PM की कुर्सी बचाने के लिए कम्युनिस्ट ओली आया हिंदुत्व की शरण में, इनकी विदाई फिर भी तय

हिंदू विरोधी ओली का सत्ता से बाहर होना निश्चित है

नेपाल में चल रहे राजनीतिक संकट के बीच, पांच दशकों से नास्तिक और कम्युनिस्ट प्रधानमंत्री खड्ग प्रसाद शर्मा ओली ने चुनाव से पहले लोगों के बीच अपनी छवि सुधारने के लिए हिंदुत्व कार्ड खेला है। परन्तु यह रणनीति उन्हें भारी पड़ने वाली है क्योंकि नेपाल की 85 फीसदी आबादी हिंदू जनता ने अभी तक अयोध्या पर दिए गए बयान के लिए उन्हें माफ़ नहीं किया है।

दरअसल, रिपोर्ट के अनुसार नेपाल में सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में दरार आने के बाद अब प्रधानमंत्री के पी ओली ने अपने पद को बचाने के लिए हिंदुत्व को अपना प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाने की रणनीति अपनाई है।

इसके लिए उन्होंने मंगलवार को चैत्र महाअष्टमी का पर्व मनाया। ओली ने अपने आधिकारिक निवास पर “पूजा और भजन” भी किया, जहां राम, सीता और लक्ष्मण की तीन नवनिर्मित मूर्तियों की भी पूजा की गयी। बता दें कि नेपाल के चितवन क्षेत्र को ओली ने श्री राम का वास्तविक जन्म स्थान बता दिया था और इन मूर्तियों को वहीं स्थापित किया जाना है। ओली ने पिछले वर्ष यह दावा था कि अयोध्या के बजाय चितवन राम का “असली” जन्मस्थान है, जैसा कि आमतौर पर माना जाता है।

ओली का मानना ​​है कि मूर्तियों की स्थापना और इसके परिणामस्वरूप पैदा होने वाली हिंदुत्व की लहर से उन्हें चुनावी जीत मिलेगी जहां 85 प्रतिशत से अधिक हिंदू हैं। परन्तु यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि साक्ष्यों और मान्यताओं के आधार पर अयोध्या श्री राम की जन्मभूमि मानी जाती है और ओली ने इसी मुद्दे पर विवाद पैदा करने की कोशिश की है जिससे एक आम हिन्दू का नाराज होना स्वाभाविक है।

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नेपाल की जनता इतनी बेवकूफ नहीं है जो यह न समझे कि अभी तक कार्ल मार्क्स को भगवान मानने वाले ओली अब श्री राम को कैसे भगवान मान रहे। इतने वर्षों तक चीन और कम्युनिजम की भक्ति करने वाले ओली अचानक से इतने धर्मनिष्ठ हिन्दू हो गए हैं कि वो भगवान राम की जन्मस्थली को ही बदलना चाह रहे हैं। उनकी खुद की पार्टी के नेताओं ने भी ओली के बयान से किनारा कर लिया था, लेकिन ओली हैं कि मानने को तैयार ही नहीं हैं। ओली को उस समय हर तरफ से आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था। तब हिन्दू परिषद ने तो ये तक कह था कि इस बयान से युगों युगों से चली आ रही भारत नेपाल की मित्रता पर भी आघात हुआ है।
यही नहीं ओली की सरकार गिरने तक की नौबत आ गयी थी। अभी भी ये प्रयास जारी हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अब तो नेपाल में मुख्य विपक्षी दल नेपाली कांग्रेस ने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सरकार गिराने और वैकल्पिक सरकार बनाने की कोशिश शुरू कर दी है।

अपनी ही पार्टी में विरोध झेल रहे ओली का जनाधार भी काफी कमजोर हो चुका है। इसके पीछे का कारण ओली का चीनी प्रेम भी रहा है। जिस तरह से केपी ओली ने चीन के लिए भारत के साथ रिश्तों में दरार डाला वो भी किसी से छुपा नहीं है। हालांकि, अब चीन ने भी ओली को छोड़ दिया है। यही कारण है कि वो हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं नेपाल में प्रधानमंत्री बने रहने के लिए।

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यह पहली बार नहीं है जब ओली को एक कट्टर हिंदू के रूप में देखा जा रहा है। उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा था कि, “उन्हें भगवान पर विश्वास नहीं है। और अगर कभी कोई भगवान पैदा हुआ था, तो वह कार्ल मार्क्स था।“ ऐसे में ओली ने हिन्दुओं के बीच वोट को बढ़ाने के लिए जनवरी में पशुपतिनाथ मंदिर में एक विस्तृत पूजा का आयोजन किया था और मंदिर के चांदी से बनी “जलहरी” को सरकार के खर्च पर 80 किलो सोना से बदलने का आदेश दिया था। अब  चैत्र महाअष्टमी का पर्व मनाना उनकी चुनावी रणनीति को स्पष्ट करता है। हालाँकिज़ आज भी नेपाल की जनता ओली के अयोध्या पर सवाल उठाने से नाराज है और उनका यह हिंदुत्व कार्ड अवश्य ही बैकफायर करने वाला है।

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