा सुश्रुषा कर रहे थे।
इस दुखद समाचार को विश्व हिन्दू परिषद के स्वयंसेवक गिरीश भारद्वाज ने साझा किया था। उनके ट्वीट के अनुसार, “हम्पी के बदावी लिंग मंदिर के पुजारी श्री कृष्ण भट्ट अब परमेश्वर के पास पहुँच चुके हैं। इन्होंने अपने 94 वर्ष के जीवनकाल में 40 वर्षं तक निष्ठावान सेवा महादेव को प्रदान की। ओम शांति”
Hampi Badavi Linga Priest Sri Krishna Bhat reached the Feet Of Parameshwara this Morning, The 94 Year old Man who did immense seva to Eshwara for 40 Long Years.
ॐ Shanti 🙏 pic.twitter.com/ui99hp8mD3
— Girish Bharadwaj (@Girishvhp) April 25, 2021
लेकिन ये बदावी लिंग मंदिर में ऐसा क्या विशेष है, जिसके कारण श्री कृष्ण भट्ट की सेवा का स्मरण कर लोग इतना भावुक हो रहे हैं? श्री कृष्ण भट्ट ने इसके अलावा भी निस्स्वार्थ भाव से महादेव की सेवा की है। वे मूल रूप से शिवमोगा जिले के निवासी थे, और वे हम्पी के सत्यनारायण मंदिर की सेवा सुश्रुषा करने आए थे।
हालांकि उनका भाग्य उन्हे कहीं और ही ले आया। उन्हे Anegundi के शाही परिवार ने बदावी लिंग की सेवा करने हेतु प्रमुख पुजारी के तौर पर नियुक्त किया था।
बदावी लिंग का मंदिर बेहद प्राचीन है, जिसमें जलकुंड के बीचों-बीच महादेव के भीमकाय स्वरूप के रूप में शिवलिंग उपस्थित है। इस मंदिर पर बाह्मनी सुल्तानों ने धावा बोलने का प्रयास किया था, परंतु वे पूरी तरह सफल नहीं हो पाए। हालांकि किसी हमले के भय से 1980 तक यहाँ पर कोई पूजा नहीं हुई। इसलिए भी संभव है कि इस मंदिर में भक्तों का आना जाना काफी कम रहा है।
इस मंदिर में कोई सीढ़ी नहीं है, जिसके कारण कृष्ण भट्ट जी को स्वयं मूर्ति पर चढ़कर साफ सफाई करनी पड़ती थी, भभूति तिलक इत्यादि लगाना होता था इत्यादि। कहने को मूर्ति पर पैर रखना पाप माना जाता है, हालांकि लोगों ने कभी भी इसे पाप नहीं माना, क्योंकि वे पुजारी के स्वभाव से भली भांति परिचित थे।
हम्पी के प्रसिद्ध वीरूपक्ष मंदिर के पुजारी शिव भट्ट के अनुसार, “शिवलिंग की पूजा करने का इसके अलावा और कोई उपाय नहीं है। आप ये नहीं कह सकते कि मूर्ति खंडित या मलिन हो रही है। ये श्रद्धा और निष्ठा की परीक्षा है। ये मंदिर विजयनगर साम्राज्य के समय निर्मित किया गया था।”
जिस समय अपने धर्म की परंपरा का अनुसरण करना हास्य का विषय माना जाता हो, उस समय श्री कृष्ण भट्ट जैसे निस्स्वार्थ से सेवा करने वाले पुजारी हम सनातनियों के लिए किसी आदर्श से कम नहीं थे। उनके निधन से न केवल कर्नाटक, अपितु समूचे सनातन धर्म को गहरी क्षति पहुंची है, जिसकी भरपाई होना लगभग असंभव है।