मुंबई, चेन्नई, हैदराबाद और कोलकाता – क्षेत्रीय पार्टियों ने अपने गढ़ों को पोषित करने के लिए इन महानगरों को चूस लिया

क्षेत्रीय दलों की वजह से रुक गया है शहरों का विकास

क्षेत्रीय पार्टियों

भारत के बड़े शहर राज्य सरकारों द्वारा किसी उपनिवेश की तरह इस्तेमाल किये जाते हैं। विशेष रूप से ऐसे शहर, जो किसी राज्य की राजधानी हैं, वहां सरकार में बैठी किसी क्षेत्रीय दल द्वारा केवल आर्थिक संसाधनों की लूट के लिए इस्तेमाल होते हैं। क्षेत्रीय राजनीतिक दल, सरकार में आते ही ऐसे शहरों में रहने वाले लोगों पर पर भारी भरकम टैक्स लगाते हैं और टैक्स के पैसे का इस्तेमाल गावों में बसने वाले अपने बड़े वोटर बेस के लिए तमाम वेलफेयर योजनाएं चलाने के लिए करते हैं।

मुंबई, चेन्नई, हैदराबाद आदि शहरों से प्राप्त टैक्स का इस्तेमाल इन शहरों में आवश्यक इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने के लिए नहीं होता, बल्कि गावों में रहने वाले लोगों को फ्री वस्तुएं बांटने में होते है। ऐसा नहीं है कि गावों में रहने वाले लोगों के लिए कल्याणकारी योजनाएं चलाना अनुचित है। वास्तविकता यह है कि ऐसी योजनाएं भी जमीन पर नहीं उतरती हैं, बल्कि क्षेत्रीय दलों के ऐसे लोग, जो गावों में प्रभावशाली होते हैं, वह भ्रष्टाचार कर ऐसी योजनाओं का लाभ गरीबों तक नहीं पहुँचने देते और अपने घर भरने लगते हैं।

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 मेट्रोपोलिटन शहर टैक्स भरते हैं और इसके बदले अपनी मूलभूत समस्याओं तक को सुलझा नहीं पाते। जैसे मानसून आते ही मुंबई की सड़कें भर जाती हैं और सालों बाद भी मुंबई को इस समस्या से निजात नहीं मिल सकी है। चेन्नई पर लगने वाले टैक्स से DMK, लोगों को फ्री मिक्सी बांटने का वादा करती है। अब तो मामला यहां तक पहुंच गया है कि क्षेत्रीय दल बड़े शहरों का इस्तेमाल वसूली के लिए भी करने लगे हैं।

एनसीपी के अनिल देशमुख जितनी आसानी से मुंबई के लोगों को धमकाकर वसूली कर रहे थे, वह पुणे या अमरावती में ऐसा नहीं कर सकेंगे। इसका कारण है कि वहां उनका एकमुश्त मराठवाड़ा वोटबैंक बसता है, जिसे नाराज करने की हिम्मत एनसीपी में नहीं है। मुंबई, जो भारत की आर्थिक राजधानी है, भारत की जीडीपी में 6 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखती है। देश के कुल हिस्से में 30 प्रतिशत इनकम टैक्स और 20 प्रतिशत एक्साइज मुंबई से आता है, मुंबई से 60 प्रतिशत कस्टम ड्यूटी और 4 लाख करोड़ का कॉर्पोरेट टैक्स मिलता है। अगर मुंबई महाराष्ट्र का हिस्सा नहीं होता तो महाराष्ट्र देश के सबसे समृद्ध राज्य होने का दम नहीं भर सकता था।

इतना टैक्स देने के बाद भी मुंबई शहर हर साल बारिश होते ही पानी में डूब जाता है। वहीं पुणे, नासिक, अमरावती जैसे शहर इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में मुंबई से कोसों आगे हैं। इतना धन देने के बाद भी मुंबई, एक बुलेट ट्रेन के लिए सरकार का मुंह देख रही है और उपमुख्यमंत्री अजीत पवार कहते हैं कि मुंबई, अहमदाबाद बुलेट ट्रेन के लिए महाराष्ट्र के पास पर्याप्त धन नहीं है।

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 कोलकाता, जो एक समय देश की आर्थिक राजधानी हुआ करता था, वह आज अपना वैभव खो चुका है। 70 के दशक में आया कम्युनिस्ट रूल और उसके बाद TMC का शासन, कोलकाता के बर्बादी का कारण बन गया। कम्युनिस्ट शासन में गुजराती और मारवाड़ी व्यापारियों को इतना परेशान किया गया कि उन्होंने कोलकता छोड़ दिया। कोलकता के औद्योगिक विकास पर ध्यान ही नहीं दिया गया और वर्षों से वहां मौजूद व्यापारियों को बाहर निकाल दिया गया, जिनमें से कुछ तो मुगल शासन से ही कोलकाता की समृद्धि के कारण थे।

यह दुर्भाग्य ही है कि जिस राज्य में अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली सबसे पहले लागू हुई और मानव संसाधन का अच्छा विकास हुआ है, वहां क्षेत्रीय राजनीति के चलते कोई भी बड़ी औद्योगिक इकाई नहीं लगाई गई। आज बंगाली युवा दूसरे राज्यों में जाकर ऑटोमोबाइल, बैंकिंग, आईटी आदि क्षेत्रों में कार्य कर रहे हैं, लेकिन इन सेक्टरों में काम करने वाली कोई कंपनी बंगाल में निवेश करने के लिए तैयार नहीं है। लेबर लॉ और ट्रेड यूनियन की राजनीति ने बंगाल के विकास को रोक रखा है।

हैदराबाद की भी कहानी अलग नहीं है। यहां भी KCR हॉउस टैक्स और पानी टैक्स बढ़ाकर, तेलंगाना में कमजोर होते वोटर बेस को साधने में लगे हुए हैं। मुफ्त की राजनीति की वजह से तेलंगाना पर कर्जा बढ़ता जा रहा है, जो मेट्रोपॉलिटन शहरों में रहने वाले लोगों पर टैक्स लगाकर भरा जाएगा। हालांकि अभी तक हैदराबाद पर इसका असर दिखाई देना शुरू नहीं हुआ है, लेकिन KCR का वोटबैंक जैसे जैसे कमजोर होगा, हैदराबाद को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।

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वहीं दिल्ली भी इसी रस्ते पर आगे बढ़ रही है। आम आदमी पार्टी द्वारा फ्री इलेक्ट्रिसिटी, उन टैक्सपेयर्स की मेहनत की कमाई पर दिया जा रहा है, जो सरकार को टैक्स इस उम्मीद में देते हैं कि वह इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास पर ध्यान दे। किसी शहर का विकास उसकी अच्छी सड़कों से हो सकता है, न कि फ्री इलेक्ट्रीसिटी से। साथ ही चेन्नई भी DMK और AIADMK की फ्री की राजनीति का शिकार हो रहा है।

क्षेत्रीय दल अगर बड़े शहरों को उपनिवेश की तरह इस्तेमाल करना बंद कर दें और इन शहरों के आस-पास के इलाकों के विकास, बेहतर सड़कों के निर्माण, विश्वस्तरीय एयरपोर्ट, चिकित्सा सुविधाओं के विकास पर ध्यान दें, तो यह शहर भारत के आर्थिक विकास को अलग ही स्तर पर पहुंचाने की क्षमता रखते हैं।

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